2002 बुलंदशहर एनकाउंटर केस : यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- निष्क्रियता के लिए नौ पुलिसकर्मी जिम्मेदार

नई दिल्ली। साल 2002 में यूपी के बुलंदशहर जिले में हुए एक एनकाउंटर के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि अदालती प्रक्रियाओं की सेवा में देरी और निष्क्रियता के लिए पांच निरीक्षकों समेत नौ पुलिस कर्मियों को प्रथम दृष्टया जिम्मेदार पाया गया है। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल सितंबर में मामले की कार्यवाही में लापरवाही के लिए राज्य सरकार की खिंचाई की थी। साथ ही अंतरिम जुर्माने के तौर पर रजिस्ट्री में सात लाख रुपये जमा कराने का निर्देश भी दिया था।
मृतक के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे बेहद गंभीर मामला करार दिया था। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार ने जिस ढिलाई के साथ मामले में कार्रवाई की है वह बताती है कि सरकारी मशीनरी अपने पुलिस अधिकारियों का बचाव कर रही है। न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार की ओर से दाखिल की गई स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रारंभिक जांच में नौ लोगों को मामले में देरी और निष्क्रियता के लिए जिम्मेदार पाया गया है।
यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत को यह भी बताया है कि जिम्मेदार लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है। यही नहीं इनके खिलाफ जांच तीन महीने में खत्म हो जाएगी। अब मामले की सुनवाई अगले साल फरवरी के पहले हफ्ते में होगी। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी स्थिति रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले में सितंबर में प्रारंभिक जांच शुरू की गई थी। इसमें पांच निरीक्षकों, तीन हेड कांस्टेबल और एक कांस्टेबल को प्रथम दृष्टया जिम्मेदार पाया गया है। इन सभी के खिलाफ कार्यवाही की गई है।

राज्य सरकार की ओर से सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) को बताया गया है कि प्रशासन सभी अदालती आदेशों का पालन करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए तेजी से कार्रवाई कर रहा है। मामले की सुनवाई तेजी से समाप्त कराने की दिशा में हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। मामले में आठ आरोपी हैं जिनके खिलाफ संबंधित निचली अदालत में कार्यवाही चल रही है। सभी सेवानिवृत्त आरोपियों की पेंशन पर रोक लगा दी गई है। दो आरोपी सेवारत थे जिनका वेतन रोक दिया गया है।