हमारे जवानों और विज्ञानियों ने साहस और सफलता की कहानियां लिखी हैं। सात दशक से हमारे जवान और विज्ञानी न थके हैं, न रुके। हथियार से लेकर साजोसामान तक यहीं बनने लगा है। चंद्रयान और मंगलयान के बाद गगनयान की तैयारी है। जनबल, मनबल और सृजनबल से सुसज्जित हमारे रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र की गौरवगाथा बता रहे हैं महेश शुक्ल:
बिना थके, बिना रुके: स्वतंत्रता के समय हमारे पास चार लाख सैनिकों की सेना थी। आज जवानों की संख्या 14 लाख से ऊपर है। तब भी और अब भी हम शौर्य में सब पर भारी पड़ते हैं। चाहे कारगिल हो या गलवन। हथियार और रक्षा सामग्री की दिशा में हमने उल्लेखनीय प्रगति की है। 1958 में बने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) ने विचारों को जन्म दिया और आयुध फैक्टियों ने उन्हें वास्तविकता में बदला
ब्रह्मोस से एके-203 तक: आज देश में स्वचालित रूसी राइफल क्लाशनिकोव का अत्याधुनिक संस्करण एके-203 बनाने की तैयारी है। ब्रह्मोस मिसाइल से हम विश्व को बता रहे हैं कि सीमा पर किसी हिमाकत को रौंद देंगे। पृथ्वी और अग्नि मिसाइल व तीसरी पीढ़ी का अजरुन टैंक दुश्मनों का हौसला पस्त करने को काफी है। स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस के कहने ही क्या। अब तो मिसाइलों के निर्यात की भी तैयारी है।
झंडा ऊंचा रहे हमारा:
- पहले प्रयास में बेहद कम लागत में मंगल पर पहुंचने वाला पहला देश
- 5 नवंबर, 2013 को छोड़ा गया मंगलयान 24 सितंबर, 2014 को कक्षा में स्थापित हो गया
- इससे पहले रूस, अमेरिका व यूरोप मंगल पर पहुंच चुके थे, लेकिन उन्हें यह सफलता पहली बार में नहीं मिली थी
- अब भारत गगनयान के जरिये चंद्रमा पर मानव को भेजने की तैयारी में है
ध्यान रखें, चुनौतियां भी हैं:
- रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण हुआ है, लेकिन अब हमें पूर्ण स्वदेशीकरण की तरफ बढ़ना होगा
- सरकार ही नहीं, इस क्षेत्र के सभी हितधारकों को व्यापक प्रयास करने की आवश्यकता है
- शैक्षिक संस्थानों को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। डीआरडीओ की सहायता से वैकल्पिक पाठ्यक्रम का शुभारंभ कर सकते हैं
- अंतरिक्ष अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भूमिका कम है। देश में अंतरिक्ष से संबंधित करीब 20 स्टार्टअप हैं। इन्हें सुविधाएं व संरक्षण देना होगा
दूर गगन के पार: साइकिल पर राकेट ले जाने से लेकर कई देशों के सेटेलाइट को अंतरिक्ष की सैर कराने वाले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने करोड़ों भारतीयों के स्वप्न को साकार किया है। 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फार स्पेस रिसर्च (इंकोस्पार) का गठन हुआ।। केरल के तिरुअनंतपुरम के थुंबा गांव स्थित सेंट मैरी मैगडेलेन चर्च भारत के शुरुआती अंतरिक्ष कार्यक्रमों का मुख्य कार्यालय रहा। अब यह स्पेस म्यूजियम है।