सनातन धर्म में कार्तिक मास का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि यह महीना भगवान विष्णु का प्रिय महीना है। जिसे दामोदर मास भी कहा जाता है। इस महीने में भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है। कार्तिक माह में सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। इससे साधक के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुबह जल्दी उठने वाले बच्चे पढ़ाई में जल्दी सफल होते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित वासुदेव शर्मा का कहना है कि यह माह विष्णुजी की आराधना के लिए समर्पित है। साथ ही इस माह को तप और व्रत का माह भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की समाप्ति के साथ ही कार्तिक माह का शुभारंभ हो चुका है। इस साल कार्तिक मास की शुरुआत 29 अक्टूबर यानी रविवार से प्रारंभ हुआ है, जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन यानी 27 नवंबर को होगा।
पूरे कार्तिक मास में स्नान, दान और भगवत पूजन किया जाता है उसे जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने अक्षय फल देने वाला बतलाया है। घर में स्नान करने के बाद तुलसी के पौधे या घर के मंदिर में घी-तेल का दीपक सुबह-शाम जलाना चाहिए। कार्तिक मास की कथा सुनने से भी पुण्य लाभ मिलता है। प्रतिदिन सूर्योदय से पहले किया गया स्नान एक हजार गंगा स्नान के बराबर माना गया है।
दही, बैंगन, करेला व मांसाहार से बचें: पंडित शिवम
सरकंडा निवासी पंडित शिवम द्विवेदी का कहना है कि कार्तिक माह के दौरान मांस, चिकन, मछली आदि जैसे मांसाहार का सेवन करने से बचें। कुछ अन्य खाद्य पदार्थों जैसे बैंगन, जीरा, दही और करेला का सेवन करने से खुद को रोकें। प्रतिदिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की आराधना करें। घर में रंगोली या अल्पना सजाएं।
कार्तिक स्नान के विशेष नियम
कार्तिक स्नान सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में करना चाहिए, तभी वह फलदायी माना जाता है। स्नान करते समय गायत्री मंत्र का जप करने से साधक के सौभाग्य में वृद्धि होती है। साधक को शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। स्नान के बाद तुलसी में जल देकर परिक्रमा करें। साथ ही, शाम के समय तुलसी पर घी का दीया जलाएं। कार्तिक स्नान और व्रत करने वालों साधकों को राई, खटाई और मादक वस्तुओं से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।