जनजाति के जननायकों को गौरव प्रदान करके मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने वो काम किया है, जिसकी विवेचना और अर्थपूर्ण मूल्यांकन निश्चित समय में करना संभव नहीं हैं। ये एक ऐसा कदम है, जिसके परिणाम आने वाले दशक ही नहीं बल्कि सदियों को प्रभावित करेंगे। अगर हम कहें, कि हिंदुस्तान की सांस्कृतिक विरासत को सहेजकर रखने में प्रयोगधर्मी शिवराज सिंह की ये कवायद मील का पत्थर साबित हो सकती है, तो इसमें कोई बेमानी नहीं होगी। इन्हीं तमाम संभावनाओं के बीच जो एक प्रमुख बिंदू ऐसा भी है, जो अपने आपमें एक क्रांतिकारी बदलाव का द्योतक होने के संकेत दे रहा है, और वह बदलाव जुड़ा है, आदिवासी वर्ग के बीच तेजी से घुसपैठ कर रही ईसाई मिशनरीज के प्रभाव को कम करने के साथ।
इस बात को नकारा नहीं जा सकता, कि बीते एक समय में मध्यप्रदेश के साथ देशभर में जनजातीय वर्ग हिंदू धर्मांतरण करने वाले कई संगठनों के निशाने पर रहा है, वो लोग कभी इनकी गरीबी और पिछड़ेपन का फायदा उठाते हैं, तो कभी इस वर्ग को ये एहसास दिलाया जाता है, कि हिंदू धर्म उन्हें उचित सम्मान नहीं दे रहा। पिछले एक अर्से में तो आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग बताकर उनके धर्मांतरण की कवायदें की जा रही है। ऐसे में मौजूदा सत्तासीनों के सामने ये चुनौती थी, कि किस तरह वो जनजाति वर्ग को समाज से बांधकर रख सकें और उसे ये संदेश देने में कामयाब हो जाएं, कि ये समाज उन्हें उचित सम्मान दे रहा है।
हालांकि इससे पहले कई संगठन और सरकारें इस तरह की कवायदें कर चुकी थीं, लेकिन फिर भी वो उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हो सकी, मानो कहीं न कहीं हर कोई ये संदेश देने में नाकाम हुआ था, कि समाज जनजाति वर्ग का शुभचिंतक है, लेकिन शिवराज सरकार की इस कवायद ने संबंधित वर्ग के भीतर कुछ ही समय में वो विश्वास जगा दिया है, जिसकी जरूरत इस वक्त हमारे समाज को सबसे अधिक थी। तमाम चिंतकों को ये उम्मीद है, कि आने वाले समय में ये विश्वास और भी गाढ़ा होगा और लगातार अपनी पुरातन संस्कृति और संप्रुभता से कटता जा रहा जनजातीय वर्ग इस खास सम्मान को पाकर खुद को इनके और करीब पाएगा, इतना करीब कि फिर कोई और इन्हें बहकाने में सफल नहीं हो सकेगा।
कुल मिलाकर अगर हम मानें, तो जनजाति वर्ग को सम्मान देकर शिवराज सरकार ने संबंधित तबके के भीतर एक खास तरह का विश्वास कायम किया है, यह विश्वास समाज की मुख्यधारा से उनके जुड़ाव का संकेत देने के साथ उनके सम्मान की भी कहानी लिख रहा है, यह वही सम्मान है, कि तलाश उन्हें सदियों से थी और इसकी कमी के कारण ही एक बार के लिए वह समाज की मुख्यधारा से खुद को दूर मान बैठे थे और दूसरे लोगों के साजिश का हिस्सा बनकर इससे दूर चले जा रहे थे।