भोपाल। राजगढ़ जिले के पीपल्या रसोड़ा में खुले बोरवेल में गिरी पांच साल की बच्ची माही की मौत के बाद एक बार फिर राज्य भर में बोरवेल खुला छोड़ने वालों पर कार्रवाई करने में सरकार और प्रशासन की शिथिलता पर सवाल उठ रहे हैं। इसी वर्ष 26 फरवरी को छतरपुर में इसी तरह की घटना होने पर गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि थी कि बोरवेल खुला छोड़ने वालों पर सरकार कार्रवाई करेगी। खुले बोरवेल में बच्चों या किसी के भी गिरने की दुर्घटना होने पर संबंधित बोरवेल मालिक पर प्रकरण होगा और बचाव अभियान का खर्च भी प्रशासन उसी से वसूल करेगा। लेकिन ऐसे मामलों के लगातार सामने आने के बाद कार्रवाई नहीं हो रही है, राजगढ़ में भी प्रशासन ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है।
गृहमंत्री की घोषणा के बाद जिलों में अधिकारियों की ओर से अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। यहां तक की सरकार की ओर से कोई नियम भी नहीं बनाया गया है। पिछले वर्ष बैतूल में हुई इसी तरह की दुघर्टना के बाद बोरवेल मालिक पर प्रकरण जरुर दर्ज किया गया, लेकिन वसूली की कार्रवाई नहीं हुई है।
इसी वर्ष विदिशा जिले के ग्राम खेरखेड़ी में खेत में खुले पड़े बोरवेल में एक सात वर्षीय बालक लोकेश अहिरवार गिर गया था। इस मामले में भी सिर्फ बोरवेल मालिक पर आपराधिक मामला दर्ज हुआ, लेकिन आपरेशन में होने वाला खर्च वसूल नहीं किया गया है।
बैतूल में ऐसे ही बोरवेल में गिरकर बच्चे की मौत के बाद भी किसी भी जिले में खुले बोरवेलों को बंद कराने की पहल नहीं की। जबकि विदिशा में कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने भू-स्वामी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात तो कही, लेकिन किन नियमों में कार्रवाई होगी, इसकी जानकारी नहीं दी। भू-स्वामी से बचाव कार्य पर खर्च राशि वसूलने के सवाल पर उनका कहना था कि अभी इस तरह का कोई नियम नहीं है। दरअसल, खुले पड़े बोरवेल को बंद कराने संबंधी कोई कड़ा नियम नहीं होने के कारण ही किसान कुछ रुपये बचाने के लालच में बोरवेल खुला छोड़ देते हैं।
इसलिए खुले रहते हैं बोरवेल
बोरवेल का गड्ढा खुला छोड़ने के मामलों में देखा गया है कि जहां पानी का संकट होता है वहां इस तरह की लापरवाही बरती जाती है। आमतौर पर किसान चंद रुपये का खर्च बचाने के लिए बोरवेल के गड्ढे में केसिंग पाइप नहीं डलवाते। कुछ इलाकों में बोलवेल का गड्ढा तो खोदवा दिया जाता है, लेकिन उसमें पाइप नहीं नहीं डलवाते।