इस शोध में जैव विविधता पर द्वितीयक प्रभावों का अध्ययन भी किया गया है जो दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहते हैं।
शोधकर्ताओं ने रिसर्च के दौरान इस नतीजे को पाने के लिए एक सुपरकंप्यूटर की मदद से पृथ्वी का एक सिमुलेशन मॉडल बनाया। इस सिमुलेशन मॉडल को कृत्रिम प्रजातियों के साथ आभासी दुनिया में बदला गया। इसके बाद इन पर ग्लोबल वॉर्मिंग और जमीन के इस्तेमाल के प्रभाव को देखा गया। इस शोद में शामिल हेलसिंकी विश्वविद्यालय के डॉ जियोवन्नी स्ट्रोना ने कहा कि हमने एक आभासी दुनिया को पृथ्वी पर मौजूद जीवों से आबाद किया है। यह देखने में बिलकुल धरती पर पाए जाने वाले पर्यावरण की तरह था। फिर हमने ग्लोबल वॉर्मिंग और इंसानों के जमीन उपयोग करने के तरीकों को लागू किया।

उन्होंने बताया कि सिमुलेशन में हमने देखा कि सबसे ज्यादा खराब स्थिति में 27 फीसदी प्रजातियां मर सकती हैं। अगर प्रभाव मध्यम रहा तो 13 फीसदी जानवर और पौधे विलुप्त हो जाएंगे। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह एक अद्वितीय अध्ययन है क्योंकि इसमें जैव विविधता पर द्वितीयक प्रभावों को ध्यान में रखा गया है जब एक प्रजाति के विलुप्त होने पर दूसरी प्रजाति अपने आप खत्म हो जाती है।

ऑस्ट्रेलिया में फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कोरी ब्रैडशॉ ने कहा कि आप किसी शिकारी प्रजाति के बारे में सोचें जो जलवायु परिवर्तन के कारण अपने शिकार को खो देती है। शिकार होने वाली प्रजाति का खत्म होना प्राथमिक विलोपन है क्योंकि उसका अंधाधुंध शिकार किया गया। अब उसका शिकार करने वाली प्रजाति के पास भी खाने के लिए कुछ नहीं बचेगा। इससे शिकारी भी विलुप्त हो जाएंगे। कल्पना कीजिए कि कोई परजीवी जंगलों की कटाई के कारण अपने आहार न पा सके या एक फूल वाला पौधा धरती के अधिक गर्म होने के कारण अपने परागणकों को खो दे तो क्या होगा। हर प्रजाति किसी न किसी तरह से दूसरी प्रजाति पर निर्भर है।