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पीएम मोदी के नक्शेकदम पर अखिलेश यादव, 2027 से पहले सपा को क्यों याद आए पसमांदा मुसलमान

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उत्तर प्रदेश में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से सियासी दांव चले जाने लगे हैं. कांग्रेस से लेकर AIMIM तक की नजर मुस्लिम वोटबैंक पर है, जिसके चलते सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी एक्शन में आ गए हैं. सपा अल्पसंख्यक मोर्चा के नेताओं के साथ सोमवार को बैठक करने के बाद अखिलेश यादव पीएम मोदी के नक्शेकदम पर चलते हुए पसमांदा मुसलमानों को भी साधने में जुट गए हैं. मंगलवार को पसमांदा मुस्लिमों के साथ अखिलेश ने बैठक करके बड़ा सियासी दांव चला है.

यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो दो हिस्सों में बंटी हुई है. एक अशराफ मुस्लिम, जिसमें शेख, पठान, सैय्यद, रांगड़, त्यागी, तुर्क जैसी मुस्लिम सवर्ण जातियां आती है. दूसरा पसमांदा मुस्लिम है, जिसमें ओबीसी की मुस्लिम जातियां शामिल हैं. मुस्लिमों में 15 से 20 फीसदी आबादी अशराफ मुस्लिमों की है तो पसमांदा मुसलमान 80 से 85 फीसदी हैं. बीजेपी की नजर पसमांदा मुस्लिमों पर है तो अखिलेश यादव पसमांदा और अशराफ दोनों ही मुस्लिम तबके के साथ सियासी बैलेंस बनाए रखने की कवायद में है.

पसमांदा मुस्लिमों के साथ अखिलेश की बैठक

अखिलेश यादव ने मंगलवार को लखनऊ के डॉ. राममनोहर लोहिया सभागार में अनीस मंसूरी की अध्यक्षता में पसमांदा मुस्लिम समाज की बैठक की. इस दौरान मंच पर सपा विधायक आशु मलिक और इलियास मंसूरी से लेकर वसीम राईनी, महबूब आलम अंसारी, दौलत अली घोसी, शेख सलाहुद्दीन, शहरे आलम कुरैशी, शादाब कुरैशी और अनवार अहमद अन्नू गद्दी उपस्थित थे. इस तरह से सपा ने ओबीसी मुस्लिमों की अलग-अलग जातियों के नेताओं के बहाने सियासी संदेश देने की कोशिश की.

अखिलेश ने अपनी सरकार के दौरान पसमांदा खासकर बुनकरों के लिए कामों का जिक्र किया और बीजेपी सरकार पर बुनकरों की योजनाओं को बंद करने का आरोप लगाया. सपा प्रमुख ने भरोसा दिलाया कि सपा बनने पर बुनकरों की तमाम समस्याओं का निदान करने के साथ उनके प्रशिक्षण, नई तकनीक एवं फैशन बाजार के ट्रेंड से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन पर भी ध्यान दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि पसमांदा समाज में तभी खुशहाली आएगी जब यूपी में बीजेपी को हराकर समाजवादी सरकार बनेगी. पसमांदा समुदाय के नेताओं ने भी अखिलेश यादव को भरोसा दिलाया है कि 2027 में सपा की सरकार बनाने में अहम रोल अदा करेंगे.

पीएम मोदी के नक्शेकदम पर अखिलेश यादव

अखिलेश यादव ने पीएम मोदी के नक्शेकदम पर चलते हुए पसमांदा मुस्लिमों को साधने का दांव चला है. पीएम मोदी का फोकस पसमांदा मुस्लिमों पर रहा है और बीजेपी नेताओं को भी पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने का टास्क दिया था. इसके बाद बीजेपी के कई मुस्लिम नेताओं ने पसमांदा के नाम पर संगठन को बनाकर सम्मेलन शुरू कर दिया था. इस तरह से बीजेपी की नजर ओबीसी मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने की थी. बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा ने पिछले दिनों यूपी में मुस्लिम सम्मेलन किया था, जिसमें ओबीसी मुस्लिम समुदाय की बड़ी आबादी जुटी थी.

