भोपाल। राजधानी में करोड़ो रुपये के विकास कार्य अधिकारियों की लापरवाही के भेंट चढ़ गए, लेकिन इसका फायदा जनता को नहीं मिल पाया। बीआरटीएस की तरह ही अन्य प्रोजेक्ट भी शुरु होने के कुछ दिन बाद ही बंद होने की कगार पर पहुंच गए। इधर करोड़ो रुपये की स्मार्ट सिटी योजना भी अधर में अटकी है।
बदहाल बीआरटीएस और मल्टीलेवल पार्किंग और धूल खाती स्मार्ट पार्किंग, प्लेस मेकिंग प्रोजेक्ट के तहत मार्केट में बदरंग-उधड़े फ्लोर टाइल्स और टूटे हुए गमले। ऐसे ही तमाम नामों वाले प्रोजेक्ट्स के बूते एक से डेढ़ दशक में आम शहरी बड़े और सुनहरे सपने दिखाए गए। इन सपनों के नाम पर करोड़ों-अरबों करोड़ों रुपए खर्च भी कर दिए, लेकिन हालातों में कोई बदलाव नहीं आया, क्योंकि ये सभी प्रोजेक्ट्स फेल हो चुके हैं। यानी करोड़ों रुपए खर्च के बावजूद नतीजा सिफर ही है। यानी मिसरोद से बैरागढ़ सिहोर नाका तक 24 किमी का सफर महज 45 मिनट में तय होगा।
प्रोजेक्ट : बीआरटीएस
हकीकत : बीआरटीएस 40 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है। 121 किमी तक बढ़ने की बजए ये 24 किमी से 12 किमी तक सिमट गया है। आम शहरी की गाड़ियां मिक्स लेन के नाम में उलझी रहती हैं। डेडीकेटेड कारीडोर में दौड़ने वाली बसें भी चार से पांच मिनट प्रति किमी से दौड़ रही हैं।
प्रोजेक्ट: स्मार्ट पार्किंग
दावा : शहर के पुराने और नए शहर में 58 स्मार्ट पार्किंग एरिया होंगे। पार्किंग हाइटेक होगी यानी यहां बाहर लगे डिस्प्ले पर पता चल जाएगा कि पार्किंग में स्पेस है या नहीं। पार्किंग से बाहर निकलने के लिए पार्किंग पर्ची पर प्रिंट बारकोड या क्यूआर कोड स्केनर से स्केन कराना होगा, तभी बूम बैरियर खुलेगा। सबसे अहम मोबाइल से पार्किंग स्पेस बुक किया जा सकेगा। सबकुछ आनलाइन होगा।
हकीकत : स्मार्ट पार्किंग का काम माइंडटेक कंपनी को दिया गया। कंपनी ने 58 में से महज 30 पार्किंग स्पेस डेवलप किए। न तो कंपनी ने यहां सीसीटीवी कैमरे लगाए और न ही अन्य आधुनिक उपकरण। गाड़ियों चोरी होने और कर्मचारियों द्वारा मनमानी वसूली की शिकायतें मिलीं। नगर निगम ने कंपनी को नोटिस दिया तो कंपनी ने काम छोड़ दिया। लिहाजा अब पार्किंग स्पेस कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं। यहां कंडम वाहनों को खड़ा किया जा रहा है। जिस एप से पार्किंग स्पेस बुक करने का दावा किया गया वह कभी बन ही नहीं सका।
प्रोजेक्ट: स्मार्ट स्ट्रीट
दावा : ज्योति टॉकीज चौराहे से बोर्ड आॅफिस चौराहे तक स्मार्ट सिटी कंपनी ने स्मार्ट स्ट्रीट बनाई जाएगी। यहां कैफेटेरिया के साथ ही बच्चों के लिए गेम जोन होंगे। सायकिलिंग करने के साथ ही यहां सांप सीढ़ी व अन्य पजल गेम खेले जा सकेंगे। यहां मेले और चौपाटी जैसा माहौल बनाया जाएगा।
हकीकत: करीब पांच करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने के बावजूद ये विकसित नहीं हो पाई। इसे निजी एजेंसी के सुपुर्द कर दिया गया। जिसके बाद कंपनी ने इसे हॉकर्स कॉर्नर बना दिया। यहां जिस चौपाटी गेम जोन और कैफेटेरिया बनाने का दावा किया था, कुछ नजर नहीं आता।
प्रोजेक्ट: माय बाइक
दावा : प्रोजेक्ट लांच करने से पहले दावा किया गया कि शहर में सायकिलिंग कल्चर को बढ़ावा मिलेग। इससे आम शहरी की सेहत में सुधार के साथ ही यह वातावरण संरक्षण में अच्छी पहल होगी। साथ ही इलेक्ट्रिक बाइक भी शुरू की जाएगी, जिससे लोगों को फायदा मिलेगा। लोग शहर में कहीं भी जा सकेंगे।
हकीकत : पांच करोड़ से 500 सायकिलों से शुरू हुआ प्रोजेक्ट अब लगभग खत्म हो गया है। सायकिल स्टेशन (डाकिंग यार्ड) में खड़ी स्मार्ट सायकिलें धूल खाते-खाते अब कबाड़ हो चुकी हैं। प्रोजेक्ट पब्लिक ट्रांसपोर्ट से नहीं जुड़ सका और लोगों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। इलेक्ट्रिक बाइक भी लोगों को पसंद नहीं आई और प्रोजेक्ट फेल हो गया।
इनका कहना है
शहर में जो प्रोजेक्ट कंप्लीट हो चुके हैं या चल रहे हैं सभी जनता की सुविधा के लिए हैं। तकनीकी दिक्कतें आती हैं जिन्हें दूर किया जाता है। सभी प्रोजेक्ट्स का फायदा आम जनता को मिल रहा है।
फ्रैंक नोबल ए., आयुक्त, नगर निगम