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धर्म ध्वजा से राजनीति का परचम लहराने की जुगत, इंदौर बना धर्मधानी

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इंदौर। कुछ समय पहले जब भी धर्म के मंच पर राजनेता पहुंचते थे तो राजनीति के आवरण को नीचे ही छोड़कर व्यासपीठ के समक्ष शीश नवाते थे। लेकिन इन दिनों स्थिति उलट है। अब तो पूरी राजनीति ही धर्म और धार्मिक आयोजनों में सहारा तलाश रही है, फिर क्या भाजपा और क्या कांग्रेस।

दोनों ही दल धर्म की नाव पर सवार होकर चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत लगा रहे हैं। कथा-प्रवचनों के माध्यम से क्षेत्रवासियों को जोड़ने का ऐसा माध्यम ‘राजनीति’ के हाथ लग गया है जिसे कोई छोड़ना नहीं चाहता। मालवा-निमाड़ में लगभग सभी मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में दो से ज्यादा बड़े धार्मिक आयोजन कर चुके हैं। कद्दावर विधायक कहीं प्रसिद्ध कथावाचकों की कथाओं में व्यस्त हैं तो कहीं कलश यात्रा, तीर्थ दर्शन जैसी गतिविधियां अपने खर्च पर संचालित कर रहे हैं।

आयोजनों की आई बाढ़

तुलसी सिलावट, हरदीपसिंह डंग, विजय शाह, मोहन यादव, सहित अन्य मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में बीते तीन-चार महीनों में ढेरों धार्मिक गतिविधियां संचालित कर चुके हैं। अब गणेशोत्सव में भी राजनेता अपने विधानसभा क्षेत्रों में भव्य आयोजन करवा रहे हैं। उद्देश्य एक ही है किसी भी बहाने ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी और खींचना। 15 माह विपक्ष में रहने के बाद सत्ता में वापसी करते ही भाजपा ने जिस तेजी से राजनीतिक माहौल को धार्मिक करना शुरू किया था वह शुरू में राजनेताओं को भी विचित्र लग रहा था लेकिन जैसे-जैसे इसके असर को महसूस किया जाने लगा तो भाजपा सरकार के इस उपक्रम को माइक्रो लेबल पर ले जाया जाने लगा। विधायक और पार्षद स्तर पर भी छोटे-छोटे आयोजनों की बाढ़ सी आ गई है।

आर्थिक राजधानी बनी धर्मधानी

प्रदेश की आर्थिक राजधानी और देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर बीते कई महीनों से धर्मधानी बना हुआ है। यहां भाजपा-कांग्रेस के नेताओं ने एक के बाद एक कथा-आयोजन करवा रहे हैं। इसके अलावा मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 66 विधानसभा सीटों पर बीते 6-7 माह में 200 से ज्यादा धार्मिक आयोजन हो चुके हैं।

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