कोरोना काल के बाद से लगातार बढ़ा बाजार
बता दें कि कोरोना काल में आयुर्वेदिक दवाओं का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से हुआ था। उस दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेदिक दवाओं का विशेष योगदान रहा था। तबसे लोगों का आयुर्वेद की ओर रुझान तेजी से बढ़ना शुरू हुआ, जिसमें इस वर्ष और उछाल आया है। कोरोना संक्रमण के बाद से लोग बीमारियों से बचाव के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। घरों में टूथपेस्ट, क्रीम, तेल आदि में भी नियमित रूप से आयुर्वेदिक उत्पादों का ही इस्तेमाल करने लगे हैं।
पारंपरिक चिकित्सा का डब्ल्यूएचओ ने भी दिया समर्थन
कुछ माह पहले गुजरात में आयोजित एक कार्यक्रम में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी पारंपरिक चिकित्सा का समर्थन किया था। साथ ही पूरी दुनिया को इससे सीखने की बात कहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर भारत के नेतृत्व में हुए इस वैश्विक आयोजन में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डा. टेड्रास अदनाम गैब्रेयसस ने कहा था कि पारंपरिक चिकित्सा का इतिहास बहुत प्राचीन है। भारत इसका केंद्र रहा है। करीब 3500 साल से इस चिकित्सा का लाभ लिया जा रहा है। अन्य देशों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
क्यों बढ़ रहा आयुर्वेद की ओर रुझान
विशेषज्ञ बताते हैं कि आयुर्वेद एक स्वस्थ जीवन जीने का महत्वपूर्ण रास्ता है। यह न केवल हजारों वर्षों से चली आ रही स्वस्थ रहने की श्रेष्ठ पद्धति है, बल्कि इससे शरीर ही नहीं, मन भी शुद्ध व स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद कई रोगों और उनके उपचार तथा स्वस्थ जीवन जीने के तरीके बतलाता है। इस आधुनिक विश्व में बदलते खान-पान, नई-नई किस्म की बीमारियां और उनके इलाज में आयुर्वेद का महत्वपूर्ण योगदान है।
आयुर्वेद हजारों साल पुरानी चिकित्सा प्रणाली है। इसका उपयोग लंबे समय से चली आ रही बीमारियों को ठीक करने में है। आयुर्वेद की दवा को उपयोग करने से जीवन सुखी, तनाव मुक्त व रोग मुक्त बनाता है। आयुर्वेद किसी भी तरह की बीमारियों की जड़ तक जाकर उसे ठीक करने की क्षमता रखता है। इन्हीं सब कारणों के चलते लोगों का आयुर्वेद की ओर रुझान बढ़ रहा है।
आयुर्वेद ने बदल दिया इनका जीवन
केस 1
नूरानी नगर निवासी अब्बास अली लगभग 20 वर्षों से तंबाकू का सेवन कर रहे थे। इस कारण इनका मुंह कम खुलने लगा और अंतत: कैंसर हो गया। आपरेशन के बाद इनके मुंह में एक बड़ा घाव हो गया था। इसके बाद इन्हें सलाह मिली की आयुर्वेद की शरण में जाओ। तब इन्होंने शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कालेज में कैंसर के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां लेना शुरू की। साथ ही मुंह के घाव में गाय के घी से बनी दवाएं लगाना आरंभ कीं। इनसे इन्हें काफी फायदा मिल रहा है और रोग अब ठीक होने की दिशा में है।
केस 2
46 वर्षीय धर्मेंद्र प्रजापति के पांव में 12 वर्षों से भी अधिक पुराना एक घाव था। उन्होंने उस घाव का एलोपेथी पद्धति से तीन बार आपरेशन करवा लिया, उसके बाद भी घाव ठीक नहीं हो पा रहा था। किंतु जब ये आयुर्वेदिक दवाइयों की शरण में आए तो जड़ी-बूटियों के लेपन व अन्य पद्धतियों के अपनाने से इनका घाव अब पूरी तरह सही हो गया है।
केस 3
छिंदवाड़ा निवासी 50 वर्षीय सुंदर राय के पांवों में वैरिकोज वेन्स से जुड़ी समस्या थी। इसकी वजह से उनके पावों में लगभग छह वर्ष पुराना घाव था। वे उन्हें ठीक करवाने के लिए 11 आपरेशन करवा चुके थे, स्किन ग्राफ्टिंग करवा चुके थे, लेकिन घाव नहीं भरा था। इसके बाद आयुर्वेदिक उपचार लेना प्रारंभ किया। इन दवाओं से घाव को बार-बार धोया, गाय के घी से बनी दवाई की पट्टी करवाना शुरू किया। अब इनका घाव लगभग भर गया है और ठीक होने को है।
हर दृष्टि से श्रेष्ठ है आयुर्वेद
आयुर्वेद शास्त्र हजारों वर्ष पुराना है। इसके दो ही उद्देश्य हैं- एक, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और दूसरा, जो बीमार हो गए हैं, उनका उपचार करके उन्हें पुन: स्वस्थ बनाना। आयुर्वेदिक दवाओं का तनाव में विशेष महत्व है। जैसे तुलसी में पाया जाने वाला मुख्य तत्व तनाव के कारण उत्पन्न कोर्टिसोल को नियंत्रित करता है, इसलिए यदि तुलसी का चूर्ण के रूप में, काढे के रूप में प्रयोग लिया जाए तो शरीर में कोर्टिसोल के स्तर को कम किया जा सकता है। मानसिक रोगों में शिरोधारा का भी बहुत महत्व है। नींद नहीं आने पर सर्पगंधा, जटामासी आदि दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। प्रत्येक मनुष्य का आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य नियंत्रित रूप में होना चाहिए, तभी व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। यही कारण है कि अब लोगों में आयुर्वेद के प्रति रुझान तेजी से बढ़ रहा है। वस्तुत: आयुर्वेद हर दृष्टि से श्रेष्ठ पद्धति है।
– डा. अखलेश भार्गव, विभागाध्यक्ष, शल्य तंत्र, शासकीय अष्टांग आयुर्वेदिक कालेज, इंदौर