भोपाल। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में इस वर्ष शिकायतों पर जांच के बाद सौ से ज्यादा मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसके बाद भी अभी 15 सौ से ज्यादा शिकायतें लंबित हैं। इनमें सबसे पुराने प्रकरण 2008 के हैं, यानी 13 साल बाद भी प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाई है। इसका लाभ आरोपितों को मिल रहा है। जांच में देरी की बड़ी वजह यह है कि जांच एजेंसी के पास स्वीकृत हमले में से 60 प्रतिशत की कमी है। दूसरी बात यह है कि कोरोना संक्रमणकाल में लाकडाउन की वजह से भी कार्य प्रभावित हुआ है। ईओडब्ल्यू के महानिदेशक अजय शर्मा ने बताया कि जांचों की संख्या बढ़ी है। अभी तक सौ से ज्यादा मामलों में प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है, जो जांच एजेंसी के गठन से लेकर अब तक में सर्वाधिक है। शिकायतों की जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की जाती है। पिछले वर्षों में प्राथमिकी का आंकड़ा औसतन 50 से 60 के बीच रहता था। 2021 में 91 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस वर्ष यह संख्या 110 तक पहुंचने की उम्मीद है। जांच एजेंसी के पास हर वर्ष पांच से सात हजार शिकायतें पहुंचती हैं। शिकायतों का परीक्षण (स्क्रूटनी) किया जाता है। इनमें अधिकतम 10 प्रतिशत पर ही जांच शुरू हो पाती है। साक्ष्य के अभाव में या फिर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ से संबंधित नहीं होने से बाकी शिकायतों पर ईओडब्ल्यू जांच करने की जगह संबंधित विभाग को भेज देता है। इस वर्ष 400 शिकायतों पर जांच शुरू हो चुकी है। 2021 में यह आंकड़ा 289 था। प्राथमिकी दर्ज होने में देरी की एक वजह यह भी होती है कि राज्य शासन से अभियोजन की स्वीकृति मिलने में विलंब होता है। हर समय औसतन 100 से ज्यादा मामलों में अभियोजन की स्वीकृति लंबित रहती है। इनमें बैंकों से सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी-कर्मचारियों के भी ज्यादा मामले हैं। शासन से एक बार में 10 से 15 मामलों में ही अभियोजन की अनुमति मिल पाती है।
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