(शैलेश कुमार पाण्डेय )
अपनों ने छोड़ा साथ : अस्पताल ने दुत्कारा
- एचआइवी का कलंक . एचआइवी पीड़ित पति के इलाज के लिए जंग लड़ रही सीवान की सुनीता
- सीवान अस्पताल से भेजा गया था पटना, इलाज के लिए लौटी गोपालगंज
एचआइवी जान चिकित्सक नहीं कर रहे इलाज, मरीजों ने खाली कर दिया वार्ड
गोपालगंज : शायद किस्मत ने सुनीता की जिन्दगी का साथ देना छोड़ दिया है , इसी का उदाहरण है कि अपनों ने भी उसका साथ छोड़ दिया है , कलियुग के भगवान कहे जाने वाले डाक्टर भी अपना बैध धर्म नही निभा पा रहे है , बेचारी भगवान भरोसे अपने पति के इलाज के लिए जिन्दगी से जंग लड़ने के लिए मजबूर दिख रही है पति एचआइवी पॉजीटिव है. यह जान कर अपनों ने पहले ही साथ छोड़ दिया. एचआइवी की कलंक धोने के लिए पति को लेकर इलाज कराने अस्पताल पहुंची. लेकिन, धरती के भगवान से अस्पताल में उसे इलाज के बदले दुत्कार मिल रही है. सीवान जिले के जामो थाना क्षेत्र के गेहुआ गांव की रहनेवाली पत्नी की दास्तां सुन कर आपकी आंखों से भी आंसू निकल पड़ेंगे. सुनीता की ससुराल वालों को जब इसकी जानकारी हुई, तो उसे बच्चों के साथ घर से निकाल दिया.
सुनीता ने मासूम बच्चों को परवरिश के लिए पड़ोसी को सौंप दिया. पति को अस्पताल ले जाने के लिए भ ीउसके पास पैसे नहीं थे. चंदा इकट्ठा कर सीवान अस्पताल से पटना चली गयी. पटना में इलाज के बदले दुत्कार मिली, बाद में उसे गोपालगंज एआरटी सेंटर सदर अस्पताल भेजा गया.
एड्स से भी बड़ा खतरा उसका कलंक
एचआइवी से भी बड़ा समाज में उसकी कलंक है. एचआइवी पीड़ित को समाज में इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए. एचआइवी संक्रमण वायरल नहीं है. एचआइवी पॉजीटिव से बात करने, उसके पास जाने और उसका शरीर स्पर्श करने से किसी प्रकार की साइड इफेक्ट नहीं होता.
डॉ विकास गुप्ता, चिकित्सा पदाधिकारी
क्या कहते हैं सीएस
इसकी जानकारी मुझे नहीं है. अगर ऐसा है तो पीड़ित को तत्काल सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी. इलाज में किसी तरह की कोताही बरदाश्त नहीं होगी.
डॉ मधेश्वर प्रसाद शर्मा, सिविल सर्जन, गोपालगंज
चंदा कर पति के इलाज के लिए भटक रही अस्पताल
एचआइवी पीड़ित से सौतेला व्यवहार
एचआइवी की कलंक लगने के बाद सुनीता हार नहीं मानी. उसने गोपालगंज एआरटी केंद्र पहुंच कर पति की रजिस्ट्रेशन कराया. सदर अस्पताल में एआरटी ने भरती करा दिया.
लेकिन, इलाज में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. पत्नी ने बताया कि चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी इंजेक्शन देने के लिए भी नहीं आते. दवा लिखना और इलाज करना तो दूर, इमरजेंसी कक्ष के जिस वार्ड में भरती किया गया है, वहां अन्य मरीज को नहीं रखा जा रहा है. एचआइवी पीड़ित के कारण वार्ड का पूरा बेड खाली करा दिया गया है.