इजराइल और गाजा की जंग रोकने की कोशिशें लगातार जारी हैं. लेकिन जैसे-जैसे रमजान का महीना करीब आ रहा है मध्यस्ता कराने वाले देश सीजफायर पर सहमती न बन पाने को लेकर ज्यादा चिंतित हैं. यहां तक कि इजराइल के सहयोगी अमेरिका के राष्ट्रपति ने मंगलवार को चेतावनी दी कि अगर इजराइल और हमास मुसलमानों के पवित्र महीने रमजान तक सीजफायर डील पर पहुंचने में कामयाब नहीं हुए तो ये खतरे से खाली नहीं होगा. आखिर रमजान के महीने से पहले जंग रुकवाने को लेकर कोशिश क्यों बढ़ गई हैं? क्या रमजान में मुसलमान जंग नहीं लड़ सकते? इसी तरह के कई सवाल आपके मन में भी आ रहे होंगे. इस लेख में हम इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे कि रमजान में जंग को लेकर धार्मिक मान्यताएं और किस्से किस तरह के हैं.
पवित्र महीना रमजान
अक्सर लोगों को लगता है रमजान महज भूखे रहकर रोजे रखने का महीना है. लेकिन असल में रमजान सिर्फ रोजे रखने के लिए नहीं बल्की खुद पर कंट्रोल करने, बुरे कामों से दूर रहने, गरीबों की भूख और दर्द को समझने, लोगों की मदद करने और एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश करने का एक प्रोसेस है. इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान भी इसी महीने में उतारी गई थी. इस्लाम के पांच स्तंभों में शहादा(एक अल्लाह को मानना), नमाज, जकात (दान देना), हज और रमजान के रोजे रखना शामिल है.
रमजान में जंग पर क्या कहता है इस्लाम?
इस्लाम के कई जानकारों का कहना है कुरान पूरे साल ही हिंसा से बचने का हुक्म देता है. लेकिन रमजान के महीने में मुसलमानों को जंग नहीं लड़नी चाहिए, ऐसा कहीं नहीं लिखा है. ‘जमात-ए-इस्लामी’ से ताउल्लुक रखने वाले रजी-उल-इस्लाम बताते हैं कि अगर आपके ऊपर हमला होता है तो सेल्फ-डिफेंस के लिए आप किसी भी महीने में जंग कर सकते हैं. रजी-उल-इस्लाम कहते हैं “इस्लामी तारीख की सबसे बड़ी जंग ‘जंग-ए-बद्र’ भी रमजान में ही लड़ी गई थी. इसके अलावा ‘फतह-ए-मक्काह’ भी रमजान में ही हुआ. जिससे पता चलता है कि रमजान में जंग की मनाही नहीं है.” उन्होंने आगे कहा कि लड़ाई तब होती है, जब दुश्मन हमलावर हो. ऐसे में अगर दुश्मन को पता होगा कि इस महीने में मुसलमान लड़ नहीं सकता तो वो इसी महीने हमला करेगा. रमजान में रोजे को लेकर रजी-उल-इस्लाम कहते हैं “इस्लाम में सफर के दौरान रोजा न रखने की इजाजत है, गोया कि जंग के लिए जब निकला जाए तो रोजा छोड़ा जा सकता है.”
दारुल उलूम नदवतुल उलमा के स्कॉलर अदनान चौधरी कहते हैं, “रमजान में जंग की मनाही की बात को कुछ लोग इसलिए कहते हैं क्योंकि रमजान को अमन का महीना माना जाता है. इस महीने में कोई भी हिंसा वाले काम से बचने सलाह दी जाती है. अगर हम इस्लामी तारीख पर नजर डालें तो इस्लाम की कई अहम जंग जैसे जंग-ए-खंदक, जंग-ए-तबूक, जंग-ए-बद्र ये सब रमजान के महीने में लड़ी गई थी.
इन चार महीनों में जंग नहीं करते मुसलमान
इस्लाम में चार महीने (रजब, धू अल-कायदा, धू अल-हिज्जा और मुहर्रम) ऐसे माने जाते हैं जिनमे जंग को लेकर मनाही है. लेकिन इन चारों महीनों में रमजान शामिल नहीं है. इन महीनों के दौरान जंग की मनाही पर रजी-उल-इस्लाम कहते हैं, “इस्लाम के शुरुआती दौर में और आज भी हज और हाजियों (तीर्थयात्रियों) का बड़ा एहतमाम किया जाता है. हज ‘धू अल-हिज्जा’ के महीने में होता है, उस समय हज के लिए पूरी दुनिया से काफिले आया करते थे और मक्का-मदीना पहुंचने तक महीनों का वक्त लगता था. ऐसे में हज के लिए जाने वाले मुसाफिरों को कोई परेशानी न हो इसलिए अरब के लोगों को हुक्म दिया गया कि ‘धू अल-हिज्जा’ और इसके पास के महीनों में कोई जंग न की जाए.” उन्होंने आगे ये भी कहा इन महीनों में भी सेल्फ-डिफेंस पर रोक नहीं थी.
रमजान में जंग होना आम बात
इतिहास से लेकर अब तक रमजान के दौरान जंग होती रही हैं. 1973 में मिस्र और सीरिया ने इजराइल के खिलाफ जंग का ऐलान भी रमजान के महीने में ही किया था. 1980 से 1988 तक इराक और ईरान के बीच चला लंबा संघर्ष भी रमजान आने पर नहीं रुका था. इसके अलावा अल्जीरिया सिविल वॉर भी रमजान के महीने में तेज हो गया था. येरुशलम की मस्जिद अल-अक्सा कंपाउंड में पिछले कई सालों से रमजान के दौरान संघर्ष देखे गए हैं.
इस्लामिक इतिहास को देखा जाए तो रमजान में भी अगर इजराइल के हमले जारी रहे तो धार्मिक तौर पर ऐसी कोई कंडीशन नहीं होगी जिसमें गाजा या हिजबुल्लाह की तरफ से पलटवार न किया जाए. ऐसे में अमेरिका और अरब जगत समेत दुनिया के तमाम मुल्क कम से कम रमजान में जो सीजफायर चाह रहे हैं अगर वो नहीं हो सका तो निश्चित ही इसका गहरा असर नजर आएगा. खासकर, रमजान में इजराइल के हमले होने से अरब मुल्कों में गुस्सा बढ़ सकता है और मानवाधिकार को लेकर भी इजराइल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घिर सकता है.