बेंगलुरु। देशभर में आज दशहरा की धूम है। देश के कोने-कोने में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। पूरे देश में मैसूर का दशहरा काफी फेमस है। विजयदशमी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष तमिलनाडु के मैसूर पैलेस में दशहरा मनाया जाता है। यहां पर वज्रमुस्ती कलागा (Vajramusti Kalaga) के मॉर्शल आर्ट का आयोजन किया गया। इस खास मौके पर पेड़ों की भी पूजा की जाती है। साथ ही कुश्ती करने की भी परंपरा है। प्राचीन काल से ही यहां पर Vajramusti Kalaga मार्शल ऑर्ट का इस्तेमाल किया जाता है।
शमी पेड़ की हुई पूजा
विजयदशमी के मौके पर मैसूर के पूर्ववर्ती शाही परिवार के युद्धवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार ने मैसूर पैलेस में ‘शमी’ के पेड़ की पूजा की। कहा जाता है कि शामी पेड़ की पूजा करने से शनि के कोप से बचा जा सकता है। घर में शमी पेड़ लगाने से सुख शांति का वास होता है। ऐसा कहा जाता है कि शमी वृक्ष में देवताओं का वास होता है जिससे नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। गौरलतब है कि लंका पर विजय हासिल करने के बाद श्रीराम ने शमी पूजन किया था और खास बात यह है कि नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन भी शमी पेड़ों के पत्तों से करने का रिवाज है। ऐसी परंपरा है कि शमी पेड़ों में गणेश जी और शनिदेव का वास होता है।
कर्नाटक के मैसूर में दशहरा को काफी भव्य तरीके से मनाया जाता है। इस खास दिन 10 दिनों तक दिनों तक मैसूर पैलेस को सजा कर रखा जाता है। इस दौरान सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वहीं महल के सामने अन्य कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
कहा जाता है कि मैसूर में दशहरा का आयोजन सबसे पहले 15 वीं शताब्दी में हुआ था। दशहरा त्योहार का आयोजन विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने किया था। दशहरा के दिन देवी चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है।
इस खास दिन मैसूर में जुलूस निकाला जाता है, जो पांच किलोमीटर तक जाता है। इस जुलूस में कम से कम 15 हाथी लगाए जाते हैं। हाथियों के ऊपर देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति को रखा जाता है। इसके अलावा आखिरी दिन इस जुलूस में काफी रौनक होती है। इसके चलते यह आकर्षण का केंद्र है।