दिल्ली के दंगल में अरविंद केजरीवाल को मात देने के लिए कांग्रेस ने आप के ही पुराने फॉर्मूले को आजमाना शुरू कर दिया है. आप कांग्रेस को उसी गुगली से बोल्ड करने की कवायद में जुट गई है, जिससे 2013 में वो खुद आउट हो गई थी. 2013 में अरविंद केजरीवाल की वजह से कांग्रेस दिल्ली की सत्ता से बाहर हो गई.
इसके बाद दिल्ली में हुए विधानसभा के 2 चुनावों में पार्टी शून्य पर सिमट गई. दिल्ली में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं, जहां सरकार बनाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है.
अरविंद के इस फॉर्मूले से मात खा गई थी कांग्रेस
2013 में नवगठित आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के चुनाव में अपने सभी बड़े चेहरे को मैदान में उतार दिया. नई दिल्ली सीट मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ उस वक्त अरविंद केजरीवाल खुद उतरे थे. अनिल चौधरी के खिलाफ पटपड़गंज सीट पर मनीष सिसोदिया को उतारा गया था.
इसी तरह मंगोलपुरी सीट पर राजकुमार चौहान के खिलाफ एक्टिविस्ट राखी बिड़लान, मालवीय नगर में किरन वालिया के सामने सोमनाथ भारती, लक्ष्मीनगर सीट पर अशोक वालिया के खिलाफ विनोद विन्नी को मैदान में उतारा गया था.
बड़े नेताओं के खिलाफ पॉपुलर चेहरे को उतारना आप के लिए फायदेमंद साबित हुआ. 2013 में दिल्ली की 28 सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली. 32 सीट जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई, लेकिन सरकार बनाने से चूक गई. 8 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस ने आप को बाहर से समर्थन कर दिया.
केजरीवाल की यह सरकार सिर्फ 49 दिनों तक ही चल पाई. 2015 में केजरीवाल पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए.2020 में भी उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ.
अब कांग्रेस ने आजमाया केजरीवाल का फॉर्मूला
2025 के चुनाव में कांग्रेस केजरीवाल को उन्हीं के दांव से मात देने में जुट गई है. पार्टी ने आप के बड़े नेताओं के खिलाफ अपने पॉपुलर फेस को उतार दिया है. मसलन, बुरारी सीट पर संजीव झा के सामने मंगेश त्यागी को टिकट दिया गया है. नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल के सामने पूर्व सांसद संदीप दीक्षित लड़ेंगे.
पटपड़गंज सीट पर अवध ओझा के मुकाबले अनिल चौधरी को टिकट दिया गया है. ग्रेटर कैलाश सीट पर सौरव भारद्वाज के सामने गर्वित सांघवी को उम्मीदवार बनाया गया है.
मंत्री इमरान हुस्सैन के सामने हारून युसूफ को उतारा गया है. सुलतान पुर माजरा सीट से मुकेश अहलावत विधायक हैं. अहलावत के सामने कांग्रेस ने जय किशन को उतारा है.
वहीं कालकाजी सीट पर मुख्यमंत्री आतिशी के सामने अल्का लांबा को उतारने की तैयारी है. लांबा पिछली बार चांदनी चौक से मैदान में उतरी थी, लेकिन इस बार यहां से कांग्रेस ने मुदित अग्रवाल को उतार दिया है.
दिल्ली में कांग्रेस के लिए करो या मरो का चुनाव
दिल्ली में कांग्रेस के लिए करो या मरो का चुनाव है. 2015 में कांग्रेस पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन उसे कुल 9 प्रतिशत वोट मिले. 2020 में उसके वोट प्रतिशत में भी गिरावट दर्ज की गई. 2020 के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 4 प्रतिशत वोट मिले.
कांग्रेस इस बार वोट प्रतिशत के साथ-साथ सीटों की संख्या भी बढ़ाने में जुटी है. पार्टी के लिए दिल्ली का चुनाव इसलिए भी करो या मरो का है, क्योंकि उसके पास अब पूरे दिल्ली के लिए नेता नहीं है.
स्थानीय स्तर के कई मजबूत नेता कांग्रेस छोड़ या तो बीजेपी में चले गए हैं या आम आदमी पार्टी का दामन थाम चुके हैं.
सोशल मीडिया पर फर्क है का कैंपेन शुरू
कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर फर्क है का कैंपेन शुरू किया है. कांग्रेस दिल्ली के उन पुराने रिकॉर्ड्स को सामने ला रही है, जो शीला दीक्षित के वक्त में राष्ट्रीय राजधानी के लिए किया गया था. इसी तरह पार्टी अरविंद केजरीवाल के पुराने वादों के जरिए भी आप पर निशाना साध रही है.
कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार के लिए दिल्ली के चुनावी रण में कूदेंगे.