श्रीलंका की नौसेना ने एक बार फिर 10 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया, इससे ठीक दो दिन पहले ही श्रीलंका की नेवी ने 12 भारतीय मछुआरे पकड़े थे. इन सभी की नावों को जब्त कर लिया गया. श्रीलंका की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक ये सभी मछुआरे जाफना के उत्तर प्वाइंट पेड्रो पर पकड़े गए. ये पहला मौका नहीं है जब श्रीलंका की ओर से भारतीय मछुआरों को पकड़ा जा रहा है, लंबे समय से भारत और श्रीलंका के बीच यह गतिरोध का बड़ा मुद्दा बन चुका है.
भारतीय मछुआरे अक्सर मछली पकड़ने के लिए श्रीलंका की सीमा में पहुंच जाते हैं और यही मुद्दा दोनों देशों के बीच बड़ा गतिरोध बनता जा रहा है. कई बार तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि श्रीलंका की ओर से भारतीय मछुआरों पर गोलीबारी तक की जाती है. श्रीलंका इसके पीछे तर्क देता है कि भारतीय मछुआरे अवैध रूप से श्रीलंका की सीमा में घुस रहे हैं. कई बार श्रीलंका इन मछुआरों की नौकाएं जब्त कर लेती है तो कई बार इन्हें नष्ट कर दिया जाता है. इन सबके बीच जो सबसे बड़ा सवाल है वो यह है कि आखिर खतरा जानते हुए भारतीय मछुआरे श्रीलंका के जल क्षेत्र में जाते क्यों है?
पहले समझते हैं इतिहास
भारत और श्रीलंका के बीच अच्छे संबंध हैं, लंबे समय तक दोनों ही देशों में ब्रिटिश शासन का आधिपत्य रहा. भारत के बाद 4 फरवरी 1948 को आजादी मिलने के बाद से 1974 तक भारत और श्रीलंका के मछुआरे स्वतंत्र तौर पर Palk Straits (पाक की खाड़ी) और मन्नार खाड़ी से मछली पकड़ते रहे. ये दो इलाके ऐसे हैं जिन्हें बांटने का काम रामसेतु करता है. इसमें पाक की खाड़ी में पानी का रंग हरा है और मन्नार की खाड़ी में पानी नीले रंग का है. यह दोनों इलाके ऐसे हैं जहां श्रीलंका की सीमा में गहराई ज्यादा है. इसीलिए यहां मछुआरों को मछली अच्छी मात्रा में मिल जाती थीं. बाद में यह इलाका एक विवादित क्षेत्र बन गया, जिसे सुलझाने के उद्देश्य से 1976 में दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा यानी IMBL खींच दी. दोनों देशों के बीच संधि हुई कि अब किसी भी देश के मछुआरे दूसरे देश की सीमा का उल्लंघन नहीं करेंगे.
हाथ से चला गया कच्चातिवु द्वीप
भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा से संबंधित चार संधि हुईं. 1976 में हुई इस संधि में भारत का सबसे बड़ा नुकसान हुआ कच्चातिवु द्वीप का जाना. ब्रिटिश शासन के दौरान ये मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. आजादी के बाद ये तमिलनाडु का हिस्सा रहा. 1976 में ये श्रीलंका के पास चला गया, लेकिन भारतीय मछुआओं ने इस द्वीप का प्रयोग करना बंद नहीं किया. आज भी मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाने वाले भारतीय मछुआरे इसी द्वीप पर जाकर अपना जाल सुखाते हैं, आराम करते हैं. चूंकि ये क्षेत्र श्रीलंका की सीमा में आता है, इसीलिए यहां से भी श्रीलंका नेवी भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार कर लेती है और नावों को नष्ट कर देती है. इससे मछुआरों को नुकसान होता है, जितने दिन वे श्रीलंका की गिरफ्त में रहते हैं उतने दिन मछली पकड़ने का परंपरागत काम भी नहीं कर पाते और जाल और नाव का नुकसान होने से उन पर दोहरी मार पड़ती है. केंद्र सरकार की ओर से 2014 में इस द्वीप को वापस लेने का ऐलान किया गया था. हालांकि ऐसा हो नहीं सका.
खतरा मोल लेते क्यों हैं भारतीय मछुआरे
भारतीय मछुआरों का पारंपरिक काम मछली का शिकार है, यही उनकी रोजी रोटी का साधन है. ऐसा नहीं कि भारतीय क्षेत्र में मछलियां नहीं हैं, लेकिन भारतीय मछुआरों को तलाश होती है झींगा मछली की. ये मछली खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है, इसीलिए इसकी मांग भी बेहद ज्यादा है. मांग ज्यादा होने के कारण मछुआरों को इसके दाम भी अच्छे खासे मिल जाते हैं.मछुआरों के सामने संकट ये है कि उन्हें भारतीय क्षेत्र में ठीक संख्या में झींगा मछलियां नहीं मिल पातीं. ऐसे में खतरे को जानते हुए भी वे आईएमबीएल को पार करते हैं, कच्चातिवु द्वीप भी आईएमबीएल की दूसरी तरफ पड़ता है. मछुआरे यहां भी जाते हैं और यहीं पर मछलियां छांटते हैं, जाल सुखाते हैं और आराम भी करते हैं, ताकि उन्हें खाली हाथ न लौटना पड़े. इसी प्रयास में श्रीलंका की नौसेना उन्हें गिरफ्तार कर लेती है.
ऐसे करते हैं श्रीलंका की नेवी से बचने का प्रयास
भारत की सीमा से आईएमबीएल ज्यादा दूर नहीं है, एक तरह से देखें तो रामेश्वरम से यह केवल 12 समुद्री मील और धनुष्कोडि से ये सिर्फ 9 समुद्री मील दूर है. हर सप्ताह यहां से तकरीबन 800 ट्रेलर (ऑटोमैटिक नाव) लेकर निकलते हैं. हर मछुआरे के लिए ये यात्रा बेहद मुश्किल होती है, क्योंकि अच्छी मात्रा में मछली पकड़ने के लिए इन्हें हर हाल में श्रीलंका के जल क्षेत्र में जाना ही होता है. ये खास तौर से पाक की खाड़ी में जाते हैं, क्योंकि यहां अच्छे मूल्य पर बिकने वाली झींगा मछली अच्छी तादाद में मिल जाती है. भारतीय मछुआरे इसके लिए भारतीय सीमा में ही रुकते हैं और एक-एक कर श्रीलंका की सीमा में प्रवेश करते हैं, यदि किसी जहाज पर श्रीलंका की नौसेना की नजर पड़ जाती है तो बाकी भारतीय जहाज वापस लौट आते हैं और फिर नेवी के हटने का इंतजार करते हैं. हालांकि सभी मछुआरे भाग्यशाली नहीं होते और श्रीलंका नेवी की पकड़ में आ जाते हैं.