
पटना। बिहार में जहरीली शराब (Spurious Liquor) से माैत पर सियासत गर्म है। इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) भी इस मामले को लेकर काफी गंभीर हैं। शराबबंदी पर 16 नवंबर को समीक्षा बैठक बुलाई है। इसमें बड़े फैसले लिए जाने की उम्मीद है। इन सबके बीच भारत में शराब बनाने वाली कंपनियों के परिसंघ (Confederation of Indian Alcoholic Beverage Companies) ने बिहार सरकार से आग्रह किया है कि बिहार में शराबबंदी समाप्त की जाए। इससे पूर्व भी सीआइएबीसी ने मुख्यमंत्री से शराबबंदी को लेकर पुनर्विचार का आग्रह किया था। जिम्मेदार और नियंत्रित तरीके से शराब का व्यापार शुरू करने की अनुमति मांगी थी।
जहरीली शराब से हो चुकी है कई लोगों की मौत
बता दें कि पांच अप्रैल 2016 को बिहार सरकार ने राज्य में शराब निर्माण, बिक्री, भंडारण एवं परिवहन पर रोक लगा दी थी। इसको लेकर विधानसभा और विधान परिषद से कानून भी पारित किया गया था। इसके बाद से राज्य में शराब पीना, बेचना, इनका भंंडारण और निर्माण प्रतिबंधित हाे गया। हालांकि, अवैध रूप से शराब का धंधा चलता रहा। पुलिस और उत्पाद विभाग की तमाम चौकसी के बावजूद तस्कर सक्रिय रहे। इस बीच जहरीली शराब से दर्जनों लोगों की मौत हाे गई। इसपर विपक्षी दलों समेत एनडीए की प्रमुख घटक दल भाजपा ने भी कई बार उंगली उठाई।

जिम्मेदार और नियंत्रित तरीके से व्यापार शुरू करने का आग्रह
इधर रविवार को सीआइएबीसी ने बिहार में एनडीए सरकार से शराबबंदी समाप्त करने पर फिर से विचार करने की अपील की है। साथ ही शराबबंदी के बिना महिलाओं की मदद के लिए सरकार की घोषणा सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाने के सुझाव भी दिए हैं। रविवार को जारी बयान में CIABC के महानिदेशक विनोद गिरी ने कहा है कि शराबबंदी से बिहार का विकास और प्रगति प्रभावित हुआ है। प्रतिवर्ष करीब 10 हजार करोड़ रुपये का राजस्व का नुकसान हो रहा है। एक तरह से शराबबंदी नीति की भारी कीमत राज्य को चुकानी पड़ रही है। राज्य में अवैध और नकली शराब की बिक्री हो रही है। गिरि ने कहा है कि 2016 से करीब एक लाख करोड़ लीटर शराब जब्त की गई है। यह दर करीब 10 फीसद है। इसका मतलब है कि 10 करोड़ की अवैध शराब बिहार लाई जा रही है। पुलिस क्राइम कंट्राेल की जगह शराब जब्ती में लगी है।