Local & National News in Hindi
ब्रेकिंग
तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ने 4 गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाया, कार्रवाई के पीछे दिया ये तर्क अफगानिस्तान में 4.6 तीव्रता का भूकंप, उत्तराखंड में भी डोली धरती, लोगों में दहशत ग्रेटर नोएडा: शारदा यूनिवर्सिटी में छात्रा के सुसाइड पर हंगामा, दो प्रोफेसर सस्पेंड; स्टूडेंट्स का प... जब पर्दे पर पाकिस्तानी आतंकवादी बनने वाले थे अभिषेक बच्चन, अमिताभ ने ऐसे लगाई अक्ल ठिकाने इंग्लैंड से लौट रहा टीम इंडिया का ये खिलाड़ी, निजी कारणों से खेलने से किया इनकार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से ज्यादा अमीर है उनकी पोती, जानिए कितनी है संपत्ति भारत को 2 हफ्तों में 53000 करोड़ का नुकसान, क्यों उछल रहा इस्लामाबाद WhatsApp पर शुरू हुआ Status Ads फीचर, आपको कहां दिखेगा? शनि दोष से मुक्ति के लिए सावन के शनिवार को शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं? हफ्ते में कितने दिन बाद करना चाहिए शैंपू ? जानें स्कैल्प हेल्थ से जुड़ी जरूरी बातें

AIIMS का अलर्ट- प्रदूषण से कैंसर, मस्तिष्क आघात और हार्ट अटैक का खतरा

0 32

नई दिल्लीः राष्ट्रीय राजधानी में पिछले एक सप्ताह से प्रदूषण का स्तर खतरनाक मानक पर पहुंचने की घटना को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने शनिवार को कहा कि अब तक ऐसी कोई दवा या मशीन का अविष्कार नहीं हुआ है जो लोगों को वायु प्रदूषण के खतरे से पूरी तरह बचा सके लेेकिन सतकर्ता बरतकर इसके खतरे से कुछ हद तक बचा जा सकता है और साझा प्रयास से ही शुद्ध हवा नसीब हो सकती है।

कैंसर और हार्ट अटैक का खतरा
प्रोफेसर गुलेरिया ने बताया कि हवा शुद्ध करने वाली मशीनें (एयर प्यूरिफायर) एयरटाइट कमरे में ही कारगर हैं और एन-99 तथा एन-95 मास्क को मुंह पर कसकर पहनने से प्रदूषित हवा फिल्टर हो पाती है लेकिन टाइट पहने से लोगों को घबराहट होती है और फिर इसे हटाना पड़ता है। इसे 15-20 मिनट से अधिक समय तक नहीं पहना जा सकता है। हर साल वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण लोगों की सेहत खराब होने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।

उन्होंने इससे पहले संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से कहा कि वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के साथ लोगों के हृदयघात, मस्तिष्काघात और फेफड़े के कैंसर की चपेट में आने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। इसकी वजह से दिल की बीमारी और फेफड़े में संक्रमण वाले मरीजों के साथ-साथ बच्चों तथा बूढ़ों की सेहत चिंताजनक हो जाती है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के सर्वधिक खतरनाक स्तर पर पहुंचने के साथ ही एम्स के ओपीडी में हृदय और सांस में तकलीफ वाले मरीजों की संख्या करीब 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और आंखों से संबंधित परेशानियों के मामले तथा मेंटल स्ट्रेस के मरीजों की संख्या भी 15-20 प्रतिशत ज्यादा हो जाती है।

प्रदूषण में जीने का मतलब रोज 2-3 सिगरेट पीने जैसा
उन्होंने कहा कि खतरनाक वायु प्रदूषण में जीने का मतलब रोज दो से तीन सिगरेट पीने जैसा है। प्रोफेसर गुलेरिया ने कहा कि वायु प्रदूषण हर प्रकार के मरीजों के लिए घातक तो है ही यह स्वस्थ व्यक्तियों पर भी खराब असर डालता है। बच्चे चूंकि तेजी से सांस लेते हैं इसलिए उनके अंदर प्रदूषित हवा अत्यधिक पहुंचती है।

बच्चों पर ज्यादा असर
आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) और लंदन के विशेषज्ञों के एक अध्ययन में बात सामने आई है कि प्रदूषण के कारण नवजात बच्चों के फेफड़े अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाते हैं। उन्होंने कहा कि हम वैसे बच्चों की बात कर रहे हैं जिनका कम से कम 10 साल तक वायु प्रदूषण में एक्सपोजर होता हैं। उनमें बुढ़ापे में सांस संबंधी बीमारी होने का खतरा अधिक होता है। गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी वायु प्रदूषण का गंभीर असर पड़ता है। अध्ययन में देखा गया है कि ऐसे बच्चों का वजन कम होता है और उनका समय से पहले जन्म लेने की आशंका बढ़ जाती है।

प्रदूषण से करीब 12 लाख 60 हजार लोगों की मौत
प्रदूषण से दिल का दौरा पड़ने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। प्रदूषण के सबसे छोटे कण पी एम 2.5 खून में प्रवेश कर जाते हैं। इसके कारण धमनियों में सूजन आ जाती है और इससे दिल के दौरे और मस्तिष्काघात का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि विज्ञान पत्रिका ‘लांसेट’ में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण करीब 12 लाख 60 हजार लोगों की मौत हुई थी। प्रोफेसर गुलेरिया ने कहा कि पीएम 2.5 और पीएम 10 कण इतने छोटे हैं कि इन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता। ये गैस के रूप में कार्य करते हैं। सांस लेते समय ये कण फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पड़ सकते हैं।

कैंसर उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा और मस्तिष्काघात कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप समय से पहले मृत्यु भी हो सकती है। पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ जाती है और साफ दिखना भी कम हो जाता है। सिर दर्द और आंखों में जलन भी होती है। इन कणों का हवा में स्तर बढ़ने से मरीज, बच्चे और बुजुर्ग सबसे पहले प्रभावित होते हैं। प्रोफेसर गुलेरिया ने कहा कि प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक हो जाने पर जरुरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलना चाहिए और सुबह-शाम की सैर और खुले में कसरत से बचना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के कुप्रभाव से व्यक्तिगत स्तर पर कुछ करके बचना मुश्किल है, समाज और सरकार के साझा प्रयास से ही इस पर नियंत्रण संभव है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.