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अकाली दल का गढ़ माने जाने वाले ये 2 जिले कोर कमेटी से बाहर, खड़ी हो सकती है बड़ी चुनौती!

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बरनाला: शिरोमणि अकाली दल (बादल) द्वारा हाल ही में घोषित 31 सदस्यीय कोर कमेटी में से बरनाला और संगरूर जिलों को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है, जिससे कभी अकाली दल का गढ़ रहे इन दोनों जिलों के राजनीतिक हलकों में हैरानी और निराशा का माहौल है। बरनाला और संगरूर जिलों के कुल 9 विधानसभा क्षेत्रों में से किसी भी अकाली नेता को इस महत्वपूर्ण कमेटी में जगह नहीं दी गई है, जो पार्टी के आंतरिक हलकों में चिंता का विषय बना हुआ है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब इन जिलों में अकाली दल पहले से ही अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है, और इसे पार्टी द्वारा एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिससे जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल और गिर सकता है।

एक समय था जब बरनाला और संगरूर जिलों को शिरोमणि अकाली दल की ‘राजधानी’ कहा जाता था। ये वे जिले थे जहां से अकाली दल लगभग सभी विधानसभा सीटों पर कब्जा करता था और पार्टी की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। स्वर्गीय सरदार सुरजीत सिंह बरनाला के समय से लेकर स्वर्गीय सुखदेव सिंह ढींडसा के दौर तक, इन जिलों में अकाली दल का दबदबा था और पार्टी एक मजबूत स्थिति में थी। उस समय सुखदेव सिंह ढींडसा, परमिंदर सिंह ढींडसा, गोबिंद सिंह लोंगोवाल, इकबाल सिंह झूंडा और बलदेव सिंह मान जैसे कद्दावर नेता अकाली दल की कोर कमेटी का हिस्सा रह चुके हैं, जो इन जिलों की राजनीतिक ताकत को दर्शाता था। लेकिन, आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है, जहां शिरोमणि अकाली दल के हिस्से में एक भी सीट नहीं है।

पिछले कई सालों से अकाली दल इन जिलों में एक भी चुनाव जीतने में विफल रहा है। इसके बावजूद, इन जिलों के कई प्रमुख अकाली नेता कोर कमेटी में शामिल होने की इच्छा रखते थे और पार्टी के सदस्यता अभियान में भी सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहे थे, जिसे वे पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण मानते थे। लेकिन, उनके सभी प्रयास व्यर्थ गए हैं, और उन्हें लग रहा है कि उनकी लंबे समय की सेवाओं और त्याग को अनदेखा किया गया है।

जिले के कई वरिष्ठ अकाली नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर अपनी निराशा व्यक्त की। उनका कहना है कि जब पार्टी संकट के गहरे दौर से गुजर रही है और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को फिर से प्रेरित करने और संगठन को मजबूत करने की सख्त जरूरत है, ऐसे फैसले कार्यकर्ताओं का मनोबल और भी गिरा सकते हैं। उनका मानना है कि कोर कमेटी में स्थानीय, प्रभावशाली नेताओं को शामिल करने से जिलों में पार्टी की स्थिति मजबूत हो सकती थी और नई ऊर्जा का संचार हो सकता था। यह एक संकेत देता कि पार्टी नेतृत्व जमीनी स्तर की चिंताओं को समझता है और स्थानीय नेताओं को मान्यता देता है।

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