हिंदू धर्म में पूजा पाठ में देवी देवताओं या उनके मंदिर की परिक्रमा करने की परंपरा है. देवी देवताओं की परिक्रमा करना पूजा पाठ का ही एक हिस्सा माना जाता है इसलिए बहुत से लोग पूजा पाठ के दौरान देवी देवताओं की परिक्रमा करते हैं. मान्यता के अनुसार, देवी देवता की या मंदिर की परिक्रमा लगाने से नकारात्मकता दूर होती है और इंसान के विचार सकारात्मक होते हैं. ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए भी परिक्रमा लगाई जाती है.
बहुत से भक्त परिक्रमा तो करते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए, जिससे उन्हें परिक्रमा करने का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. किस देवी- देवता की कितनी परिक्रमा लगानी चाहिए, आइए जानते हैं.
किस देवी देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश की चार परिक्रमा की जाती है. सूर्य देव की सात परिक्रमा करनी चाहिए. भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए. मां दुर्गा की एक परिक्रमा की जाती है. हनुमान जी की तीन परिक्रमा करनी चाहिए. पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा लगाना शुभ माना जाता है और भगवान शिव की आधी परिक्रमा करने का विधान है क्योंकि मान्यता है कि शिवलिंग की जलधारी को लांघना नहीं चाहिए. जलधारी तक पंहुचकर ही परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है.
हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू करें परिक्रमा
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो शारीरिक ऊर्जा के विकास के लिए देवी देवताओं की या मंदिर की परिक्रमा का विशेष महत्व है. परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ की ओर से शुरू करनी चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद पॉजिटिव ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है. बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर मंदिर की पॉजिटिव ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, इस कारण से परिक्रमा का लाभ नहीं मिल पाता है. दाहिने का अर्थ दक्षिण भी माना जाता है, इसलिए ही परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है.
परिक्रमा करने के लाभ जानें
परिक्रमा हमेशा पूर्ण श्रद्धा और सच्चे मन से लगानी चाहिए. परिक्रमा के दौरान हमेशा परमात्मा का ध्यान करना चाहिए और परिक्रमा मंत्र का जाप करना चाहिए. मान्यता है कि परिक्रमा लगाने से इंसान को शुभ फल की प्राप्ति होती है. कष्टों से छुटकारा मिलता है और साथ ही निगेटिव ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और भीतर पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होता है.