लंदन। कोरोना काल में लोगों का सोशल मीडिया की तरफ ज्यादा झुकाव हो गया और इससे सामाजिक दूरी बढ़ने लगी।अचानक से हुए इस बदलाव से हमारे जीवन में असर पड़ा।सोशल मीडिया के अधिक उपयोग ने कई आपसी भावनात्मक पहलू को खत्म कर दिया और साथ ही कई तरह की गहरी मानसिक पीड़ा को भी जन्म दे दिया।इस बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बढ़ते उपयोग को लेकर जर्मनी के बोचम में रूहर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च की और पता लगाया कि इस बदलाव ने मानव जीवन को कितना प्रभावित किया है।
जानकारी के अनुसार इस रिसर्च का नेतृत्व विश्वविद्यालय के मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और उपचार केंद्र में सहायक प्रोफेसर, जूलिया ब्रायलोसवस्काया ने किया।रिसर्च में कई बातें सामने आईं। शोधकर्ताओं ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य दो परस्पर संबंधित पहलुओं पर निर्भर करता है- सकारात्म और नकारात्मक पहलू।इस अध्ययन पर मनोचिकित्सक डॉ शेल्डन ज़ाब्लो के साथ चर्चा की।मानसिक स्वास्थ्य पर डॉ जाब्लो ने चेतावनी देते हुए कहा कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग पारस्परिक बंधनों को कमजोर कर देता है और यह व्यक्ति के मन में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
एक्सपर्ट का मानना है कि सोशल मीडिया में कुछ सीमाएं निर्धारित होनी चाहिए।लोगों को इसके उपयोग से मिलने वाले सुख को सीमित करने की आवश्यकता के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।इसके साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि सोशल मीडिया के अतिरिक्त हमारे पास ऐसे कौन से साधन हैं जिनसे हमें उसी तरह की खुशी का एहसास कर सकते हैं जो हमें सोशल मीडिया के उपयोग से मिलती है। मनोचिकित्सक डॉ. जाब्लों ने कहा कि किसी भी तरह की मानसिक बीमारी में अधिकांशत: व्यायाम करने की सलाह दी जाती है।यदि कोई व्यक्ति व्यायाम नहीं करता तो उसे कहा जाता है कि बिना व्यायाम दवा ठीक प्रकार से काम नहीं करेगी।डॉ ज़ाब्लो ने कहा कि व्यायाम न्यूरोट्रांसमीटर, मस्तिष्क के “प्राकृतिक एंटीडिपेंटेंट्स और एंटी-चिंता अणुओं” के उत्पादन को बढ़ाता है।इससे मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है लेकिन दूसरी तरफ सोशल मीडिया का अधिक प्रयोग मेंटल हेल्थ में बाधा पहुंचाता है।डॉ. ब्रेलोस्वस्काया और उनकी टीम ने तर्क दिया कि जिन लोगों ने सोशल मीडिया में अधिक समय खर्च किया उनकी बजाय जिन लोगों ने शारीरिक गतिविधियों में समय ज्यादा दिया उनमें नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य परिणामों में गिरावट दर्ज की गई।इसके अलावा शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोग से कोविड-19 के कारण होने वाले तनाव और धूम्रपान के व्यवहार में कमी आने की भी उम्मीद की।रिसर्च के लिए कुल 642 व्यस्क लोगों शामिल किया गया था।इन सभी लोगों को 4 समूहों में बांटा गया।
सोशल मीडिया समूह में 162 व्यक्ति थे, शारीरिक गतिविधि 161 का समूह, 159 का संयोजन समूह और 160 का नियंत्रण समूह था।2 सप्ताह में, सोशल मीडिया समूह ने अपने दैनिक एसएमयू समय को 30 मिनट कम कर दिया और पीए समूह ने अपनी दैनिक शारीरिक गतिविधि को 30 मिनट तक बढ़ा दिया।संयोजन समूह ने दोनों तरह के बदलाव को लागू किया, जबकि नियंत्रण ने अपने व्यवहार को नहीं बदला।डॉ. ब्रेलोस्वस्काया और उनकी टीम ने निष्कर्ष निकाला कि उनके हस्तक्षेप ने लोगों को सोशल मीडिया के साथ बिताए समय को कम करने में बड़ी मदद की। इसके साथ ही रिसर्च में यह भी सामने आया कि सोशल मीडिया के उपयोग से उसके साथ एक भावनात्मक बंधन भी होने लगता है।हालांकि इस अध्ययन में एक सबसे बड़ी कमी विविधता की थी।रिसर्च के लिए जितने प्रतिभागी थे वे सभी युवा, महिलाएं, जर्मन और उच्च शिक्षित लोग थे।
डॉ. मेरिल ने कहा कि अगर इस रिसर्च को अधिक और विविध लोगों के साथ दोहराया जाता है तो यह काफी दिलचस्प होगा और परिणाम के समान हो सकते हैं।डॉ. ब्रेलोस्वस्काया के शोध से पता चलता है कि सोशल मीडिया और शारीरिक गतिविधि में मामूली बदलाव करके मानसिक स्वास्थ्य को और अधिक सुविधाजनक बनाया जा सकता है जो कि हमारे मेंटल हेल्थ को बढ़ाने में मदद कर सकता है। बता दें कि कोरोना महामारी के बाद से सोशल मीडिया में उपयोग कई गुना बढ़ गया। डिजिटल दुनिया के उपयोग ने हमारे स्वास्थ्य के साथ साथ हमारे जीवन बहुत बड़ा असर डाला है।
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