रायपुर। कोटा क्षेत्र में एक निवास स्थान पर आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस पर व्यासपीठ से आचार्य पं. नंदकुमार चौबे ने कहा कि संस्कार बचपन में ही दिया जा सकता है, क्योंकि गीली मिट्टी को आकार दिया जा सकता है, जबकि मिट्टी के पके हुए बर्तन में संशोधन की संभावना नहीं होती। उसी प्रकार एक उम्र के बाद किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को बदलने में कठिनाई होती है।
बचपन से ही नकल के स्वाभाविक गुण के कारण बच्चे अपने माता-पिता का अनुसरण करने लगते हैं और यहीं से उनके सीखने का क्रम शुरू होता है। भक्त ध्रुव की कथा सुनाते हुए आचार्य ने कहा कि जिस प्रकार रानी सुनीति के धर्म परायण होने से ध्रुव को इसका संस्कार प्राप्त हुआ, उसी प्रकार आज के माता-पिता भी अपने बच्चों की अभिवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए स्वयं में परिवर्तन लाने का प्रयास करें।
राजा का धर्म होता है कि वह प्रजा का पुत्रवत पालन करे
आचार्य चौबे ने राज धर्म के वृहद व्याख्या करते हुए कहा कि भक्त ध्रुव के वंश में बेन नामक राजा हुआ, जो अपने प्रजा के ऊपर अत्याचार करता था। राजा का धर्म होता है कि वे प्रजा का पुत्रवत पालन करें और अपने और प्रजा के कर्तव्य के मध्य संतुलन बनाए रखें, जिसमें राजा व्हेन पूर्ण रूप से असमर्थ रहे, बल्कि प्रजा का शोषण करने लगे। जब राजा बेन द्वारा सभी जनता दुखी हो गई, तब ब्राह्मणों ने श्राप देकर बेन का अंत कर दिया। फिर भगवान नारायण ने पृथु रूप में अवतार लेकर गाय बनी हुई पृथ्वी का दोहन कर अपने प्रजा का सही ढंग से पालन पोषण करते हुए राजधर्म का पालन किया।