इंदौर। इंदौर जबसे अपने अस्तित्व में आया है, तबसे इतना अधीर, इतना व्याकुल, इतना उल्लसित और इतना प्रतीक्षित कभी नहीं दिखा, जितना इन दिनों दिखाई दे रहा है। हर चेहरे पर एक ताजा उल्लास है और हर मन में प्रभु दरसन की आस। इन दिनों इस नगर के रोम-रोम में श्रीराम के स्वागत की प्रतीक्षा झलक रही है। यहां की गलियां अब रामधुन में गुम्फित होकर अहर्निश गूंज रही हैं, मोहल्ले अब मर्यादा पुरुषोत्तम के स्वागत में मनहर हो गए हैं, हर सड़क जैसे रामपथ बन गई है, हर बजरिया जैसे बाजों-गाजों पर नृत्यांजलि के लिए आतुर हैं।
मंदिरों और मठों का तो खैर कहना ही क्या। वे न जाने कितनी सदियों बाद अब एक अनूठे आत्मविश्वास और आत्मबल से भरे हुए हैं। वे अब अपने शिखर को और उत्तुंग तथा मंडपम को और भव्य पा रहे हैं। उनके शिखर पर सुसज्जित होकर लहर-लहर लहरा रहीं धर्म-ध्वजाएं जयघोष कर रही हैं। वे अब आकाश हो जाना चाहती हैं। मंदिरों की नींव के पत्थर तक बोल रहे हैं कि एक बार हम भी बाहर आकर रामलला के दर्शन कर लें, फिर वापस भूमि की गोद में सदा के लिए अवस्थित हो जावेंगे। इंदौर के हर कंठ से अब बस यहीं गूंज रहा है…