, देवास। तापमान बढ़ते ही शहर का सियासी पारा भी चढ़ता जा रहा है। कभी भाजपा बनाम कांग्रेस होने वाली सियासत अब भाजपा बनाम भाजपा होती जा रही है, क्योंकि कांग्रेस पूरी तरह बिखरी हुई है। राजनीतिक लड़ाई ने शहर की सियासत को नई दिशा में मोड़ दिया है, जिसे लेकर अब नई बहस छिड़ी है। हालात ऐसे बन रहे हैं कि कांग्रेस की तर्ज पर संगठन बाद में, नेता पहले हो रहे हैं।
सियासत के बदलते रूख को भांपकर कुछ नेता भी अवसर को भुनाने में लगे हैं, सुर बदलने लगे हैं। कभी किसी और के आगे-पीछे घूमते थे तो अब नए नेता को चुन लिया है। इसे लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है कि आगामी दिनों में देवास में बहुत कुछ बदलता दिखेगा।
सियासी हवा के रूख में यह बदलाव सांसद-विधायक के बीच बढ़ी राजनीतिक दूरियों के चलते हुआ है। एक समय था जब देवास में पैलेस (राज परिवार) के इर्दगिर्द ही भाजपा की राजनीति चलती थी। पहले पवार बनाम जोशी गुट हुआ करते थे और दशकों तक राजनीति इसी तरह रही। कुछ साल पहले तीसरे गुट का उदय हुआ था, लेकिन कुछ दिन में ही खत्म हो गया। फिर से पालिटिक्स का पावर पवार परिवार के हाथ में रहा।
2019 में पार्टी ने जज महेंद्रसिंह सोलंकी को सांसद का टिकट दिया, लेकिन तब तक भी भाजपा में किसी ने आकलन नहीं किया था कि 2024 के चुनाव तक हालात इतने बदलेंगे। अब हालात ऐसे हैं कि सोलंकी भाजपा के नई टीम के साथ काम कर रहे हैं तो पवार की अपनी टीम है। संगठन बीच में उलझा है और कार्यकर्ता आधे-इधर आधे उधर की तर्ज पर काम कर रहे हैं। कुछ पदाधिकारी टिकट न मिलने के कारण संगठन से उबते नजर आ रहे हैं तो कुछ टिकट की आस में संघ से नजदीकी बढ़ा रहे हैं।
कल तक उधर थे…अब इधर दिख रहे….
इस चुनाव में रोचक बात यह भी रही कि कल तक जो भाजपा नेता दूसरे नेता के साथ थे अब वे सांसद के आसपास मंडराते नजर आ रहे हैं। इनमें हाटपीपल्या क्षेत्र के कुछ नेता हैं तो देवास के भी कई पदाधिकारी हैं। कुछ एेसे हैं जो किसी समय पूर्व मंत्री दीपक जोशी के भरोसे थे, मगर उनके कांग्रेस में जाने के बाद अकेले पड़ गए। विधायक से पटरी बैठती नहीं, लिहाजा देवास में पैलेस और सांसद दोनों से ही सामंजस्य बैठाने में लगे हैं।
हालांकि ज्यादा करीब सांसद के दिख रहे हैं। हाटपीपल्या विधायक मनोज चौधरी किसी समय पैलेस के साथ हुआ करते थे, लेकिन अब सांसद के नजदीक हैं। सोनकच्छ विधायक राजेश सोनकर सिर्फ विधायक बनने तक ही क्षेत्र में दिखे और अब गायब हैं। कार्यकर्ता भी परेशान हैं कि कब तक इंदौरी नेता को झेलना पड़ेगा, स्थानीय को पार्टी क्यों मौका नहीं देती। खातेगांव विधायक आशीष शर्मा अपने क्षेत्र से खुश हैं और शिवराज सहित संघ-संगठन के करीब रहते हैं तो नए-नवेले बागली विधायक मुरली भंवरा फिलहाल पैलेस के साथ हैं।
खबर यह भी है कि सांसद सोलंकी के आसपास दिखने वाले कार्यकर्ता भी आपसी खींचतान में उलझे हैं। कहने को सभी सांसद के हैं, लेकिन मनमुटाव उनमें भी है। सांसद भी इससे वाकिफ हैं। कुछ एेसे लोग हैं जो टिकट मिलने के पहले तक सांसद को साध रहे थे और तारीफ भी करते थे, लेकिन बाद में स्थिति एेसी बदली कि अब दूर ही रह रहे हैं। लेटर कांड की चर्चा भी चल रही है।
वर्मा के इर्दगिर्द पूरी कांग्रेस
कांग्रेस में सज्जनसिंह वर्मा गुट के अलावा देवास में दूसरा गुट नहीं बचा। दिग्विजयसिंह के समर्थक कुछ लोग जरूर हैं, लेकिन स्थानीय फैसलों में उनका दखल नहीं होता। कुछ कांग्रेस चामुंडा कांप्लेक्स के बाहर नजर आते हैं तो कुछ दूसरे ठियों पर राजनीतिक चर्चा करते हैं। संगठन में वर्मा का ही दखल है, जिसे लेकर यह भी कहा जाता है कि आखिर कब तक एेसा चलेगा। गुटबाजी का यह नजारा इस चुनाव में भी दिखा जब कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र मालवीय कुछ ही नेताओं में सिमटकर रह गए और कार्यकर्ताओं से दूर होते गए। विधानसभा चुनाव में दमदारी दिखाने वाले प्रत्याशी भी दूर-दूर ही दिखे और सवाल उठे। अनुषांगिक संगठन नजर नहीं आ रहे और कह रहे हैं कि जब तक बड़े नेताओं की मनमानी चलेगी, तब हम दूर से ही देखेंगे।
….और निकाल लिया टैंट
कांग्रेस में कुछ दिन पहले आभार बैठक हुई थी। इसमें प्रत्याशी समेत पार्टी कार्यकर्ता थे। स्टेशन रोड के केंद्रीय चुनाव कार्यालय में बैठक हुई थी, इसमें भी बदलाव की मांग उठी थी। बैठक के बाद ही कार्यालय बंद हो गया। टैंट निकाल दिया गया। कुछ कार्यकर्ता गुरुवार को कार्यालय तरफ गए तो कहने लगे कि इतनी क्या जल्दी थी, चुनाव परिणाम तक तो कार्यालय चालू रख देते। बातें तो यह भी हुई कि चुनाव में जो लोग कार्यालय नहीं वे कह रहे हैं कि बंद क्यों कर दिया।