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राजस्थान में 5 सीटों पर उपचुनाव, ट्रेंड से कांग्रेस गदगद, भजनलाल की टेंशन बरकरार

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राजस्थान में तगड़ा झटका लगा है. बीजेपी का क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगाना तो दूर की बात है, आधी सीटें गंवा दी है. राज्य के पांच विधायकों के लोकसभा सांसद चुने जाने के चलते पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. कांग्रेस के सामने अपने विधायकों की सीट बचाने की चुनौती है तो बीजेपी की कोशिश उपचुनाव के ट्रेंड तोड़ने की है. पिछले दस सालों में हुए उपचुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी रही है. कांग्रेस सत्ता में रही हो या फिर विपक्ष में उपचुनाव की बाजी मारती रही है. ऐसे में सत्ता की कमान संभाल रहे सीएम भजनलाल के लिए बीजेपी को उपचुनाव जिताने का जिम्मा है.

प्रदेश की पांच विधानसभा सीटें देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी, झुंझुनूं और दौसा खाली हुई हैं, जिन पर उपचुनाव होने हैं. देवली, झुंझुनूं और दौसा सीट कांग्रेस विधायक के इस्तीफा से खाली हुई है तो खींवसर सीट से विधायक रहे आरएलपी के नेता हनुमान बेनीवाल के सांसद चुने जाने के चलते रिक्त हुई है. चौरासी सीट से विधायक रहे भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत लोकसभा सांसद बन गए हैं, जिसके वजह से उपचुनाव होने हैं.

2014 से 2024 के बीच अब तक विधानसभा की 17 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने 12 सीट पर जीत दर्ज की है. उप चुनावों के अपने पिछले प्रदर्शन से कांग्रेस उत्साह से भरी हुई है तो बीजेपी के लिए चिंता का सबब है. इन सभी पांचों विधानसभा सीटों को बीजेपी ने दिसंबर-2023 में हुए विधानसभा चुनावों में अपने लिए सबसे कठिन मानी जाने वाली 19 सीटों की कैटेगरी में शामिल थी. इन पांचों सीटें जीतने के लिहाज से बीजेपी के लिए कठिन मानी जा रही है. भले ही ये सभी पांचों सीटें बीजेपी के कब्जे वाली न हों, लेकिन सत्ता में रहते हुए उपचुनाव में न जीतना उसके लिए बड़ा झटके से कम नहीं होगा. इसीलिए बीजेपी इस बार किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

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दौसा-झुंझनूं सीट का क्या होगा?

दौसा विधानसभा सीट से मुरारीलाल मीणा विधायक रहे हैं. यह सीट मीणा, गुर्जर व मुस्लिम बाहुल्य वाली सीट मानी जाती है. कांग्रेस के मुरारीलाल मीणा तीन बार विधायक थे. सचिन पायलट का कट्टर समर्थक माना जाता है. दौसा के आस-पास की करीब 10 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक काबिज हैं. इसी तरह झुंझुनूं सीट कई बार कांग्रेस ने लोकसभा में जीती है, क्योंकि यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत शीशराम ओला चुनाव लड़ते थे. विधानसभा में यह सीट लगातार शीशराम के पुत्र बृजेन्द्र सिंह ओला चौथी बार जीत चुके हैं, लेकिन अब उन्होंने इस्तीफे दे दिया है. कांग्रेस की मजबूत सीटों में माने जाने वाली दौसा और झुंझनू सीट पर बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन सकती है.

देवली-उनियारा सीट पर नजर?

देवली-उनियारा विधानसभा सीट पर पिछले चार चुनाव में तीन बार कांग्रेस जीती है. यहां से दो बार के विधायक हरीश मीना टोंक-सवाईमाधोपुर से सांसद बनने के चलते विधायकी से इस्तीफा दे दिया है. मीणा, मुस्लिम, गुर्जर और दलित बाहुल्य मानी जाने वाली देवली-उनियारा सीट पर सियासी समीकरण के सहारे कांग्रेस को अपनी जीत की संभावना है. ऐसे में बीजेपी इस सीट कई तरह से सियासी प्रयोग करके देख चुकी है, लेकिन अभी तक उसे जीत नहीं मिल सकी है. पायलट के प्रभाव वाले इलाके की सीट पर बीजेपी के लिए सियासी चैलेंज कम नहीं है.

खींवसर और चौरासी पर चैलेंज?

खींवचर विधानसभा सीट से विधायक आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल थे, जो नागौर से सांसद चुने गए हैं. इसके चलते उन्होंने विधानसभा सीट छोड़ दी है. मुस्लिम और जाट बाहुल्य माने जाने वाली इस पर बेनीवाल का जबरदस्त प्रभाव है. इसी के चलते बीजेपी लिए यह सीट कठिन बनी हुई है. वहीं, बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र में स्थित चौरासी सीट पर लंबे अरसे से कांग्रेस का प्रभाव रहा है, लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में आदिवासी समाज के तेजतर्रार नेता राजकुमार रोत ने जबरदस्त जीत दर्ज की है. रोत भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के प्रतिनिधि हैं, जो अब सांसद चुने गए हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए खींवसर और चौरासी सीट पर जीत दर्ज करना आसान नहीं है.

बीजेपी के लिए आसान नहीं है?

लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और उनके गठबंधन सहयोगियों ने राजस्थान की जिन 11 सीटें जीती हैं, उनमें से पांच लोकसभा सीटों के भीतर ही यह पांचों विधानसभा सीटें भी आती हैं. इन सभी पांचों सीटों पर मुस्लिम, जाट, मीणा व दलित मतदाताओं का बाहुल्य है. इन पांचों सीटों के सियासी समीकरण के चलते बीजेपी के लिए काफी मुश्किल सीट मानी जाती है. जातीय गणित के दम पर ही कांग्रेस लगातार सीटें जीत रही है.

पिछले 10 सालों में 17 विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुई है, जिसमें से 12 सीटें कांग्रेस ने जीती है. 2014 में राजस्थान की चार विधानसभा सीटों नसीराबाद, वैर, सूरजगढ़ और कोटा दक्षिण पर उप चुनाव हुए. तीन सीटें कांग्रेस ने जीती थी. कोटा दक्षिण सीट ही भाजपा जीत सकी जबकि तीनों सीटें नसीराबाद, वैर और सूरजगढ़ पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था. 2017 में धौलपुर और 2018 में मांडलगढ़ विधानसभा सीटों पर भी उप चुनाव हुए, जिनमें से धौलपुर पर भाजपा और मांडलगढ़ पर कांग्रेस ने बाजी मारी. 2018 से 2022 के बीच हुए कुल 9 उप चुनावों में से 7 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. बीजेपी को केवल एक सीट राजसमंद पर जीत नसीब हुई थी, वहीं एक सीट खींवसर को रालोपा ने जीता था. मंडावा, सुजानगढ़, सरदारशहर, सहाड़ा, धरियावद, वल्लभनगर और रामगढ़ सीट पर कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया था.

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