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जो इंदौरी अयोध्या पहुंचे, उन्होंने सुनाई गौरवगाथा

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इंदौर। जब इंदौर का चप्पा-चप्पा राम रंग में डूबा हुआ है, तो कल्पना कीजिए उस पावन धराधाम अयोध्या की, जहां सैकड़ों वर्षों की प्रतीक्षा के बाद नव्य-भव्य मंदिर का निर्माण हुआ और उसमें रामलला विराजे। जिस धरा के दर्शन मात्र को ही पुण्य माना जाता है, उस नगरी में जब रघुनंदन के विग्रह की स्थापना हुई, तो कैसा माहौल रहा होगा।

दुल्हन-सी सजी साकेतपुरी में हर्ष का वह माहौल है कि उदासी, दु:ख का कहीं नामोनिशान नजर नहीं आता। पुलिस अपरिचितों की ऐसे मदद कर रही है, मानो उनका अपना कोई वर्षों बाद आया हो। एयरपोर्ट से लेकर मंदिर तक जहां भी कोई मिला, तो अभिवादन में राम राम ही सुनाई दिया। रोम-रोम पुलकित और तन-मन हर्षित। माहौल ऐसा कि जिसे शब्दों में तो क्या खुशी के अश्रु से भी बयां नहीं किया जा सकता।

यह अनुभव हैं उन भाग्यशाली इंदौरियों के जो इंदौर से अयोध्या पहुंचकर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के साक्षी बने। ये वहां गए तो दर्शन करने के लिए थे, लेकिन राम रंग में ऐसे रंगे कि कुछ पल के लिए खुद को भी भुला बैठे।

चुनाव विश्लेषक प्रदीप भंडारी अयोध्या में बिताए पलों के बारे में कहते हैं- अयोध्या का वैभव शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। दिन हो या रात, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि अयोध्या सोएगी। हर ओर उत्साह, उमंग व भक्ति की लालिमा छाई हुई है। लोग एक-दूसरे को मिठाई बांट रहे हैं। जहां दृष्टि जाए, वहां सिर्फ श्रीराम की छवि या उनका नाम ही नजर आ रहा है। मंदिर परिसर में मैं सुबह करीब 9.15 बजे पहुंचा था और खुशकिस्मती ऐसी है कि मुझे दर्शन करने का सौभाग्य भी मिला। जिस वक्त गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान चल रहा था, उस वक्त पूरे वातावरण में दिव्य अनुभूति महसूस हो रही थी। लग रहा था मानो भारत को अब कोई विश्व शक्ति बनने से नहीं रोक सकता।

मोटिवेशनल स्पीकर डा. गुरमीत नारंग कहते हैं कि जब मैं लखनऊ से अयोध्या पहुंचा, तो पूरा मार्ग सजा हुआ था। सजावट केवल बाहरी नहीं बल्कि लोगों के प्रसन्न मन की भी महसूस हो रही थी। मार्ग में अनगिनत मंच बने हुए थे और हर मंच पर भजन या नृत्य हो रहे थे। हम यात्रियों पर स्थानीय लोग फूल बरसा रहे थे और सजावट से लेकर वेशभूषा तक में श्रीराम ही नजर आ रहे थे। दिन में जब शंकर महादेवन और सोनू निगम भजन सुना रहे थे, उस वक्त तो पूरा वातावरण इस कदर राममय हो गया था कि वहां मौजूद हर भक्त स्वयं को भूलकर भगवान में खो गया। विभिन्न संस्थाओं द्वारा आवभगत भी की गई और प्रसाद के रूप में सूखे मेवे, मिष्ठान व साहित्य दिया गया।

उद्योगपति दिनेश पाटीदार बताते हैं कि अयोध्या में मौजूद हर व्यक्ति भावविभोर दिखा। करीब 10 किमी दूर तक भक्तजन मुख्य मार्ग के दोनों ओर खड़े थे और जो आमंत्रित अतिथि दर्शन करके लौट रहे थे, वे मानो उनके ही दर्शन कर धन्य महसूस कर रहे थे। हर-एक के चेहरे पर मुस्कान थी और सब हाथ जोड़कर जय जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे। हमारी कार कहीं ट्रैफिक जाम में फंस गई, तब वहां की पुलिस ने तुरंत हमारी मदद की। उस वक्त लग ही नहीं रहा था कि वह पुलिस है। पुलिसकर्मी मानो किसी भक्त जैसी भावना के साथ ड्यूटी कर रहे थे। अयोध्या में एयरपोर्ट से लेकर मंदिर तक हर कोई रामधुन में मगन ही नजर आया, फिर चाहे वीआइपी हो या अयोध्या के आम नागरिक। भक्ति का ऐसा उल्लास मैंने तो अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं देखा।

पं. योगेंद्र महंत कहते हैं कि मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं जो उत्सव का साक्षी बना और अयोध्या दर्शन करने पहुंचा। अयोध्या में अद्भुत अनुपम दृश्य नजर आया। जहां से भी गुजर रहे थे, केवल राम नाम का जयघोष ही सुनाई दे रहा था। कण-कण में भगवान की दिव्यता का अनुभव हो रहा था। कई लोग तो खुशी के आंसू भी नहीं रोक पा रहे थे। साधु, संत, महात्मा के ठहरने सहित अन्य प्रबंध ऐसे लग रहे थे, जैसे कुंभ का मेला लगा हो। दिन में फूलों की सजावट और रात को दीपमाला दीपावली से भी भव्य नजारा बना रही थी।

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