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अंग्रेज कैदियों को जेल में डालने से पहले कराते थे श्री अमलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन अफीम के किसानों ने कराया था नव निर्माण

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मंदसौर। लगभग 200 साल पहले स्थापित किए गए श्री अमलेश्वर महादेव मंदिर पर हर अफीम कृषक शीश नवाता है। इसके अलावा यहां पास ही स्थित अफीम गोदाम में नारकोटिक्स विभाग का कार्यालय भी लगता है। वहां के कर्मचारियों के अलावा आस-पास के नई आबादी क्षेत्र से भी लोग यहां पहुंचते हैं।

जानें मंदिर का इतिहास

मंदिर के आस-पास एक शिलालेख लगा है, जिसमें यह पुष्टि होती है कि मंदिर की स्थापना 1722 में हुई थी। अंग्रेजों के शासनकाल में इसी दौरान वर्तमान अफीम गोदाम की जगह जेल थी। हिंदुस्तानी कैदियों को यहां लाते थे, तो पहले इसी शिव मंदिर में दर्शन कराते थे। जेल परिसर में ही फांसी घर भी बना हुआ था। फिर आजादी के बाद 1953 के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ।

मंदिर की विशेषता

लगभग 40 साल पहले मंदिर नव निर्माण किया था और तभी से यह वर्तमान स्वरूप में है। मंदिर निर्माण की खासियत यह है कि अफीम गोदाम में आने वाले किसानों से एक-एक रुपया इकट्ठा कर इसका निर्माण किया है। लगभग 10 से 12 हजार अफीम किसानों ने रुपए इकट्ठा किए थे, तभी से मंदिर का नामकरण भी श्री अमलेश्वर महादेव हो गया।

सावन में बड़ी संख्या में आते हैं भक्त

सौरभ शर्मा, पुजारी ने कहा कि अभी जो मंदिर का बड़ा और वर्तमान स्वरूप दिख रहा है वह किसानों से एक-एक रुपया एकत्र कर बनाया है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त पहुंचते हैं, सावन में संख्या बढ़ जाती है। जिनके संतान नहीं होती है वह मन्नत लेकर जाते हैं और कामना पूरी हो जाती है। महाशिवरात्रि पर इंदौर, उज्जैन, रतलाम सहित कई जगहों से लोग आते हैं, जिनकी कामना पूरी हुई है।

हम श्रद्धालुओं को भक्ति का नशा

आरती दवे, श्रद्धालु ने कहा कि सालों से इसी मंदिर से जुड़े हुए हैं। जब तक जीवन है श्री अमलेश्वर महादेव पर विश्वास हैं। आपने शिवालयों के कई नाम सुने होंगे, जो अधिकांश जगह एक समान हैं, लेकिन श्री अमलेश्वर महादेव ऐसा नाम है, जो कही नहीं हैं। हम आसपास की महिलाएं प्रतिदिन सुबह एक घंटा भजन करते हैं। जिस प्रकार अफीम में नशा है, हमें भी भक्ति का नशा है।

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