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25 साल पहले कैसे हुई अखिलेश की सियासी एंट्री, छोटे लोहिया ने टीपू को बनाया था कन्नौज का ‘सुल्तान’

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कन्नौज लोकसभा सीट से आखिरकार सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. अखिलेश ने अपने सियासी पारी का आगाज इसी कन्नौज सीट से किया था, जिसके बाद उसे सपा के मजबूत दुर्ग में तब्दील कर दिया था. मोदी लहर में कन्नौज सीट सपा के हाथों से 2019 में निकल गई थी. डिंपल यादव को बीजेपी के सुब्रत पाठक ने मात दी थी. अखिलेश 12 साल बाद दोबारा से कन्नौज सीट से ताल ठोकने जा रहे हैं, लेकिन 25 साल पहले उन्होंने इसे अपनी कर्मभूमि बनाया था. इसके लिए अखिलेश यादव को सियासत में आने के लिए अमर सिंह और मुलायम सिंह ने नहीं तैयार किया बल्कि छोटे लोहिया यानी जनेश्वर मिश्र ने किया था.

मुलायम सिंह यादव के सियासी वारिस के तौर पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव खुद को स्थापित करने में काफी हद तक सफल रहे हैं, लेकिन उनके सियासी पारी के आगाज की कहानी काफी रोचक है. 1999 में मुलायम सिंह यादव कन्नौज और संभल दो लोकसभा सीटों से चुनावी मैदान में उतरे थे, वो दोनों ही सीटों से जीतने में सफल रहे. इसके बाद मुलायम सिंह ने कन्नौज सीट छोड़ दी, जिसके बाद सपा को किसी ऐसे नेता की तलाश थी, जो कन्नौज सीट पर जीत की गारंटी बन सके. इसे लेकर मुलायम सिंह ने अपने करीबी नेताओं के साथ सलाह-मशवरा किया.

मुलायम सिंह यादव सैफई परिवार से अपने भाई रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव को सियासत में एंट्री करा चुके थे. रामगोपाल राज्यसभा सदस्य तो शिवपाल यादव विधायक थे. अखिलेश उस समय तक सियासत से बहुत दूर थे, उन्हें राजनीति से बहुत ज्यादा सरोकार नहीं था. अखिलेश के सियासत में आने का कोई प्लान उस समय तक नहीं था. ऐसे में कन्नौज सीट से उम्मीदवार को लेकर बैठक में मुलायम सिंह यादव के साथ जनेश्वर मिश्र भी उपस्थित थे. इस दौरान सपा के कई बड़े नेताओं के नाम पर चर्चा हुई, लेकिन किसी भी नाम पर सहमति नहीं बन सकी.

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जब जनेश्वर मिश्र ने खोले अपने पत्ते

जनेश्वर मिश्र बैठक के दौरान सपा नेताओं की बातें सुन रहे थे, लेकिन कुछ बोले नहीं. इस पर मुलायम सिंह ने उनके पूछा, ‘पंडित जी आपकी क्या राय है, आपने तो सारे संभावित नाम पूछ लिए हैं, लेकिन अपना पत्ता नहीं खोल रहे. पंडित जी आप ही बताइए कन्नौज से किसे टिकट दिया जाए, जो जीत सके.’ मुलायम सिंह यादव के जुबान से यह बात निकलते ही जनेश्वर मिश्र ने बिना देर किए कहा कि टीपू को टिकट देना चाहिए. इस पर मुलायम सिंह चौंके और कहा कि कि टीपू मतलब अखिलेश. जनेश्वर मिश्र ने कहा, ‘नेताजी… कन्नौज सीट से अखिलेश को उपचुनाव लड़ाना चाहिए.’

