सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के घरों में समय-समय पर सत्य नारायण भगवान की कथा तो होती ही होगी. क्या आप जानते हैं कि सत्य नारायण भगवान की पहली कथा कब और कहां हुई थी? इस कथा को सबसे पहले किसने कहा था और किसने सुना था? यदि नहीं, तो शास्त्रों के हवाले से यहां हम आपको बताने जा रहे हैं. श्रीमद भागवत महापुराण और स्कंद पुराण के मुताबिक भगवान शिव इस कथा को सबसे पहले कहा था. इन दोनों ही ग्रंथों में माता पार्वती को पहली श्रोता का दर्जा हासिल है.
इन दोनों ही ग्रंथों में बार-बार यह प्रसंग आता है, जिसमें भगवान शिव कभी अपने बायीं तरफ बैठाकर तो कभी सामने बैठाकर माता पार्वती को कथा सुनाते रहते हैं. श्रीमद भागवत महापुराण के मुताबिक दुनिया में सत्य नारायण भगवान की पहली कथा भी भगवान शिव ने माता पार्वती को ही सुनाई थी. यह कथा हजारों साल पहले अमरनाथ की गुफा में हुई थी. स्कंद पुराण में यह प्रसंग आता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती को यह कथा सुना रहे थे, उस समय वहां पर माता पार्वती के अलावा कोई और नहीं था.उस समय अमरनाथ गुफा की इसी कंदरा में एक शुक पक्षिणी का फूटा हुआ अंडा पड़ा था.
12 महीने गर्भ में रहने के बाद प्रकट हुए शुकदेव
भगवान शिव ने जैसे ही कथा शुरू की, यह अंडा साबूत हो गया और कथा पूरी होते-होते उसमें जीव का अंश दिखने लगा. संयोग से उसी समय हवा का एक तेज झोका आया और यह अंडा हवा के साथ उड़ते-उड़ते गंगोत्री के पास कृष्ण द्वैपायन ब्यास के आश्रम तक आ गया. यहां एक तरफ भगवान ब्यास तपस्या कर रहे थे और दूसरी ओर उनकी पत्नी माता वीतिका भी पूजा में बैठी थीं. उन्होंने मंत्र पढ़ने के लिए मुंह खोला ही था कि यह अंडा उनके मुंह के रास्ते गर्भ में पहुंच गया और ठीक 12 महीने गर्भ में रहने के बाद शुकदेव भगवान के रूप में जन्म लिया. वही शुकदेव बाद में श्रीमद भागवत कथा के पहले प्रवक्ता बने.
क्या है सत्य नारायण कथा?
इस प्रसंग पर चर्चा करते हुए यह जान लेना भी लाजमी है कि आखिर वो सत्य नारायण कथा है क्या? इसका जवाब भी श्रीमद भागवत महापुराण और स्कंद पुराण में मिलता है. इन दोनों ग्रंथों के मुताबिक भगवान नारायण ही सत्य है और सत्य ही नारायण है. इसलिए नारायण की कथा यानी श्रीमद भागवत कथा ही सत्य नारायण की कथा है. अब सवाल यह है कि क्या यही कथा हमारे घरों में भी पंडित जी सुनाते हैं. इस सवाल के जवाब में केवल यही कहा जा सकता है कि घरों में जो कथा होती है, वो मूल कथा का महात्म्य भर है.
बाद में जोड़ा गया है महात्म्य प्रसंग
इसे बाद में अलग अलग विद्वानों ने इसमें जोड़ा है. मूल श्रीमद भागवत कथा में ना तो इसके महात्म्य का वर्णन है और ना ही इसमें किसी देवता की आरती या स्तुति की गई है. यह विशुद्ध रूप से भगवान कृष्ण के विभिन्न स्वरुपों और उनकी लीलाओं का वर्णन है. मान्यता है कि इस कथा को पढ़ने, सुनने और जानने के बाद व्यक्ति के दिमाग से मौत का डर खत्म हो जाता है, अभिमान का नाश होता है और वह सहज ही मोक्ष को प्राप्त करता है.