इंदौर। हस्तरेखा शास्त्र में हाथ की रेखाओं, निशानों, और चिह्नों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। हस्तरेखा शास्त्र को सामुद्रिक शास्त्र भी कहते हैं। इसमें हथेली में कई तरह के योग के निर्मित होने के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। हथेली में एक ऐसा ही योग बनता है ‘केमद्रुम योग’। इस योग को काफी दुर्भाग्यशाली माना जाता है, जो किसी भी जातक का जीवन तबाह कर सकता है। केमद्रुम योग के बारे में डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली ने अपनी किताब ‘वृहद हस्तरेखा शास्त्र’ में विस्तार से उल्लेख किया है।
हथेली में कब बनता है ‘केमद्रुम योग’
हथेली में केमद्रुम योग शुक्र पर्वत और सूर्य पर्वत के पूरी तरह से विकसित नहीं होने पर और सूर्य रेखा के खंडित होने पर बनता है। जिस व्यक्ति के हाथ में केमद्रुम योग बनता है, वह जीवन भर दुखी रहता है। कई प्रयास करने के बाद भी उसके जीवन में सुख नहीं आता है। केमद्रुम योग हथेली में बनने वालों अच्छे योगों का भी नाश कर देता है। ऐसे व्यक्ति बार-बार कई गलतियां करते हैं और अदूरदर्शी होने के कारण बाद में पछताते भी हैं। जीवन में कई बार आजीविका का साधन बदलना पड़ता है और इन लोगों को अधिकांश जीवन दूसरों पर निर्भर रहकर ही बिताना पड़ता है।
जीवन भर नहीं रहता है केमद्रुम योग
डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली ने अपनी किताब ‘वृहद हस्तरेखा शास्त्र’ में यह भी बताया है कि कुछ विद्वानों का विचार है कि केमद्रुम योग जीवन भर नहीं रहता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में केमद्रुम योग का असर कम हो जाता है। जैसे हथेली में यदि सूर्य रेखा पूर्णतः स्पष्ट तथा सीधी हो और सूर्य रेखा से कोई एक सहायक रेखा बुध पर्वत की ओर पहुंची हो तो केमद्रुम योग का प्रभाव कम हो जाता है।
इसके अलावा हथेली में यदि शुक्र पर्वत पुष्ट तथा विस्तृत क्षेत्र वाला हो और इस क्षेत्र में अन्य रेखाओं को कोई जाल न हो तो केमद्रुम योग का प्रभाव कम हो जाता है। साथ ही हथेली में यदि चंद्र पर्वत पूर्ण विकसित हो तथा उससे एक रेखा निकलकर बुध पर्वत पर की ओर जाती है तो इससे भी केमद्रुम योग का प्रभाव क्षीण होने लगता है।
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