बीजेपी की पसमांदा मुस्लिम सियासत को देखते हुए अखिलेश यादव सतर्क हो गए हैं, क्योंकि बीजेपी यूपी में पसमांदा मुस्लिमों के साथ अगड़े मुस्लिमों की तरफ से भेदभाव करने, सियासी भागीदारी से वंचित रखने और उनके हक में अभी तक कुछ नहीं कह कर सियासी एजेंडा सेट करती रही है. कांग्रेस से छिटकने के बाद सूबे में मुस्लिमों की पहली पसंद सपा बनी हुई है. ऐसे में पसमांदा मुस्लिमों के साथ बैठक करके अखिलेश यादव ने मुसलमानों के 80 फीसदी तबके को साधने का दांव चला है.

अखिलेश को क्यों याद आए पसमांदा मुस्लिम

बीजेपी के तमाम ओबीसी मुस्लिमों ने सपा पर सिर्फ अशराफ मुस्लिमों को तवज्जे देने के आरोप लगाए थे. अखिलेश यादव के आसपास अशराफ मुस्लिम नेता नजर आते थे, जिसे लेकर सवाल उठते रहते हैं. इसके अलावा जातिगत जनगणना भी होने जा रही है, जिसमें मुस्लिम जातियों की भी गिनती होनी है. पसमांदा मुस्लिमों की जिस तरह आबादी है, उसके चलते अखिलेश यादव के लिए पसमांदा मुसलमानों को साथ लेकर चलना सियासी मजबूरी भी बन गई है. अखिलेश यादव पीडीए यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला बनाकर चल रहे हैं, जिसे लेकर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने सवाल उठाया था कि सपा के पीडीए में मुस्लिम कहां है.

2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव के सामने अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की चुनौती खड़ी हो गई है. पसमांदा मुस्लिमों पर डाले जा रहे बीजेपी को डोरे को देखते हुए अखिलेश यादव ने भी पसमांदा मुस्लिमों को सियासी संदेश देने की कवायद शुरू कर दी है ताकि सपा की मुस्लिम सियासत पर कोई असर पड़ सके. 2022 में मुस्लिमों ने 85 फीसदी वोट सपा को दिया था और 2024 में 90 फीसदी मुस्लिम वोट सपा को मिले थे. मुस्लिमों की कुल आबादी का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पसमांदा मुसलमानों का है. इनको साधने के लिए अखिलेश ने अपनी सियासी एक्सरसाइज शुरू कर दी है.

यूपी में पसमांदा मुस्लिम वोटर कितने अहम

यूपी की सियासत में पसमांदा मुस्लिम वोटर काफी अहम है. पसमांदा यानी मुसलमानों के पिछड़े वर्ग, जिनकी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की कुल आबादी में 85 फीसदी हिस्सेदारी मानी जाती है. यूपी में मुसलमानों की 41 जातियां इस समाज में शामिल हैं, इनमें कुरैशी, अंसारी, सलमानी, शाह, राईन, मंसूरी, तेली, सैफी, अब्बासी, घाड़े और सिद्दीकी प्रमुख हैं. इसके अलावा पसमांदा मुसलमानों में कहार, मल्लाह, कुम्हार, गुज्जर, गद्दी-घोसी, माली, तेली, दर्जी, बंजारा, नट और मोची जैसी जातियां हैं.

पसमांदा मुसलमानों के नेता लगातार दावा करते हैं कि मुस्लिम आबादी में 80-85 प्रतिशत पसमांदा मुसलमान ही हैं, लेकिन उनको उनकी संख्या के हिसाब से हक नहीं मिलता. अल्पसंख्यकों के तमाम संगठनों, संस्थानों में उच्चवर्गीय मुसलमानों का ही वर्चस्व है. मुसलमानों में 80 प्रतिशत बड़ी संख्या है. समाज पर राज 20 फीसदी मुसलमान करते हैं, जो अशराफ मुस्लिम हैं. इन्हें धर्मांतरित मानते हैं और खुद को अरब, मध्य एशिया से आए मुसलमानों के वंशज मानते हैं. यही नहीं ये 20 फीसदी अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है, लेकिन बदलती हुई राजनीति में मुस्लिमों के दोनों ही तबको को साधकर अखिलेश सियासी बैलेंस बनाने में जुटे हैं.

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