बिहार के सोन क्षेत्र में छठ महापर्व की प्राचीन परंपरा, यहां महर्षि च्यवन की पत्नी सुकन्या ने किया था पहला व्रत
औरंगाबाद। बिहार का सोन घाटी क्षेत्र सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध है। यहां छठ महापर्व की परंपरा प्राचीन है। आस्था एवं भक्तिभाव के साथ इलाके में छठ पूजा की जाती है। सोन के बाएं पड़ोसी भोजपुरिया क्षेत्र एवं दाएं पड़ोस के मगध क्षेत्र में छठ महापर्व का विशेष महत्व है। छठ व्रत के जो प्राचीन गीत हैं उनमें जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, वे इसी क्षेत्र के पूर्व मागधी (भोजपुरी-मगही मिश्रित) या प्राकृत भाषा के हैं। पूजन सामग्री में जिन वनोपजों का इस्तेमाल किया जाता है वह भी सोन घाटी क्षेत्र के ही हैं। लेखक कृष्ण किसलय के अनुसार इस पर्व में कंदमूल (सुथनी, ओल, शकरकंद, अदरख, हल्दी), कोहड़ा, ईख, कद्दू (लौका) आदि की मौजूदगी यह बताता है कि यह पर्व खाटी देसी है। मान्यता है कि यहीं के देवकुंड में महर्षि च्यवन की पत्नी सुकन्या ने पहली बार छठ व्रत किया था और इसी से ऋषि को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी।
सुकन्या ने पहली बार किया था छठ व्रत
औरंगाबाद के हसपुरा प्रखंड में देवकुंड स्थित है। पं. लाल मोहन शास्त्री का मानना है कि महर्षि च्यवन की पत्नी सुकन्या ने पहली बार छठ व्रत किया था और इसी से ऋषि को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी। उन्होंने ही पहली बार अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य दिया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। मगध विश्वविद्यालय में शोधार्थी रहे आशुतोष मिश्रा का दावा है कि देवकुंड ही आर्यावर्त में छठ पर्व की जन्मभूमि है। उनका मानना है कि च्यवन ऋषि एवं उनकी पत्नी सुकन्या सतयुग में थे, जो भगावन श्रीराम के त्रेतायुग से भी पहले का है। यानी रामायण काल से पहले देवकुंड में सुकन्या छठ कर चुकी थीं। हालांकि इसपर शोध बाकी है।
देव, उमगा और देव मार्कंडेय के महत्वपूर्ण सूर्य मंदिर
जब बात सूर्योपासना से जुड़ी हो तो सोन घाटी के तीन मंदिर महत्वपूर्ण नजर आते हैं। वैसे मुगलों के आक्रमण के कारण सोन घाटी के लगभग सभी प्राचीन सूर्य मंदिर सदियों वीरान पड़े रहे या जमींदोज हो गए थे।
- मार्कंडेय इसी तरह का प्राचीन सूर्य मंदिर है। रोहतास जिले के देव मार्कंडेय का तो नामोनिशान मिट चुका है और अब वहां विष्णु और शिवलिंग की पूजा होती है। जीव विज्ञानी सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन जब 1812 ई. में देव मार्कंडेय पहुंचे थे, तब सूर्य मंदिर का अस्तित्व बचा हुआ था। इस सूर्य मंदिर का पुनर्निर्माण फूदीचंद या फूलचंद्र चेरों की रानी गोभावनी ने ईसा से 63 वर्ष पूर्व करवाया था।
- इसी तरह यदि देव की चर्चा करें तो वहां मंदिर के बाहर शिलालेख के मुताबिक इसे इला के पुत्र एल द्वारा निर्मित कराया बताया जाता है। उसपर लिखे एक श्लोक के अनुसार इसे साढ़े नौ लाख वर्ष पुराना बताया जाता है, जो कि अवैज्ञानिक और अस्वीकार्य तथ्य है। हालांकि, इसपर शोध बाकी है।
- इसी तरह उमगा की भी प्राचीनता महत्वपूर्ण है। यहां इसे मंदिर निर्माण के केंद्र के रूप में देखा जाता है। उमगा का अर्थ उमा मतलब पार्वती और गा मतलब गमन यानी पार्वती के साथ शिव का यहां गमन हुआ, अर्थात दोनों इस रमणीक पहाड़ी पर भ्रमण करने आते थे, ऐसी धारणा के कारण इसका नाम उमगा पड़ा होगा।