लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुसंख्यक समुदाय का मूल्य ज्यादा होता है। आखिर जिसके जितने मत, उतनी तवज्जो। राजनीतिक रूप से देखा जाए तो ब्राह्मण को वोट बैंक नहीं समझा जाता। मगर समाज को शिक्षित करने वाले इस वर्ग के गरीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षाविद स्वप्निल कोठारी के प्रयासों की चर्चा है। कोठारी स्वयं ब्राह्मण समाज से नहीं हैं, लेकिन इस समाज के गरीब बच्चों के लिए एक करोड़ रुपये से ज्यादा का शिक्षण शुल्क स्वयं वहन करते हुए उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया है। शिक्षा को सबसे बड़ा दान माना गया है, लेकिन कोई करता नहीं। सर्वब्राह्मण युवा परिषद के युवाओं की टीम के प्रयासों ने अनायास ही समाज में बदलाव की शुरुआत की है। देश को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने वाला इंदौर भविष्य में शिक्षादान के लिए भी जागरूक करे तो इससे बेहतर देशहित में कुछ नहीं होगा।
क्या हुआ तेरा वादा…
राजनीति मौकापरस्ती का खेल है, लेकिन फिर भी कहीं-कहीं राजनीतिक शुचिता नजर आ जाती है। इसी की चर्चा इन दिनों शहर कांग्रेस में सुनाई देती है। मामला जोशी परिवार का है, जिसकी राजनीतिक विरासत को लेकर भाइयों में खींचतान है। पूर्व मंत्री महेश जोशी ने भतीजे अश्विन को आगे बढ़ाया। पिछले चुनाव में चर्चा चली थी कि इस बार सफलता नहीं मिली तो बैंटन छोटे भाई पिंटू की ओर बढ़ा दी जाएगी। बीच में कभी अश्विन सपा प्रमुख की बैठक में दिखे तो कभी आप से नजदीकी की बातें भी हुईं। मगर कहीं बात बनती दिखी नहीं। खैर, पिंटू के पास पिता का साया नहीं है, भाई भी साथ नहीं। राजनीति भाई से भाई को टकरा देती है। जिस क्षेत्र में जोशी परिवार राजनीति करता है, वहां भाजपा का ‘परिवार’ ही ताकत है। फिलहाल ‘दीपक’ को अकेले ही हवाओं से संघर्ष करना होगा।
जब नारेबाजी पर बिफर पड़े दिग्गी राजा
राजनीति और नारों का चोली दामन का साथ होता है। बिना नारों के न तो आंदोलन होते हैं और न ही नेता की अगवानी। अपने नेता के समक्ष समर्पण दर्शाने से ज्यादा शक्ति प्रदर्शन के लिए पंचम स्वर में नारे लगाने का अभ्यास आम बात है। मगर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन दिनों नारों से परहेज कर रहे हैं। किसी कार्यक्रम में होते भी हैं तो नारे दूसरे नेताओं के नाम से लगवाते हैं और खुद को पार्श्व में रखते हैं। राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं और ऐसा क्यों करते हैं इसकी अपनी वजह है। मगर गत दिनों इंदौर विमानतल पर पहुंचे तो एक युवा कांग्रेस नेता और साथ आए समर्थकों ने गले की नसें खींचकर नारे लगाए। फिर क्या था, दिग्गी राजा ऐसे बिफरे कि बोल पड़े, जब लड़के नहीं संभलते तो साथ लेकर क्यों आते हो।
इंदौर में काम नहीं आ रहे भोपाल के संपर्क
स्वच्छता में इंदौर को नंबर वन बनाने वाले नगर निगम में भी आंतरिक सफाई का दौर चल रहा है। नई निगमायुक्त के तेजतर्रार तेवरों के सामने कई मठाधीश परेशान हैं। अपने राजनीतिक संपर्कों का सलीके से इस्तेमाल कर कई ऐसे हैं जो वर्षों से मलाईदार पदों पर जमे रहते हैं। ऐसे ही एक अधिकारी पर इन दिनों मेडम की वक्रदृष्टि है। बीच में कुछ समय के लिए शहर से दूर चले गए थे, लेकिन अब फिर इंदौर में आमद हो गई है। चाहत चहेते विभाग की थी, लेकिन इस बार चली नहीं। जो मिले उसमें मलाई नजर नहीं आ रही। खैर, यहां तक भी ठीक था, लेकिन अनुशासनहीनता पर मैडम खासी नाराज हो गईं। एक बैठक में अनुपस्थिति का मुद्दा सुलझा नहीं था कि बिना सूचना अवकाश का मुद्दा सामने आ गया। इसके बाद सार्वजनिक रूप से नाराजगी झेलनी पड़ी। फिलहाल भोपाल के संपर्क निगम मुख्यालय में काम नहीं आ रहे।