मुलायम सिंह ने कहा कि कन्नौज से अखिलेश को टिकट दिया गया तो मेरे ऊपर परिवारवाद का आरोप लगेगा. मुलायम सिंह के इस बात पर जनेश्वर मिश्र ने कहा कि नेता जी यह लड़ाई सत्ता के परिवारवाद की नहीं बल्कि संघर्ष के परिवारवाद की है. हम जिस सीट पर अखिलेश यादव को टिकट देने के लिए कह रहे हैं, वो बहुत सुरक्षित सीट नहीं है. अगर टीपू संघर्ष नहीं करेंगे तो नहीं जीतेंगे. अखिलेश युवा हैं और वो कन्नौज में पूरी मेहनत करेंगे और सपा जीतेगी. कन्नौज सीट से अखिलेश का टिकट फाइनल करिए. आप मुझ पर भरोसा करिए, अखिलेश सपा को बहुत आगे ले जाएंगे.

मुलायम सिंह ने जनेश्वर मिश्र के पूछा कि क्या इस संबंध में अखिलेश से बात हो गई है, वो चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. जनेश्वर मिश्र ने कहा कि अभी बात नहीं हुई, मैंने पहले प्रस्ताव आपके सामने रखा है. आप अगर चुनाव लड़ाने के लिए तैयार होते हैं तो मैं अखिलेश से बात करूंगा. मुलायम सिंह ने कुछ दिन का समय मांगा और कहा कि पार्टी में इस बात को रखूंगा, उसके बाद निर्णय लिया जाएगा. इसके बाद जनेश्वर मिश्र ने कहा कि जल्द फैसला लीजिए, अखिलेश को मैं बुला रहा हूं. मुलायम सिंह ने कहा कि पंडित जी जल्दबाजी ठीक नहीं है, थोड़ा समय तो दीजिए, इस पर सभी से बातचीत करने के बाद फैसला लिया जाएगा.

जनेश्वर मिश्र ने अखिलेश यादव से कन्नौज सीट पर चुनाव लड़ने के लिए बातचीत की. जनेश्वर मिश्र ने कहा कि हम चाहते हैं अखिलेश तुम कन्नौज से लोकसभा का उपचुनाव लड़ो. इस बात को सुनकर अखिलेश चौंके और कहा कि मैं कैसे चुनाव लड़ूंगा. नेताजी से क्या राय ली, इस पर जनेश्वर मिश्र ने कहा कि तुम तैयार हो, हम बात कर लेंगे. जनेश्वर मिश्र ने अखिलेश यादव से कहा कि तुम युवा हो और पार्टी को युवा चेहरे की जरूरत है, जो सपा को आगे ले जा सके. तुम चुनाव लड़ने की तैयारी करो, मैं नेताजी से टिकट के लिए बात करने जा रहा हूं. हालांकि, जनेश्वर मिश्र ने मुलायम सिंह से बात कर रखी थी.

मुलायम सिंह को मनाने में कामयाब हुए जनेश्वर मिश्र

कन्नौज लोकसभा सीट से बसपा ने अकबर अहमद डंपी को प्रत्याशी बनाया था. जनेश्वर मिश्र ने कहा कि अकबर डंपी चुनाव लड़ेगा, इतना आसान नहीं है. अखिलेश को कड़ी परीक्षा कन्नौज में देनी होगी. जनेश्वर मिश्र ने कहा कि अखिलेश के चुनाव लड़ने से संदेश सही जाएगा और नेताजी प्लेट में सजाकर अखिलेश को राजनीति नहीं दे रहे हैं बल्कि चुनाव लड़ाएंगे और जनता भाग्य का फैसला करेगी. इससे सपा में युवा की एक फौज तैयार होगी, जो पार्टी को मजबूत करेगी. सपा के साथ इस वक्त युवाओं को जोड़ना बहुत जरूरी है. आपको परिवारवाद के आरोपों से परेशान होने की जरूरत नहीं है. कन्नौज ब्राह्मण बाहुल्य सीट है, आपकी पार्टी का ब्राह्मण चेहरा आपसे कह रहा है कि अखिलेश को टिकट दीजिए. मैं अखिलेश के लिए प्रचार करूंगा, आप चिंता मत करिए, टीपू मेरे बेटे जैसा है.

