जब भी कोई सांसद के पास जाता था वे बैठने तक को नहीं कहते थे. जब जाओ कहते थे हमको नहीं मोदी जो को वोट दिए हो. एक सांसद हैं उन्होंने अपना फोन नहीं उठाने की कसम खाई थी. गांव में एक सांसद का विरोध हुआ तो बोले हमें तुम लोगों का वोट नहीं चाहिए. पिछली बार ढाई लाख से जीते थे. इस बार 2 लाख से जीत जाएंगे. ये सभी नेता इस बार चुनाव हार गए. दिल्ली से भेजे गए बीएल संतोष के सामने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं ने ऐसे कई किस्से सुनाए. लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस बार क्यों फेल हो गई बैठक का एजेंडा यही था. बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के सामने पार्टी नेताओं ने हार के कई कारण गिना दिए.
बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्षों को पहली बार हार की समीक्षा करने के लिए बुलाया गया था. केंद्रीय नेतृत्व के सामने पहली बार इस तरह की मीटिंग हुई. हार की समीक्षकों पर चर्चा तो यूपी वाले नेता ही कर रहे थे. इसीलिए केंद्रीय नेतृत्व के सामने तो बैठक में मौजूद नेताओं ने अंदर की सारी बातें बाहर कर दी. हार की सबसे बड़ी वजह बताई गई पार्टी कार्यकर्ताओं का तिरस्कार.
‘अपमानित करते थे उम्मीदवार’
बैठक में शामिल एक क्षेत्रीय अध्यक्ष ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि एक उम्मीदवार तो ऐसे थे जो जिला संगठन के नेताओं के नाम भी सही से नहीं लेते थे. उनके पास जाने से कार्यकर्ता अपमानित महसूस करते थे. वे जान-बूझ कर संगठन के नेताओं के नाम सही तरीके से नहीं बोला करते थे. एक ऐसे उम्मीदवार की चर्चा हुई जो कभी भी सवेरे 11 बजे से पहले तैयार ही नहीं होते थे. संगठन के लोगों ने उनका कार्यक्रम सवेरे 8 या 9 बजे लगाया तो वे कभी पहुंचे ही नहीं.
समीक्षा बैठक में यह भी कहा गया कि इस बार के चुनाव में कार्यकर्ताओं में कोई जोश नहीं था. आखिर रहे भी तो कैसे! कभी लगा ही नहीं कि ये उसी पार्टी के कार्यकर्ता हैं जिसकी डबल इंजन की सरकार है. बैठक में सबने यह मुद्दा उठाया कि यूपी सरकार में कार्यकर्ताओं की कोई सुनवाई नहीं हो रही है. लोग कार्यकर्ताओं के पास और कार्यकर्ता हमारे पास मदद के लिए आते हैं. लेकिन नौकरशाही के सामने हम सब मजबूर हैं. पुलिस थाने से लेकर तहसील लेवल पर बहुत करप्शन है.
सर्वे और फीडबैक के बाद भी गलत टिकट
टिकट बंटवारे की आलोचना करते हुए कई लोगों ने अपनी राय रखी और कहा कि इतने सारे सर्वे और संगठन के फीडबैक के बाद भी गलत लोगों को टिकट दिए गए. जिनके खिलाफ जनता से लेकर कार्यकर्ता में नाराजगी थी, लेकिन उसे ही टिकट मिला तो सबने मिल कर हरा दिया. भारी विरोध के बावजूद जिन्हें टिकट मिला वे फिर अहंकार में डूब गए. वे कहने लगे देखो, मैं तो टिकट ले आया अब क्या कर लोगे. इसी भाव से चुनाव लड़ा गया, ऐसे में निराश कार्यकर्ता भी निष्क्रिय होते चले गए.
चुनाव के दौरान बाहरी लोगों को जमकर बीजेपी में शामिल कराया गया. लखनऊ से लेकर जिले-जिले में दूसरी पार्टी के लोगों की बीजेपी में एंट्री कराई गई. पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ. सूत्रों ने बताया कि 1 लाख 90 हजार बाहरी नेताओं को बीजेपी में लाया गया. ये सब पार्टी के किसी काम नहीं आए. उलटे बीजेपी का पुराना कैडर ही नाराज हो गया.
‘आत्मघाती हुआ 400 पार का नारा’
आखिर कई सालों से पार्टी के नेता तो इन्हीं बाहरी नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं. उदाहरण के तौर पर अंबेडकरनगर में खब्बू तिवारी के लोग सालों से अभय सिंह के खिलाफ लड़ते रहे. समाजवादी पार्टी के बागी विधायक अभय का परिवार अब बीजेपी में हैं. हर जिले में ऐसा ही हुआ.
बैठक में बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष बस सुनते ही रहे. उन्होंने कभी किसी की बात पर कोई कमेंट नहीं किया. बैठक के बीच में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप किया. सभी क्षेत्रीय अध्यक्षों ने कहा कि 400 पार का नारा आत्मघाती साबित हुआ. फिर विपक्ष ने यह फैला दिया कि बीजेपी संविधान बदलना चाहती है. आरक्षण को खत्म कराना चाहती है. हम इस प्रोपेगैंडा को तोड़ नहीं पाए.
पार्टी के अंदर फैली नाराजगी को लेकर बैठक में कहा गया कि पार्टी के लोग ही अपने के उम्मीदवारों के खिलाफ काम करते रहे. कार्यकर्ता लगातार उदासीन बना रहा, इस बीच विपक्ष को मौका मिल गया. बैठक खत्म होने से पहले बीएल संतोष ने बस इतना कहा अब आगे हम सबको मिल-जुल कर हर चुनाव जीतना है और संगठन मजबूत करना है.