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मतांतरण पर क्‍यों अब सख्‍त केंद्रीय कानून बनाने का आ गया है समय

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अनेक कारणों से मतांतरण का मसला फिर से चर्चा में है। वैसे इस संदर्भ में हमें यह समझना होगा कि मतांतरण दो परिवारों के बीच का मामला नहीं है, बल्कि इसे गंभीरता से लेते हुए सोचना चाहिए कि इसका परिणाम क्या हो सकता है। यह समाज और देश को किस दिशा में ले जाएगा। दरअसल देश में कुछ समूह और संगठन मतांतरण जैसे समाज विरोधी काम बिना किसी रोक-टोक के करने में लगे हुए हैं। इन संगठनों के निशाने पर आमतौर पर गरीब, अशिक्षित और विशेषकर दलित-आदिवासी लोग होते हैं। उल्लेखनीय है कि धर्म सामाजिक व्यवस्था का तो अभिन्न अंग है ही, वह व्यक्ति की मानसिकता को भी काफी हद तक प्रभावित करता है। प्रत्येक धर्म की अपनी मान्यताएं, विश्वास और आस्था को प्रकट करने के अपने माध्यम होते हैं, लेकिन जब कुत्सित मानसिकता से मतांतरण किया जाता है तो निश्चित ही यह समाज और देश के लिए बड़ी चुनौती साबित होता है।

पिछले दिनों तमिलनाडु में आत्महत्या करने वाली छात्रा लावण्या को न्याय दिलाने की मांग करते हुए सैकड़ों छात्रों ने तमिलनाडु सरकार और ईसाई मिशनरियों के खिलाफ प्रदर्शन किया। छात्रों ने आरोप लगाया कि लावण्या पर जबरन मतांतरण के लिए दबाव बनाया गया, जिस कारण वह आत्महत्या करने पर मजबूर हुई। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि मतांतरण एक राज्यव्यापी के बजाय देशव्यापी समस्या है, जिस पर एक सख्त केंद्रीय कानून बनाए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि स्वतंत्र भारत का इतिहास हमें यह पाठ पढ़ाता है कि देश में दो बार बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ। पहली बार वर्ष 1990 में इस्लामिक कट्टरपंथ के चलते कश्मीर से हिंदुओं को सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा और दूसरी बार 1997 में ब्रू हिंदुओं को मिजोरम से ईसाई कट्टरपंथियों के हमलों के चलते भागना पड़ा। इन दोनों ही मामलों में यह पलायन लगभग स्थायी ही बन गया और ये लोग अपने मूल स्थान को नहीं लौट पाए। मतलब भारत के बहुसंख्यक समाज को उन प्रदेशों से पलायन करना पड़ा, जहां पिछले कुछ सौ वर्षों में बड़े पैमाने पर मतांतरण के चलते वे अल्पसंख्यक हो गए थे। लिहाजा, मतांतरण कितना बड़ा संकट है, पिछले दो उदाहरणों से इसे आसानी से समझा जा सकता है।

प्रेम के बंधन से मतांतरण के बंधन की यात्रा : प्रेम विश्वास, त्याग और समर्पण पर टिका होता है। केवल विवाह बंधन में बंधने के लिए अपनी आस्था को छोड़ देना स्वयं को आहत करने जैसा है। प्रेम तभी चिरस्थायी रहता है, जब भावनात्मक दबाव बनाकर उसके वास्तविक स्वरूप को परिवर्तित करने का प्रयास नहीं किया जाए। लेकिन आज यही प्रेम जैसा पवित्र बंधन, मतांतरण करने का जरिया बनता जा रहा है। अक्सर खबरों में सामने आता रहता है कि अपनी पहचान और मजहब छिपाकर लड़कियों को फंसाने और उसके बाद उन पर मतांतरण कर निकाह का दबाव बनाने जैसा कार्य हुआ। झूठ और फरेब के जाल में फंसकर युवतियां कैसे अपनी जिंदगी खराब कर लेती हैैं, देश में दर्ज कई मुकदमे इसके ज्वलंत उदाहरण हैैं।

