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असली जॉली कौन… दिलवाला या दौलतवाला, हाउसफुल 5 कितना पावरफुल?

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सालों पुराना वो गीत याद है न- यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए- प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए. यकीन मानिए हमारा सिनेमा घुमा-फिरा कर इस जज्बात और फिलॉस्फी को नए-नए कलेवर में पिरो ही देता है. और हर बार दर्शक इस पर लट्टू हो जाते हैं. वास्तविक दुनिया में पैसा भले ही खुदा से कम नहीं होता लेकिन ड्रामा और फैंटेसी में दर्शकों का दिल वह किरदार लूट ले जाता है जो दौलत के बदले बड़ा दिल दिखाता है. निश्चिंत रहिए मैं हाउसफुल 5 की कहानी का क्लाइमैक्स रिवील नहीं करूंगा. विस्तार से कहानी और क्लाइमैक्स जानने के लिए कृपया थिएटर का रुख करें. यहां जो कुछ भी लिखूंगा दिल से लिखूंगा. क्योंकि मैं भी मानता हूं कि दिल के बाजार में दौलत नहीं देखी जाती.

बहरहाल हाउसफुल 5 हंसाने-गुदगुदाने के लिए एक साथ पांच हजार थिएटरों में रिलीज हो गई है. आप चाहे जिस भी शहर में रहते हों, फिल्ममेकर्स ने आपकी पहुंच और सुविधा का पूरा ख्याल रखा है. आएं और अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन, रितेश देशमुख, नाना पाटेकर, जैकलिन फर्नांडीस जैसे 19 कलाकारों को देखकर ठहाके लगाएं. फिल्म दो फ्लेवर वाले क्लाइमैक्स के साथ मौजूद है. क्लाइमैक्स अपनी पसंद के मुताबिक चुनें. दो ऑप्शन है- 5A और 5B. भाई, बाजार में आइसक्रीम या तमाम फास्टफूड के कई फ्लेवर आ गए तो फिल्मों के भी दो फ्लेवर क्यों नहीं हो सकते. फिल्म भी तो प्रोडक्ट है. दो फ्लेवर यानी दो किस्म का मज़ा.

हाउसफुल 5 में कॉमिक उट पटांगा

मज़ा हर काम में जरूरी है. बिना मज़ा के बाज़ार नहीं बढ़ता. सिनेमा भी जानदार तभी होता है जब वह मस्ती और मज़ा दे. हाउसफुल वालों ने यहां इस मज़े का पूरा ख्याल रखा है. मस्ती में मगन रहने वाले फिल्म देखें और हंसे. हंसना ही जीवन है. हंसी चुटकुलों से भी आती है और स्क्रीन पर ऊटपटांग किस्म की हरकतें देखने से भी. इन हरकतों का कोई लॉजिक नहीं होता. यों किसी भी मसाला फिल्म में कोई लॉजिक नहीं होता. लॉजिक खोजने वाले खुद को घर में लॉक करके रखें. कॉमिक के कलाकारों ने इसे स्लैपस्टिक जैसा क्लासिक नाम भी दिया है. इसे दुनिया उट पटांगा से जोड़ सकते हैं.हाउसफुल 5 फिल्म की तरह अभी तक मैं भी केवल ऊंटपटांग कॉमिक ही लिख रहा था. चलिए जरा कहानी को आगे भी बढ़ाते हैं. यों इस फिल्म का भी यही हाल है. कहानी ऊंटपटांग किस्म की उठापटक के बाद थोड़ी-सी खिसकती है. ठीक उसी तरह जैसे कि पूरे हफ्ते भर में एकता कपूर के किसी सीरियल की कहानी एक कमरे से निकल कर दूसरे कमरे तक पहुंचती है.

