Local & National News in Hindi

उपेंद्र कुशवाहा का बड़ा बयान! बेटे दीपक को मंत्री बनाने पर कहा- ‘कुछ लोगों को जहर पीना पड़ता है’, विपक्ष को दिया करारा जवाब

27

नीतीश कैबिनेट में उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश को भी जगह मिली है, वो भी बिना कोई चुनाव लड़े. दीपक को मिली इस अप्रत्याशित जिम्मेदारी की सियासी गलियारों में जमकर चर्चा हो रही है. परिवारवाद की बात हो रही है. इस मामले पर खुद उपेंद्र कुशवाहा ने जवाब दिया है. उन्होंने एक्स पर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट किया है. इसमें दीपक को मिली जिम्मेदारी का भी जिक्र किया है और विपक्ष पर तंज भी कसा है. उपेंद्र ने कहा, इस फैसले के अलावा कोई दूसरा विकल्प पार्टी को फिर से शून्य तक पहुंचा सकता था. समुद्र मंथन से अमृत और जहर दोनों निकलता है. कुछ लोगों को तो जहर पीना ही पड़ता है. वर्तमान के फैसले से परिवारवाद का आरोप मेरे ऊपर लगेगा. यह जानते हुए भी फैसला लेना पड़ा, जो मेरे लिए जहर पीने के बराबर था.

बेटे को मंत्री बनाए जाने के पीछे का तर्क देते हुए उपेंद्र लिखते हैं, अरे भाई, रही बात दीपक प्रकाश की तो जरा समझिए – विद्यालय की कक्षा में फेल विद्यार्थी नहीं है. मेहनत से पढ़ाई करके कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री ली है, पूर्वजों से संस्कार पाया है. इंतजार कीजिए, थोड़ा वक्त दीजिए उसे खुद को साबित करने का. वो करके दिखाएगा. आपकी उम्मीदों और भरोसा पर खरा उतरेगा. वैसे भी किसी भी व्यक्ति की पात्रता का मूल्यांकन उसकी जाति या उसके परिवार से नहीं, उसकी काबिलियत और योग्यता से होना चाहिए.

दोनों तरह के आलोचकों से कुछ कहना चाहता हूं

इससे पहले इसी पोस्ट में उपेंद्र ने लिखा, कल से देख रहा हूं हमारी पार्टी के फैसले को लेकर पक्ष और विपक्ष में आ रही प्रतिक्रियाएं. उत्साहवर्धक भी और आलोचनात्मक भी.. आलोचनाएं स्वस्थ भी हैं, कुछ दूषित और पूर्वाग्रह से ग्रसित भी. स्वस्थ आलोचनाओं का हृदय से सम्मान करता हूंऐसी आलोचनाएं हमें बहुत कुछ सिखाती हैंसंभालती हैं क्योंकि ऐसे आलोचकों का मकसद पवित्र होता हैदूषित आलोचनाएं आलोचकों की नियत का चित्रण करती हैं. दोनों तरह के आलोचकों से कुछ कहना चाहता हूं.

मेरा यह कदम जरूरी ही नहीं अपरिहार्य था

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, मेरा पक्ष है अगर आपने हमारे फैसले को परिवारवाद की श्रेणी में रखा है तो जरा मेरी विवशता को समझिए. पार्टी के अस्तित्व और भविष्य को बचाने व बनाए रखने के लिए मेरा यह कदम जरूरी ही नहीं अपरिहार्य था. सभी जानते हैं कि पूर्व में पार्टी के विलय जैसा भी अलोकप्रिय और एक तरह से लगभग आत्मघाती निर्णय लेना पड़ा था. उस वक्त भी बड़े संघर्ष के बाद आप सभी के आशीर्वाद से पार्टी ने सांसद, विधायक सब बनाए. लोग जीते और निकल लिए. झोली खाली की खाली रही. फिर से ऐसी स्थिति न आए इसलिए सोचना जरूरी था.

कुछ लोगों को तो जहर पीना ही पड़ता है

उन्होंने कहा, आज के हमारे फैसले की जितनी आलोचना हो लेकिन इसके बिना फिलहाल कोई दूसरा विकल्प फिर से शून्य तक पहुंचा सकता था. मैंने इतिहास की घटनाओं से यही सबक लिया है. समुद्र मंथन से अमृत और जहर दोनों निकलता है. कुछ लोगों को तो जहर पीना ही पड़ता है. वर्तमान के फैसले से परिवारवाद का आरोप मेरे ऊपर लगेगा. यह जानते हुए भी फैसला लेना पड़ा, जो मेरे लिए जहर पीने के बराबर था.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.