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अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो ये मुकदमे राज्य में विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 के तहत दर्ज किए गए हैैं। इन मुकदमों में त्रासद कहानियां हैैं कि किस तरह वे प्रेम के झूठे जाल में फंसीं और फिर साजिशन उनका मतांतरण कराकर उत्पीडऩ किया गया। ऐसे मामलों में हुई सख्ती का ही प्रतिफल है कि भोली-भाली युवतियों को अपने प्रेमजाल में फंसाकर उनका मतांतरण कराने वाले सैकड़ों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। लिहाजा, उनके खिलाफ कार्रवाई को देखते हुए युवतियों का मनोबल भी बढ़ा है और उन्होंने अपने शोषण के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। मासूम युवतियों की भावनाओं से खेलना, प्यार के झूठे वादों के जाल में फंसाना और इसके बाद मतांतरण कर उनकी जिंदगी को नारकीय बना देना, वस्तुत: यह जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है।

विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 में कठोर प्रविधान : यदि मतांतरण गलत सूचना, गैरकानूनी, जबरदस्ती, प्रलोभन या अन्य कथित रूप से कपटपूर्ण साधनों के माध्यम से किया जाता है तो यह कानून एक दशक तक की जेल की सजा का प्रविधान करता है। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश दूसरा ऐसा राज्य है, जहां लव जिहाद के संबंध में बीते दिनों लाया गया एक विधेयक अब कानून का रूप ले चुका है। इसके तहत ऐसे मतांतरण को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है, जो झूठ बोलकर या बलपूर्वक या प्रलोभन से या किसी कपट रीति से या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए किया जाए। इसके बाद अब तक उत्तर प्रदेश में जो मुकदमे दर्ज हुए हैैं, उनमें 40 से अधिक ऐसे मामले रहे जिनमें नाबालिग आरोपित हैैं। यह इस बात का द्योतक है कि पारिवारिक संस्कारों का क्षरण किशोरों को किस तरह अपराध की ओर उन्मुख कर देता है। यही नहीं, ऐसे कदाचारियों को कभी कभी परिवार की ओर से संरक्षण भी मिलता है। इसलिए ऐसे मामलों में और सख्ती बरती जानी चाहिए। साथ में परिवार को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे गलत संगति और गलत सूचना के शिकार तो नहीं बन रहे। कहना गलत नहीं होगा कि कानून बनाना ही समस्या का एकमात्र समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए परिवार और समाज की सजगता सबसे अधिक जरूरी होती है।

सनातन संस्कृति : सनातन संस्कृति में हर व्यक्ति को अपनी मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है और अगर बारीकी से देखें तो इसी में एक कमजोरी भी छिपी है। इसका लाभ उठाकर हिंदू समाज के कमजोर भाग को मतांतरण के लिए प्रायोजित संगठन निगलने का प्रयास करते हैं। उल्लेखनीय है कि संविधान सभा के सदस्यों ने भी मतांतरण की बढ़ती गतिविधियों के प्रति समय-समय पर चिंता व्यक्त करते हुए इन्हें रोकने के लिए केंद्रीय कानून बनाने की आवश्यकता जताई थी। उस समय संविधान निर्माताओं ने आवश्यकता पडऩे पर कानून बनाने का आश्वासन भी दिया था। मतांतरण की गतिविधियों के अध्ययन के लिए गठित नियोगी आयोग तथा वेणुगोपाल आयोग ने भी ऐसा कानून बनाने की आवश्यकता पर बल दिया था। सरला मुदगिल-प्रकरण में तो सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय में स्पष्ट निर्देश दिए थे। बीते कुछ वर्षों में 11 राज्यों में अवैध मतांतरण के विरुद्ध अधिनियम बनाए गए हैं, किंतु इस राष्ट्रव्यापी षड्यंत्र की गंभीरता को देखते हुए अवैध मतांतरण की राष्ट्र के सामाजिक स्वरूप पर आघात लगाने जैसी गतिविधियों पर पूर्णत: रोक लगाने के लिए कठोरतम केंद्रीय कानून बनाने की आवश्यकता है।