अकूत दौलत पर 3 जॉली की नज़र

जिन लोगों ने हाउसफुल की अब तक की पिछली चारों सीरीज देखी थी और इस बार पांचवीं सीरीज भी देख ली है, वो तुलना करें कि कौन-सा हाउसफुल सबसे ज्यादा वंडरफुल है. फिलहाल मैं हाउसफुल 5 की बात कर रहा हूं. किसी भी कहानी में दिल और दौलत के बीच द्वंद्व एक शाश्वत सच है. हाउसफुल 5 की कहानी में भी इसे चस्पां करके रखा गया है. फिल्म की कहानी की सबसे बड़ी यूएसपी यही है कि यहां एक नहीं बल्कि तीन-तीन जॉली हैं- जिनमें अरबपति बनने की चाहत है. असली जॉली कौन है और उसके मंसूबे क्या है- यही फिल्म का सार है. तीनों खुद को मृत अरबपति रणजीत का वारिस होने का दावा करते हैं और अरबों की संपत्ति पर कब्जा करना चाहते हैं.

तरुण मनसुखानी के निर्देशन में बनी हाउसफुल 5 की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है इन तीनों जॉली की पोल खुलती जाती है. एक है जलाबुद्दीन उर्फ जॉली (रितेश देशमुख), दूसरा जूलियस उर्फ जॉली (अक्षय कुमार) और तीसरा है जलभूषण उर्फ जॉली (अभिषेक बच्चन). यानी अमर अकबर एन्थॉनी का कॉमिकल वर्जन. तीनों की पत्नियां हैं क्रमश: ज़ारा (सोनम बाजवा), कांची (नरगिस फाखरी) और शशिकला (जैकलीन फर्नांडीस). लेकिन कहानी तब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच जाती है जब जैकी श्रॉफ, संजय दत्त और फिर नाना पाटेकर की एंट्री होती है. इसके बाद कहानी में थोड़ा दम आता है और एकरसता खत्म होती है.

कॉमेडी ड्रामा ज़ॉनर में मर्डर की गुत्थी

हाउसफुल 5 के साथ एक अनोखी बात जुड़ती है जो इसे कॉमेडी ड्रामा ज़ॉनर से अलग बनाती है. इसमें कॉमेडी के साथ थ्रिलर को एडॉन किया गया है. कहानी में अरबपति बनने के लिए तीन जॉलियों के बीच जंग तो चल ही रही है साथ ही मर्डर की गुत्थी सुलझाने की कहानी भी एक ही साथ चलती रहती है. और इस हत्या के पीछे भी अरबपति बनने की लालसा है. आखिर हत्या की गुत्थी कैसे सुलझती है और असली जॉली मिलने के बाद दिल और दौलत में से किसकी जीत होती है- ये जानने के लिए फिल्म देखें.

एक ही सीन में बॉबी देओल ने जीता दिल

निर्देशक तरुण मनसुखानी इस मामले में कामयाब होते दिख रहे हैं कि उन्होंने एक साथ इतने सारे किरदारों को करीब पौने तीन घंटे की कहानी में समेटा है. पहले सोचा ये जा रहा था कि पूरी फिल्म की कहानी में अक्षय कुमार लीड करेंगे लेकिन ऐसा नहीं है. रितेश देशमुख और अभिषेक बच्चन के साथ-साथ जैकी श्रॉफ, संजय दत्त, जॉनी लीवर को भी ठीक ठाक स्पेस मिला है. शुरुआती कई सीन बेहद कमजोर हैं. लेकिन भले ही आधी फिल्म खत्म होने के बाद नाना पाटेकर आते हैं वो कहानी के पावरफुल पात्र साबित होते हैं. वहीं महज बीस सेकेंड्स में ही बॉबी देओल प्रकट होकर कैसे फिल्म को अलग ही रुख प्रदान करते हैं, दर्शकों का दिल जीत लेते हैं- ये जानना बहुत ही दिलचस्प है. बॉबी देओल की एंट्री को फिल्म के अगले पार्ट का मुखड़ा भी कह सकते हैं.

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