इंदौर। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार है। अब तो प्राण प्रतिष्ठा (Ram Mandir Pran Pratishtha) की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसके साथ ही भगवान राम की कहानियों को एक बार फिर स्मरण किया जा रहा है। www.naidunia.com की स्पेशल सीरीज में हम लाएं हैं भगवान राम और रामायण से जुड़े ऐसे ही प्रेरक प्रसंग।
किसने किया था रावण का अंतिम संस्कार
युद्ध में रावण मारा गया। उसका विशालकाय शरीर जमीन पर पड़ा था। भाई की मृत अवस्था में देखकर विभीषण फूट-फूट कर रोने लगा। उसे लगा कि भाई की मृत्यु का कारण वह है।
रामायण पर उल्लेख है कि इसके बाद प्रभू श्रीराम ने विभीषण को समझाया। उन्होंने कहा कि मृत्यु पश्चात शत्रुता का अंत हो जाता है, इसलिए सबकुछ भूलकर आप अपने भाई का अंतिम संस्कार करो
इस पर भी विभीषण का चित्त स्थिर नहीं हुआ। विभीषण ने कहा,
जिसने धर्मव्रत का त्याग किया था, जो क्रूर था, जो नृशंस था, जो मिथ्यावादी था, जो लोभी था, जो सबके अहित में रत था, जो भ्राता-स्वरूप मेरा शत्रु था, वह ज्येष्ठ भ्राता वास्तव में मेरी पूजा पाने योग्य नहीं है। दुनिया के लोग मुझे संस्कार नहीं करने पर नृशंस कहेगे, किन्तु रावण के दुर्गुणों को सुनकर वे मेरे विचारों का समर्थन करेंगे
राम ने समझाया, तब विभीषण ने किया रावण का अंतिम संस्कार
इसके बाद प्रभु श्रीराम ने विभीषण को समझाते हुए कहा, तुम्हारे प्रभाव से मैंने विजय प्राप्त की है। तुमसे उचित प्रीतिकर कार्य कराना है। तुम्हारे अनुरूप कार्य मुझे बताना चाहिए। तुम्हारा भाई तेजस्वी, बलवान् था। वह संग्राम से विमुख होने वाला नहीं था। मैने सुना है, इन्द्रादि देवताओं से वह पराजित नहीं हुआ था। लोक-प्रसिद्ध तुम्हारा महात्मा भाई रावण वल-सम्पन्न था।
मृत्यु के पश्चात् शत्रुता का अन्त हो जाता है। शत्रुता जीवन तक सीमित है। तुम उसका अंतिम संस्कार करो। रावण हमारा और तुम्हारा, दोनों का है। विधिपूर्वक शीघ्र संस्कार होना चाहिए। तुम्हारा इस समय यही धर्म है। तुम्हारे यश की वृद्धि होगी। – प्रभु श्रीराम
इसके बाद विभीषण ने लंकापुरी में प्रवेश किया। शीघ्रतापूर्वक रावण के अग्नि- होत्र को समाप्त किया। लोग शव यात्रा की तैयारी में लग गए और विधि-विधान से अंतिम संस्कार हुआ