बेरोजगारी और अंधविश्वास : लोगों की गरीबी अथवा अन्य किसी मजबूरी का लाभ उठाकर या फिर प्रलोभन का सहारा लेकर उन्हें मतांतरित करने वालों ने देश के कई हिस्सों में आबादी के संतुलन को गड़बड़ा दिया है। इससे कई समस्याएं पनप रही हैं। आखिर क्या कारण है कि आमतौर पर गरीब लोग ही मतांतरण कर रहे हैं? छल-बल से मतांतरण कराकर महिलाओं का उत्पीडऩ करने वाले लोगों के खिलाफ कानून और सख्त किया ही जाना चाहिए। आर्थिक रूप से समृद्ध बनाकर मतांतरण जैसे कार्य को कम किया जा सकता है। जो लोग मतांतरण कर रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि दूसरे धर्म में जाकर उनका जीवनयापन बदल जाएगा, क्योंकि ज्यादातर जरूरतमंद और गरीब लोग ही ऐसा कर रहे हैं। उन्हें एक आस बंध जाती है। लेकिन मुद्दा ये है कि मतांतरण को रोका कैसे जाए? यह तभी संभव हो सकता है, जब लोगों को रोजगार मिले। वह आर्थिक रूप से समृद्ध हों। क्योंकि मतांतरण कराने वाले मिशनरी अथवा अन्य संगठन की वैसे परिवारों पर नजर रहती है, जो आर्थिक रूप से मुश्किल में होते हैं। बहरहाल, यह सब बहुत सुनियोजित तरीके से चलता है। अंधविश्वास का लाभ मतांतरण कराने वाले संगठन भरपूर उठाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अधिक हो रहा है, जहां लोगों को इस बारे में जागरूक करना होगा।

सामाजिक जागरूकता से होगा समस्या का समाधान % कोई व्यक्ति यदि अपने विवेक और स्वेच्छा से उपासना पद्धति बदलता है तो उस पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। यह दूसरी बात है कि अधिकांश इस्लामी देशों में स्वेच्छा से इस्लाम छोडऩे की सजा मृत्युदंड है। क्या एक सभ्य समाज स्वयं के मजहब के प्रचार के नाम पर दूसरों के मजहब की निंदा कर, प्रलोभन दे या भय दिखाकर उनका मतांतरण करना स्वीकार कर सकता है? बहरहाल, सामाजिक जागरूकता, सतर्कता और फिर कठोर कानून से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका सामाजिक नेतृत्व को निभानी होगी। धर्मगुरुओं और वरिष्ठजनों को ध्यान में रखना होगा कि शांति और सौहार्द से बढ़कर कुछ भी नहीं है। मतांतरण की समस्या खत्म करने के लिए सामाजिक आंदोलन अब जरूरी हो चला है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को प्रलोभन देकर अपनी सदियों पुरानी गौरवपूर्ण संस्कृति तथा समाज छोडऩे के लिए उत्प्रेरित कर पिछले दरवाजे से मतांतरण का काम करना चिंता पैदा करने वाला है। समाज को सोचना होगा कि अपने स्तर पर लोगों को कैसे जागरूक किया जाए। बताना होगा कि किसी समस्या का समाधान मतांतरण नहीं हो सकता। मतांतरण केवल समस्या पैदा कर सकता है, न कि समाधान।

अवैध मतांतरण ने भारतीय संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है। मतांतरण पर रोक के लिए केंद्रीय कानून बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। इसलिए उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों को भी छल-कपट से होने वाले मतांतरण पर रोक लगाने के लिए सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि ऐसे मतांतरण देश के मूल चरित्र को बदलने की मंशा से भी हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कानून को और कड़ा करने की बात कही है। लेकिन उचित तो यह होता कि एक केंद्रीय कानून निर्माण पर बात होती, क्योंकि ऐसा करने से ही मतांतरण पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

बहरहाल, छल-बल से मतांतरण कराकर महिलाओं का उत्पीडऩ करने वाले लोगों के खिलाफ कानून और सख्त किया जाना चाहिए। हालांकि वर्तमान केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय महत्व के कई विषयों पर उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। अत: विश्वास किया जा सकता है कि मतांतरण जैसे विषय पर भी केंद्र सरकार आवश्यक कार्रवाई जरूर करेगी। लेकिन सवाल उठता है कि क्या मतांतरण के विषय पर कड़ा कानून बनाने के पक्ष में विपक्षी दल खड़े होंगे? क्योंकि जब भी संसद में मतांतरण के विषय पर कड़ा कानून बनाने की बात हुई है, तब तब अल्पसंख्यक संगठनों ने उसका जबरदस्त विरोध किया है।

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