छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश सरकार कीटनाशक और रसायन से मुक्त अनाज, सब्जियों के लिए हर जिले में जैविक बाजार खोल रही है. इसके लिए सरकार प्राकृतिक और जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रही है. अब किसान भी जैविक खेती की तरफ काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. जैविक और रासायनिक दोनों सब्जियां और अनाज बिल्कुल एक जैसे दिखते हैं. जिसके चलते इसकी पहचान करना काफी मुश्किल है. कृषि वैज्ञानिक ने बताया जैविक और रासायनिक सब्जियों को पहचानने का आसान तरीका, आइये जानते हैं.
प्राकृतिक, जैविक और रासायनिक में अंतर
किसान खेती में ज्यादा फसल उत्पादन और अधिक मुनाफे के लिए जरूरत से ज्यादा रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक का उपयोग कर रहे हैं. जिसकी वजह से कई बीमारियां जन्म लेने लगी हैं. जहरीले अनाज और सब्जियों से लोगों को बचाने के लिए सरकार प्रयास कर रही है.
रासायनिक खेती से पानी हो रहा दूषित
प्राकृतिक, जैविक और रासायनिक खेती में काफी अंतर होता है. रासायनिक खेती में किसान फसलों को पकाने के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक और खतरनाक दवाइयों का प्रयोग करते हैं. इसके अलावा फसलों को कीड़ों और बीमारियों से बचाने के लिए भी विभिन्न प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, जो लोगों की जान के दुश्मन होते हैं. इसकी वजह से कई तरह की बीमारियां भी होती हैं. रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक की वजह से जमीन का पानी भी दूषित हो रहा है. क्योंकि मिट्टी के साथ जहरीला रसायन पानी में मिक्स हो जाता है.
प्राकृतिक खेती में बाजारों पर निर्भर नहीं रहते किसान
प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को बाजार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है. इस खेती को करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग होता है. जैसे देसी गाय के गोबर-मूत्र, पौधों के अर्क और सूक्ष्मजीवों का उपयोग शामिल है. जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है, खेती की लागत घटती है और पर्यावरण सुरक्षित रहता है. इसमें जीवामृत, बीजामृत और नीमास्त्र जैसे कीटनाशक और पोषक तत्व किसान अपने घर या खेतों में ही तैयार कर लेते हैं. इसके उपयोग से फसलों को पोषक तत्व और कीट-रोगों से सुरक्षा मिलती है.
घरेलू नुस्खों से असरदार जैविक कीटनाशक
जैविक खेती को परंपरागत खेती भी कहा जा सकता है. जैविक खेती में हर साल फसल को बदलकर लगाना पड़ता है. जिसे फसल चक्र कहा जाता है. नीम का तेल और गौमूत्र का उपयोग कर कीटनाशक बनाया जाता है. जिसका फसलों पर छिड़काव कर विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाव किया जाता है.
रासायनिक, प्राकृतिक और जैविक फसल की पहचान करना मुश्किल
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर नीलकमल पन्द्रे ने बताया कि “रासायनिक, प्राकृतिक और जैविक अनाज सब्जियों में अंतर करना काफी कठिन होता है. लेकिन इन्हें देखकर पहचान की जा सकती है. रासायनिक खाद और कीटनाशक उपयोग की गई सब्जी चमकदार और हेल्दी दिखती है, लेकिन ये मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती हैं. वहीं प्राकृतिक और जैविक तरीके से उगाई गई सब्जी और अनाज में चमक कम होती है. यह बेरंग सी नजर आते हैं और सब्जियों में छेद भी दिखाई देते हैं. लेकिन मानव स्वास्थ्य और मिट्टी की सेहत में फायदेमंद होते हैं. मध्य प्रदेश सरकार रासायनिक खादों और कीटनाशक का उपयोग कर उगाई गई सब्जियों की जांच के लिए खंडवा के कृषि विश्वविद्यालय में लैब खोलने जा रही है.”
प्राकृतिक और जैविक खेती से किसानों को दोगुना फायदा
पशु चिकित्सक डॉक्टर महेश कुमार सुलखिया ने ईटीवी भारत को बताया कि “प्राकृतिक खेती करने से किसानों को दोगुना फायदा होता है. क्योंकि प्राकृतिक खेती में गोबर और गोमूत्र से प्राकृतिक खाद और कीटनाशक तैयार किया जाता है. उसके लिए पशुपालन होता है. जिससे दूध का उत्पादन होता है. इस तरह प्राकृतिक खेती से पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ पशुपालन से दूध उत्पादन करके भी किसान कमाई करते हैं.”छिंदवाड़ा सब्जी मंडी में शनिवार को जैविक हाट बाजार लगाया गया. जिसका शुभारंभ छिंदवाड़ा जिले के प्रभारी मंत्री राकेश सिंह ने किया. प्रभारी मंत्री राकेश सिंह ने बताया कि “लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक और जैविक सब्जियां और अनाज उगाने वाले किसानों को एक ही जगह पर इकट्ठा होकर बेचने की सुविधा दी गई है. इससे खरीदने वालों को भी सुविधा होगी. इसके लिए प्राकृतिक और जैविक हाट बाजार शुरू किया गया है. मध्य प्रदेश सरकार का प्रयास है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा जैविक खेती के लिए जागरूक किया जाए.”
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