अरूणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले के खिलाफ दाखिल कांग्रेस की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। इससे पहले 27 जनवरी को कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और राज्यपाल को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
इस पर केंद्र ने दो दिन बाद कोर्ट के सामने अपना हलफनामा पेश किया, जिसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने को यह कहते हुए उचित ठहराया कि राज्य में शासन और कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी। प्रदेश के राज्यपाल और उनके परिवार की जान को गंभीर खतरा था।
गृह मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में आरोप लगाया गया कि मुख्यमंत्री नबाम टुकी और विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के खिलाफ सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं। राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करते हुए उन घटनाक्रमों का ब्योरा दिया था, जिसके बाद राज्य की कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी।
अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के पीछे की कहानी, जानें ये 9 बातें
हलफनामे में बताया गया है कि राज्य बार-बार होने वाले उग्रवादी घटनाओं का गवाह रहा है, वैसै ही चीन राज्य के बडे़ हिस्से पर दावा करता है, ऐसी स्थिति में और राज्य के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता के लिए राष्ट्रपति शासन जरूरी है।
इसमें कहा गया है, मुख्यमंत्री नबाम टुकी और विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया दोनों एक ही समुदाय के हैं। वे एक खास समुदाय के छात्रों और अन्य सांप्रदायिक संगठनों को अन्य आदिवासियों और राज्यपाल के असमी मूल का उल्लेख करके उन्हें भड़काकर और उनका वित्तपोषण करके सांप्रदायिक राजनीति कर रहे हैं।
केंद्र ने हलफनामे में कहा, यहां तक कि राजभवन परिसर को भी नबाम टुकी और नबाम रेबिया के समर्थकों ने कई घंटे तक घेर रखा था क्योंकि जिला प्रशासन और पुलिस ने निषेधाज्ञा लागू नहीं की थी और एक भी गिरफ्तारी नहीं की गई।
संवैधानिक विफलता के संकेतकों का ब्योरा देते हुए हलफनामे में कहा गया है कि राज्य प्रशासन के संबंध में सार्वजनिक महत्व के मामलों पर राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्रों, संदर्भों का मुख्यमंत्री ने ज्यादातर मामलों में संविधान के अनुच्छेद 167 :बी: का उल्लंघन करते हुए जवाब नहीं दिया।