मुंबई । जाति प्रमाण पत्र मामले में कास्ट स्क्रूटनी कमेटी ने एनसीबी के पूर्व अधिकारी समीर वानखेड़े को क्लीन चिट दे दी है। समिति ने वानखेड़े के जाति प्रमाण पत्र को भी बरकरार रखा है।अपने आदेश में पैनल ने दोनों पक्षों से सबमिशन को हटा दिया था और फिर कहा था कि वानखेड़े जन्म से मुस्लिम नहीं थे। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि समीर और उनके पिता ज्ञानेश्वर वानखेड़े ने हिंदू धर्म का त्याग नहीं किया था और मुस्लिम धर्म को अपनाया था। आदेश में कहा गया है कि समीर और उनके पिता महार-37 अनुसूचित जाति से हैं, जिस हिंदू धर्म में मान्यता प्राप्त है। वानखेड़े ने इस आदेश के तुरंत बाद ट्विटर पर लिखा, “सत्यमेव जयते।”समिति ने माना कि महाराष्ट्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री और राकांपा नेता नवाब मलिक और मनोज संसारे, अशोक कांबले और संजय कांबले जैसे अन्य शिकायतकर्ता अपनी शिकायत और दावों को साबित करने में सक्षम नहीं हुए। बता दें कि इन्होंने समीर वानखेड़े के जाति प्रमाण पत्र के बारे में शिकायत की थी।
यह मुद्दा पिछले साल तब उठा था, जब वानखेड़े मुंबई में नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो के प्रमुख थे। वानखेड़े ने आरोप लगाया कि मलिक ने उस समय एक कैबिनेट मंत्री के रूप में जाति प्रमाण पत्र का मुद्दा केवल इसलिए उठाया था क्योंकि उनकी टीम ने मलिक के दामाद समीर खान को ड्रग मामले में गिरफ्तार किया था। खान 2021 की पहली छमाही में जेल में थे। रिहाई के बाद मलिक ने ये आरोप लगाना शुरू कर दिए।
मलिक और अन्य ने आरोप लगाया था कि वानखेड़े के पिता ज्ञानेश्वर वानखेड़े ने हिंदू धर्म त्याग दिया था और अपनी शादी करने के लिए मुस्लिम बन गए थे। उनकी पत्नी जन्म से मुस्लिम थी। आरोपों के अनुसार, वानखेड़े मुस्लिम पैदा हुए थे और उन्होंने उस धर्म में निहित रीति-रिवाजों से एक मुस्लिम महिला से शादी भी की थी। हालांकि, जब जाति जांच ने शिकायतकर्ताओं को प्राप्त करने पर वानखेड़े को नोटिस जारी किया, तब उनके वकील दिवाकर राय सहित वानखेड़े की कानूनी टीम ने विस्तार से आरोपों का जवाब दिया था।
जाति जांच समिति की अध्यक्षता अनीता मेश्राम (वानखेड़े) ने की थी और सलीमा तडवी सदस्य थीं और सुनीता मेट सदस्य सचिव थीं। आदेश पर निराशा व्यक्त करते हुए कमले के लिए पेश हुए वकील नितिन सतपुते ने कहा, “समीर वानखेड़े की जाति को मेरे द्वारा पहले ही उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। हमें जाति जांच समिति से कोई ज्यादा उम्मीद नहीं थी। लेकिन उच्च न्यायालय में विश्वास है।
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