मुलायम सिंह यादव ने जनेश्वर मिश्र की बात मानते हुए अखिलेश को चुनाव लड़ाने का मन बना लिया, लेकिन उन्होंने कहा कि पंडित जी रामगोपाल और अमर सिंह से बात कर लीजिए. जनेश्वर मिश्र ने फौरन दोनों ही नेताओं के बात की और दूसरे दिन ही सपा ने अखिलेश यादव को कन्नौज सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया. मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पंडित जी आप अखिलेश के नामांकन में जरूर शामिल होंगे और अमर सिंह, प्रोफेसर रामगोपाल यादव भी रहेंगे. अखिलेश यादव के सामने अहमद अकबर डंपी चुनाव लड़ रहे थे. इस वक्त यूपी में सपा की सरकार भी नहीं थी. सपा के लिए यह बड़ी चिंता थी.

जनेश्वर मिश्र ने कन्नौज सीट पर अखिलेश के चुनाव लड़ने की पूरी रणनीति तैयार की. जनेश्वर मिश्र कन्नौज में अखिलेश यादव के नामांकन में शामिल हुए. सपा कार्यालय से एसआरएस यादव को अखिलेश के चुनाव के मैनेजमेंट के लिए कन्नौज भेजा. कन्नौज के भारत होटल में अखिलेश रुका करते थे. भारत होटल में अखिलेश और एसआरएस यादव एक कमरे में ही रहते थे. जनेश्वर मिश्र ने कन्नौज सीट पर सारा सियासी ताना बाना बुना, जिसके बाद अखिलेश यादव जीतने में सफल रहे.

जनेश्वर मिश्र ही बने अखिलेश यादव के राजनीतिक गुरु

कन्नौज से राजनीति की पहली सीढ़ी चढ़ने में अखिलेश यादव सफल रहे. एक लंबे अंतर से अखिलेश यादव ने कन्नौज उपचुनाव जीता और पहली बार सांसद बने. इसके बाद अखिलेश कन्नौज से लगातार तीन बार चुनाव जीतने में सफल रहे. जनेश्वर मिश्र ही अखिलेश यादव के राजनीतिक गुरु बने. मुलायम सिंह यादव ने जनेश्वर मिश्र की देखरेख में ही अखिलेश यादव को राजनीति के गुर सीखने की बात कही थी. अखिलेश यादव भी सार्वजनिक मंचों से कई बार कह चुके हैं कि जनेश्वर मिश्र ने जो ट्रेनिंग उनको दी, वह उन्होंने कहीं नहीं सीखी. जनेश्वर मिश्र ने सपा के अलग-अलग संगठनों की जिम्मेदारी सौंपी थी.

2009 अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है. इस दिन समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इस जिम्मेदारी के पीछे भी जनेश्वर मिश्र का हाथ था. जनेश्वर मिश्र ने 2 जून को अखिलेश यादव से कहा था कि अब तुम्हें 2012 में यूपी में सपा की सरकार वापस लाना है. खूब मेहनत करो, साइकिल चलाओ, यात्रा करो और संगठन को इतना मजबूत बना दो कि सपा की सरकार यूपी में आ जाए. सपा सत्ता में आने में सफल रही, जिसके बाद अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने.

अखिलेश की विरासत नहीं सभाव पाईं डिंपल

2012 में अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से इस्तीफा दे दिया और उनकी पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं. इससे पहले अखिलेश यादव 2009 में कन्नौज और फिरोजाबाद दोनों सीटों से जीतने में कामयाब रहे थे, जिसके बाद फिरोजाबाद सीट छोड़ दी. डिंपल उपचुनाव लड़ी थीं, लेकिन राज बब्बर के हाथों हार गई थीं. 2012 में कन्नौज से सांसद बनी डिपंल 2014 में फिर से जीतने में सफल रहीं, लेकिन 2019 में कन्नौज सीट नहीं जीत सकीं. सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी कन्नौज सीट पर सपा की हार अखिलेश के लिए बड़ा झटका थी. अब अखिलेश खुद कन्नौज से किस्मत आजमाने के लिए 12 साल के बाद उतर रहे हैं. देखना है कि इस बार क्या अपनी जीत तय कर सकेंगे, क्योंकि उनका मुकाबला बीजेपी के सुब्रत पाठक से है.

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