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यूपी चुनाव 2022: वर्ष 2017 की हारी 78 सीटों पर भाजपा का ‘पाजिटिव पालिटिक्स’ का दांव, जानें- कैसे चला सरकार-संगठन का ‘मिशन विजय’

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लखनऊ। वर्ष 2017 में पूरब से पश्चिम और अवध से बुंदेलखंड तक कमल ऐसा खिला कि भाजपा के रणनीतिकारों के चेहरे खिल गए। पूर्ण बहुमत की मजबूत ताकत के साथ भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 403 में से अकेले ही 312 सीटें जीत लीं। मगर, संगठन को हमेशा सक्रिय रखने वाले भाजपा के दिग्गजों के दिलो-दिमाग में प्रचंड जीत के बावजूद 78 सीटों पर मिली पराजय खलती रही। फिर जैसे ही 2022 के रण का वक्त करीब आया तो पार्टी के रणनीतिकारों ने इन हारी सीटों के लिए सबसे पहले ‘मिशन विजय’ ही शुरू किया।

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी 300 पार का नारा दिया है। इसके लिए लगभग छह करोड़ का लाभार्थी वोटबैंक तैयार किया है। तमाम सामाजिक सम्मेलन किए गए हैं और संगठन के अभियान लगातार चलते रहे। यह सारी कवायद समानांतर सभी 403 विधानसभा सीटों के लिए चली। टिकट वितरण में पार्टी की सोच परिलक्षित हो रही है कि उसे भरोसा है कि पिछले चुनाव में जो गढ़ उसने जीते, उसमें सत्ता विरोधी लहर की कोई दरार फिलहाल नहीं है। यही वजह है कि मौजूदा विधायकों के टिकट काफी कम संख्या में काटे जा रहे हैं।

ऐसे में पिछली बार की जीती सीटों पर फिर भगवा परचम का भरोसा कायम है, लेकिन तमाम मुद्दे और विपक्षी दलों के प्रयासों से आगाह भाजपा के रणनीतिकारों ने परिणाम दोहराने के लिए अलग रणनीति इस बार बनाई है, वह है हिसाब बराबर करने वाली। दरअसल, पूर्वांचल में सपा के प्रभाव वाली कुछ सीटों सहित पश्चिम में जहां अल्पसंख्यक समुदाय निर्णायक भूमिका में है, वहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। कुछ सीटें बसपा तो कुछ कांग्रेस के खाते में चली गईं। इस तरह 78 सीटें भाजपा के हाथ से फिसल गईं। उन्हें जीतने के लिए ही भाजपा ने सबसे पहले चुनाव अभियान की शुरुआत की। विकास कार्य तो सभी विधानसभा क्षेत्रों में कराए गए, लेकिन जहां पार्टी को हार मिली, उन्हें सूचीबद्ध कर वहां क्रमवार तरीके से विकास कार्यों के लोकार्पण और शिलान्यास किए गए। इसके पीछे मकसद यही था कि उस क्षेत्र की जनता को यह संदेश दिया जाए कि भाजपा भेदभाव की राजनीति नहीं करती। भले ही किसी क्षेत्र से वोट नहीं मिला हो, लेकिन विकास के लिहाज से वह प्राथमिकता में रहा।

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योगी और स्वतंत्रदेव ने संभाली मिशन की कमान : 78 सीटों की हार को जीत में बदलने के लिए सरकार और संगठन ने एक साथ अभियान शुरू किया। सरकार की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो संगठन की तरफ से प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने इसकी कमान संभाली। लक्ष्य 78 का था, लेकिन किन्हीं कारणों से करीब 50-55 विधानसभा क्षेत्रों में यह दोनों नेता एक साथ जा सके। वहां विकास परियोजनाओं के लोकार्पण और शिलान्यास के साथ ही बड़ी जनसभाएं की गईं। भाषणों के जरिए संदेश दिया गया कि यहां हार मिलने के बावजूद भाजपा ने सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति पर चलते हुए विकास कार्य कराए हैं।

संगठन के लिए रात्रि प्रवास के कार्यक्रम : सरकार और संगठन के मुखिया का एक-एक कार्यक्रम ही नहीं, बल्कि पार्टी ने यहां के लिए संगठन की खास रणनीति बनाकर काम किया। सरकार की ओर से एक प्रभारी मंत्री को इनका जिम्मा सौंपा गया और संगठन से भी एक प्रभारी बनाया गया। इन दोनों के प्रवास कार्यक्रम यहां कई बार लगाए गए। इन्होंने वहां रहकर संगठन को घर-घर संपर्क और प्रत्येक बूथ पर मतदाता बढ़ाने का जिम्मा सौंपा। यहां सदस्यता अभियान पर भी खास जोर रहा। इससे क्षेत्र में मिली पिछली हार के बावजूद संगठन में निचले स्तर तक सक्रियता बनी रही

भरपाई का माइक्रो मैनेजमेंट : सूत्रों का कहना है कि जब इस मिशन की रूपरेखा बनी, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कानून विरोधी आंदोलन का असर माना जा रहा था। तब कहा जा रहा था कि वहां भाजपा को कुछ सीटों पर नुकसान हो सकता है। ऐसे में इसकी भरपाई उन सीटों से करने का प्रयास किया जाए, जहां भाजपा पिछली बार हार गई। इनमें तमाम सीटें ऐसी थीं, जहां भाजपा कम अंतर से हारी या दूसरे स्थान पर रही।

फिर भी लक्ष्य आसान नहीं : हारी सीटों को जीतने में हालांकि भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है लेकिन लक्ष्य आसान नहीं। पिछले चुनाव में हारी सीटों में कई सपा के जनाधार वाली हैैं तो कुछ पर बसपा का प्रभाव है। रामपुर जैसी कुछ सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक है। रामपुर खास और कुंडा जैसी कुछ सीटें ऐसी हैैं, जहां एक ही प्रत्याशी या उनके परिवार के सदस्य कई चुनाव से जीतते आ रहे हैैं।

प्रमुख दलों को पिछली बार मिली सीटें

  • भाजपा : 312
  • सपा : 47
  • बसपा : 19
  • अपना दल : 9
  • कांग्रेस : 7
  • सुभासपा : 4

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