
पेगासस जासूसी मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है। उच्चतम न्यायालय ने ‘पेगासस’ जासूसी विवाद की जांच के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से जांच आयोग के गठन पर नाखुशी जाहिर करते हुए उसके कामकाज पर शुक्रवार को रोक लगा दी। न्यायमूर्ति एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता में गठित जांच आयोग के कामकाज पर तत्काल रोक लगा दी। इसके साथ ही पीठ ने लोकुर आयोग को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।
याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संस्था‘ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट’की जनहित याचिका पर शीर्ष अदालत ने संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया। एक स्वयंसेवी संस्था ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत से राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग के कामकाज पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया है। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से उसी मामले की जांच के लिए अलग आयोग गठित करना अनुचित है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रख रहे डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि राज्य सरकार ने मौखिक वचन दिया था कि वह अलग से आयोग का गठन करेगी। बावजूद इसके सरकार की ओर से आयोग की गई और बताया जा रहा है कि जांच की जा रही है।
इस पर सिंघवी ने कहा कि सरकार उस आयोग के कामकाज में दखल नहीं दे रही। पीठ ने पश्चिम बंगाल की इस दलील को अस्वीकार कर दिया तथा नाखुशी जाहिर करते हुए आयोग के कामकाज पर रोक के साथ-साथ उसे नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा। सर्वोच्च अदालत ने पेगासस जांच के मामले में एक स्वतंत्र जांच आयोग का गठन किया था। याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संस्था ने गुरुवार को विशेष उल्लेख के तहत पश्चिम बंगाल द्वारा गठित जांच आयोग के मामले में तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया था। पेगासस विवाद प्रमुख विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, वकीलों, नौकरशाहों, कई मंत्रियों और सत्ता से जुड़े लोगों की इजरायली जासूसी सॉफ्टवेयर के जरिए मोबाइल पर हुई आपसी बातचीत अवैध तरीके से सुनने के आरोपों से जुड़ा हुआ है।