अखुरथ क संकष्टी चतुर्थी शनिवार को मनाई गई। भक्तों ने भगवान गणपति की विशेष पूजा अर्चना कर मोदक का भोग अर्पित किया। बुद्धि, ज्ञान और धन-वैभव के देवता को प्रसन्न करने भक्तों ने दिनभर व्रत भी रखा। सूर्यास्त के बाद विधिवत पूजन व आरती के बाद व्रत पारण किया। रेलवे कालोनी स्थित श्री सुमुख गणेश मंदिर और रतनपुर स्थित श्री सिद्धिविनायक मंदिर में दर्शन के लिए दिनभर भक्तों का तांता लगा रहा।
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को किसी भी शुभ कार्य के दौरान प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। हर माह अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक की चतुर्थी कहा जाता है और पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस बार शनिवार को कृष्ण पक्ष की चतुर्थी रही।
भक्तों ने भक्तिभाव से अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा। घरों व मंदिरों में बुद्धि, ज्ञान और धन-वैभव के देवता भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की गई। दिनभर व्रत रखकर रात के समय चंद्र देव की पूजा कर उन्हें जल अर्पित किया गया। मान्यता है कि चतुर्थी तिथि पर व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं।
गणपति को अर्पित किया मोदक व बूंदी के लड्डू
अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पर पर भक्तों ने सूर्योदय से पहले जागकर नित्यकर्म के बाद स्नान किया। साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर भगवान गणेश का स्मरण किया। भगवान गणेश के व्रत का संकल्प लेकर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित किया। जल से आचमन करने के बाद भगवान गणेश को दूर्वा, फूल, माला, सिंदूर, गीला अक्षत अर्पित किया गया। भगवान गणेश को मोदक या बूंदी के लड्डू प्रसाद में चढ़ाया। घी का दीपक और धूप जलाकर व्रत कथा, गणेश मंत्र, गणेश चालीसा पाठ किया। शाम को गणेश जी की आरती करके प्रसाद वितरण किया गया।