जबलपुर। विधानसभा चुनाव के बाद नगर निगम अब खजाना भरने की जुगत में लग गया है। चुनाव के पूर्व कराए गए कार्य और फिर अनाप-शनाप तरीके से की गई फिजूलखर्ची के बाद नगर निगम की आर्थिक हालत पहले से ज्यादा खस्ता हो गई है। नौबत यहां तक चुकी है कि नगर निगम को एडीबी (एशियन डेवलमेंट बैंक) से लिए लोन की सालाना किस्त 18 करोड़ रुपये चुकाने जहां एफडी (फिक्स डिपोजिट) तुड़वाना पड़ी वहीं दीपावली पर आउट सोर्स कर्मचारियों को बोनस देने हाल में ही 10 करोड़ रुपये की दूसरी एफडी भी तोड़वानी पड़ी।
नगर निगम खजाना भरने की कवायद में जुट गया है
शहर विकास के जो कार्य शुरू कराए गए थे वे भी ठेकेदारों को भुगतान न होने के चलते लगभग बंद हो गए हैं। लिहाजा नगर निगम खजाना भरने की कवायद में जुट गया है। जिसके तहत नगर निगम संपत्तिकर, जलशुल्क न चुकाने वालों का टारगेट कर सख्ती बरतेगा। नगर निगम को शहर के 73 हजार से ज्यादा बकायादारों से करीब 142 करोड़ रुपये वसूलना है। क्योंकि आचार संहिता के कारण लीज से होने वाली कमाई भी बंद है। लीज के प्रकरण लंबित है जिनका निराकरण नहीं हो पा रहा है। निगम से लीज प्रकरणों से ही करीब पांच करोड़ की आय होती है।
73 हजार बकायादारों को भेजे जा रहे नोटिस
फिलहाल नगर निगम के अधिकारी खजाना भरने की कवायद में जुट गए हैंं। नगर निगम को अब बकायदारों से ही उम्मीद है। बताया जाता है कि शहर में ऐसे करीब 73 हजार 494 बकायादार हैं जिन्होंने संपत्तिकर नहीं चुकाया है। इनसे नगर निगम को 142 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूलना है। लिहाजा नगर निगम ने बकायादारों की सूची तैयार कर ली है। जिन्हें नोटिस जारी करने की कवायद शुरू कर दी गई है। बकाया न चुकाने वालों की संपत्ति कुर्क की जाएगी वहीं बैंक खाते भी सीज कराए जाएंगे।
ये है निगम की आय का जरिया
नगर निगम को चुंगी कर के रूप में हर साल तकरीबन 26 करोड़ रुपये मिलते हैं फिलहाल तीन वर्षों से 10 से 12 करोड़ रुपये ही मिल रहे हैं। इसी तरह संपत्तिकर, जलशुल्क, लीज व अन्य माध्यमों से नगर निगम को हर वर्ष तकरीबन 250 करोड़ प्राप्त होते हैं। लेकिन निगम का खर्चा सालाना 400 करोड़ रुपये है। चुंगीकर से मिलने वाली राशि से जहां अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन, भत्ते का भुगतान किया जाता है वहीं अन्य मदों से शहर की साफ-सफाई, वाहनों के डीजल, प्रकाश व्यवस्था, जल वितरण व्यवस्था सहित अन्य कार्यों में खर्च किए जा रहे हैं।
आमदनी से ज्यादा है खर्च
शहर को पानी पिलाने के नाम पर 120 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे। वहीं सफाई व्यवस्था पर तकरीबन 25 करोड़ रुपये खर्च फूंके जा रहे हैं। अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, वाहन, डीजल सहित 32 करोड़ रुपये सालाना खर्च किए जा रहे। उसमें भी जनप्रतिनिधि, अधिकारियों के कक्षों को संजाने, संवारने, अधिकारियों को नियम विरूद्ध तरीके से वाहन सुख देने सहित एक ही काम को बार-बार कराने में फिजूल खर्ची में भी कोई कमी नहीं की जा रही है।
नगर निगम को करीब 73 हजार बकायादारों से 142 करोड़ रुपये जमा कराना है। बकायादारों को नोटिस तामिल किए जा रहे हैं कर चुकाने वालों के खिलाफ सख्ती बरती जाएगी।
पीएन सनखेरे, उपायुक्त नगर निगम