इंदौर। शहर में वायु व ध्वनि प्रदूषण का स्तर अभी तीव्रता पर है। विशेष रूप से अक्टूबर व नवंबर माह त्योहारों के होते हैं। इस समय में नवरात्र, दीवाली तथा देव उठने के बाद से शादियों में भी शोर-शराबा होता है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार यह शोर शराबा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसका कान व मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पड़ता है।
यह बात डा. दिलीप वागेला ने कही। वे सीईपीआरडी के ध्वनि प्रदूषण प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित बैठक में बतौर वक्ता मौजूद थे। उन्होंने आगे कहा कि हमारे त्योहार खुशियों के लिए मनाए जाते हैं। हम खुशी मनाएं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि इसका असर हमारे स्वयं के और दूसरों के स्वास्थ्य पर नहीं पड़े। पर्यावरण की राष्ट्रीय संस्था सीईपीआरडी ने अपने से संबंधित महाविद्यालयों के युवाओं के साथ प्रदूषण मुक्त जन-जागरण का एक बड़ा कार्यक्रम बनाया है।
इसके अंतर्गत प्रत्येक महाविद्यालय में धुएं और शोर शराबे से होने वाली हानि तथा शरीर पर प्रभाव के लिए एक प्रेजेंटेशन दिया जाएगा तथा स्लोगन-स्टिकर्स भी वितरित किए जाएंगे। ताकि जन-जागरण का एक माहौल युवाओं के माध्यम से बने। इस बैठक में विशेष रूप से डा. अनिल भंडारी, डा. रमेश मंगल, एसएन गोयल, डा. राहुल माथुर, राजेंद्र सिंह, दिनेश जिंदल व अन्य सम्मानित सदस्य सम्मिलित हुए। पर्यावरणविद अमरीश केला व डा. ओपी जोशी को सलाहकार मनोनीत किया गया।
तेज ध्वनि से फट सकते हैं कान के पर्दे
हमारे कान एक निश्चित ध्वनि की तीव्रता को ही सुन सकते हैं। ऐसे में तेज ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। 60 डीबी क्षमता वाली ध्वनि को सामान्य क्षमता माना जाता है। 80 डीबी से ज्यादा क्षमता वाली आवाज शरीर के लिए हानिकारक होती है। नियमित रूप से तेज ध्वनि सुनने से कान के पर्दे फट सकते हैं। इसके अलावा तेज ध्वनि हमारे स्थायी या अस्थायी रुप से बहरेपन का कारण बन सकती है।