हमने फिल्मों से सीखा है की किसी काम में किए गए भ्रष्टाचार को सामने लाने के लिए अक्सर एक बड़ी जंग लड़नी पड़ती है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है की जंग लड़ते-लड़ते लोगों की आधी जिन्दगियां बीत जाती हैं पर उन्हें इंसाफ नहीं मिलता. इस बात को हमारे समाज और कानून की लाचारी ही समझिए की लोग अपनी जान दे देते हैं लेकिन उनके नाम तक सामने नहीं आते. ऐसा ही एक मामला सामने आया उत्तर प्रदेश की तीर्थनगरी मथुरा से.
श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के नौहझील थाना क्षेत्र में चार महीने से भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे बुजुर्ग की मौत हो गई. मंगलवार देर शाम उनकी तबियत खराब हुई थी. ज्यादा तबियत बिगड़ने पर परिजन उन्हें सीएचसी लेकर भागे जहां हालत गंभीर देखते हुए उन्हें जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया. लेकिन जिला अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया.
फरवरी से अनशन पर थे देवकीनंदन
मथुरा के ही रहने वाले 66 साल के देवकीनंदन शर्मा अपने आवास में बने मंदिर नगरकोट धाम पर 12 फरवरी 2024 से भ्रष्टाचार के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठे थे. उनकी प्रमुख मांगों में जिला पंचायत राज अधिकारियों के किए गए कामों में भ्रष्टाचार, गांव में शौचालय, सामुदायिक शौचालय, मिनी सचिवालय, मनरेगा जैसे मामलों में भ्रष्टाचार की जांच करना था. वह चाहते थे की इन मामलों में हो रहे करप्शन की जांच की जाए और गुनहगारों को सजा दी जाए.
13 सालों से कर रहे थे शिकायत
वह पिछले 13 सालों से लगातार शिकायतें भेज रहे थे. धरना, अनशन, पद यात्रा, उन्होंने लगभग हर तरीका अपनाया, मगर अधिकारियों ने कोई सुनवाई नहीं की. इसके उलट अधिकारियों ने शिकायतों पर गलत रिपोर्ट लगाकर मामलों को रफा-दफा कर दिया. लेकिन इसके बावजूद इन समस्याओं को लेकर वह आमरण अनशन पर बैठे और अपने तरीके से विरोध करते रहे.
जिला अस्पताल में तोड़ा दम
देवकीनंदन की लगातार गिर रही तबियत को देखते हुए सोमवार शाम एसडीएम आदेश कुमार धरनास्थल पहुंचे. अनशन खत्म कर शरीर का चेकअप कराने को कहा, लेकिन देवकीनंदन ने लिखित में समस्याओं का समाधान मांग लिया. एसडीएम के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात की वजह से इस पर बात नहीं बनी. मंगलवार देर शाम उनकी तबीयत बिगड़ गई, परिजन सीएचसी नौहझील ले गए, लेकिन जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया और वहां उन्होंने दम तोड़ दिया.
अधिकारियों ने नहीं ली सुध
जानकारी सामने आई है की पिछले चार महीने से भ्रष्टाचार के खिलाफ बुजुर्ग देवकीनंदन शर्मा अनशन पर बैठे थे. मगर किसी भी अधिकारी ने उनकी कोई सुध तक नहीं ली. अगर अधिकारी सुध लेते तो शायद बुजुर्ग को अपनी जान न गंवानी पड़ती. अनशन पर बैठने के साथ ही उन्होंने अन्न-जल सब त्याग रखा था, लेकिन अधिकारियों ने देवकीनंदन की एक ना सुनी, और देवकीनंदन ने अपनी मांगों के साथ ही दुनिया को अलविदा कह दिया.