रायपुर। छत्तीसगढ़ में कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक के बीच राजनीतिक दलों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। सरकार ने संक्रमण दर चार फीसद से ज्यादा वाले जिलों में नाइट कर्फ्यू का फैसला किया है। सरकार के फैसले पर भाजपा ने सवाल खड़े किए हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा कि प्रदेश के कई जिलों में जब संक्रमण दर छह फीसद से ज्यादा हो गया है, तब सरकार को नाइट कर्फ्यू की याद आ रही है। साय ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ओमिक्रोन वैरिएंट को लेकर सिर्फ जुबानी जमाखर्च कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बातचीत को बढ़-चढ़कर प्रचार करने से कोरोना की जंग को नहीं जीत पाएंगा।
साय ने नसीहत दी कि कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने क्वारंटाइन सेंटर, परीक्षण और उपचार केंद्रों के पुख्ता इंतजाम के साथ ही उपकरणों और दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता पर सरकार ध्यान केंद्रित करे। संक्रमण की रफ्तार को देखते हुए प्रदेश स्तर पर नियंत्रण करने और फैसले लेने की आवश्यकता है। लेकिन सरकार अभी भी जिलों के हिसाब से निर्णय ले रही है। प्रदेश सरकार कोरोना संक्रमण की आपदा को राजनीतिक अवसर के तौर पर भुनाने की निर्लज्जता का प्रदर्शन कर सकती है, यह कांग्रेस के टूलकिट-एजेंडे ने जगजाहिर कर दिया है।
कोरोना सेवाकर्मियों को क्यों दिखाया गया बाहर का रास्ता: कौशिक
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि प्रदेश सरकार की मंशा कोरोना बचाव को लेकर स्पष्ट नहीं है। बस्तर के प्रशिक्षित करीब 600 स्वास्थ्यकर्मियों को ऐसे समय नौकरी से निकाल दिया गया, जब उनकी आवश्यकता कोरोना बचाव अभियान में है। उन्हें नौकरी से निकालकर प्रदेश सरकार क्या साबित करना चाह रही है, यह समझ में नहीं आ रहा है।
प्रदेश सरकार संवेदनशील नहीं है, इसलिए स्वास्थ्यकर्मियों के सामने भविष्य का संकट खड़ा हो गया है। इन स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई में इनकी सहभागिता सुनिश्चित हो। इनकी तत्काल नियुक्ति की जाए, साथ ही लंबित वेतन दिया जाना चाहिए।