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नेपाली पीएम देउबा की भारत यात्रा से क्‍यों चिंतित है ड्रैगन? क्‍या अधर में फंस सकता है चीन का बीआरआइ प्‍लान

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नई दिल्‍ली/काठमांडू। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के भारत दौरे से पहले चीन को बड़ा झटका लग सकता है। बता दें कि प्रधानमंत्री देउबा वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट में भाग लेने के लिए 10 जनवरी को भारत के लिए रवाना होंगे। देउबा की भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब चीन अपने कर्ज का जाल बन चुके बेल्‍ट एंड रोड योजना को नेपाल में लागू करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है। उधर, नेपाल में देउबा के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद भारत के साथ मधुर संबंधों की उम्मीद जताई जा रही है। इसके पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कार्यकाल में सीमा सहित कई मुद्दों पर भारत और नेपाल के रिश्ते काफी नाजुक दौर में पहुंच गए थे। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्‍या नेपाल की देउबा सरकार भी ओली की राह पर चलते हुए चीन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) पर दोबारा बातचीत शुरू कर सकते हैं ? नेपाली प्रधानमंत्री की यात्रा से चीन की चिंता क्‍यों बढ़ गई है? क्‍या उनकी यात्रा से भारत और नेपाल के संबंध प्रगाढ़ होंगे? देउबा की यात्रा पर चीन की पैनी नजर क्‍यों है ?

कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है चीन

प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव चीन के राष्ट्रपति शी चिनफ‍िंग की एक महत्वकांक्षी योजना है। इसके जरिए चीन की योजना एशिया को अफ्रीका और यूरोप के साथ जमीनी और समुद्री मार्ग से जोड़ने की है। हालांकि, चीन इस परियोजना के पीछे गरीब देशों को भारी मात्रा में कर्ज देकर उन्हें अपना आर्थिक गुलाम बना रहा है। एशिया में श्रीलंका और लाओस चीन के बीआरआई योजना के सबसे बड़े शिकार हैं। इस वर्ष आस्‍ट्रेलिया ने भी चीन को बड़ा झटका दिया था। आस्‍ट्रेलिया चीन की इस महत्‍वाकांक्षी योजना से बाहर निकल गया। आस्‍ट्रेलिया की इस योजना से चीन को मिर्ची लगी थी।

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वर्ष 2017 में नेपाल ने चीन की पर‍ियोजना पर किए थे हस्‍ताक्षर

1- नेपाल और चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर वर्ष 2017 में हस्ताक्षर किए थे। नेपाल ने बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर किए, तो इसे नेपाल-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा गया। नेपाल के कई सरकारी अधिकारियों के अनुसार, अब दोनों पक्षों के साथ मसौदा कार्यान्वयन योजना का आदान-प्रदान, परियोजनाओं पर बातचीत और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत उनके शुरू होने की उम्मीद थी। हालांकि, भू-राजनीतिक स्थिति के कारण नेपाल सरकार ने चीन की इस परियोजना के खिलाफ अभी तक अनिच्छा दिखाई थी। नेपाल अभी तक भारत और अमेरिका के नाराज होने के कारण इस परियोजना को मंजूरी देने से आनाकानी कर रहा था।

2- चीन के बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर के वक्‍त नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी के पुष्प चमल दहल प्रचंड प्रधानमंत्री थे। दहल का झुकाव चीन की ओर था। इसके बाद नेपाल में सत्‍ता का बदलाव हुआ उनके बाद, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा ने सरकार का नेतृत्व किया। उनके बाद सीपीएन-यूएमएल के केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने। अब एक बार फिर देउबा नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं और उनकी सरकार में प्रचंड भी शामिल हैं। ऐसे में बीआरआई एक बार फिर जोर पकड़ते दिखाई दे रहा है।

3- भारत के पांच पड़ोसी देश चीन के बीआरआइ योजना का हिस्सा हैं। इनमें पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका शामिल हैं। इन देशों में चीन अपने पैसों से इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित कर रहा है। ऐसे में इन देशों के ऊपर चीनी कर्ज की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं, पैसे के प्रवाह को तेज करने के कारण इन देशों की कूटनीति में भी चीन का दखल बढ़ता जा रहा है। ऐसे में भारत के लिए खतरा भी बढ़ रहा है। इस बाबत भारत अपनी चिंता चीन से जाहिर कर चुका है।

देउबा भारत के पुराने हितैषी, 2017 में मोदी से की थी मुलाकात

प्रो. पंत का कहना है कि नेपाल में चल रहे राजनीतिक बदलाव को लेकर भारत ने आधिकारिक तौर पर अभी बयान नहीं दिया था, लेकिन पुराना अनुभव बताता है कि जब भी देउबा ने सत्ता संभाली है तब दोनों देशों के रिश्तों में संदेह को दूर करने में काफी मदद मिली है। वर्ष 2017 में वह पीएम बनने के कुछ ही दिनों बाद दिल्ली आकर पीएम नरेंद्र मोदी से मिले और दोनों देशों के रिश्तों में घुल रहे तनाव को काफी हद तक खत्म किया। उसके बाद नेपाल में आम चुनाव हुए और फिर केपी शर्मा ओली की सरकार बनी। ओली की दोबारा सरकार बनने के बाद वहां चीन की सक्रियता और बढ़ गई। ओली ने संविधान संशोधन कर भारत के हिस्से वाले कुछ क्षेत्रों को नेपाल में शामिल करने जैसे कदम उठाए। दूसरी तरफ देउबा भारत के साथ आर्थिक रिश्तों से लेकर मधेशियों वाले मामले में भी पारंपरिक तौर पर नरम रुख अपनाते रहे हैं। देउबा उस समय नेपाल के पीएम बन रहे हैं जब चीन की तरफ से भारत के दूसरे पड़ोसी देशों को प्रभाव में लेने की कोशिश चरम पर है।

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