केदार घाटी में इन दिनों भोलेनाथ के जयकारे के साथ-साथ सरकार के विरोध के घंटों -डमरूओं की गूंज सुनाई दे रही है. सत्ताधारियों की बुद्धि-शुद्धि की प्रार्थनाएं भी हो रही हैं. इस विरोध के केंद्र में बुराड़ी (दिल्ली) में बन रहा केदार नाथ मंदिर है. मंदिर का भूमिपूजन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया था. इसका संदेश प्रस्तावित मंदिर से सरकार के जुड़ाव के तौर पर लोगों तक गया. हालांकि स्थानीय आबादी के विरोध और हाल के उपचुनावों में शिकस्त के कसैले संदेश के बीच राज्य सरकार ने दिल्ली के मंदिर से पल्ला झाड़ लिया है. धामी ने मंदिर के भूमिपूजन के सिर्फ तीन दिन के अंतराल में साफ किया कि दुनिया में कोई दूसरा केदार नाथ धाम हो ही नहीं सकता. बावजूद इसके विरोध के स्वर मुखर हैं.
पवित्र केदार द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक
पवित्र केदारनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में पांचवा है. उत्तराखंड के चारों धामों में भी यह सम्मिलित है. धाम का इतिहास भगवान शिव के अवतार नर -नारायण, पांडव और आदि शंकराचार्य से जुड़ा है. हिमालय के सुरम्य क्षेत्र में स्थित इस प्राचीन मंदिर के कपाट शीत ऋतु में छह महीने बंद रहते हैं. माना जाता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है अर्थात स्थापित नहीं अपितु स्वतः प्रकट है. मंदिर का प्रथम बार निर्माण पांडु राजा जन्मेजय ने कराया. आठवीं-नौवीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा इसका पुनरुद्धार हुआ. धाम के पास पवित्र नदियों के संगम की मान्यता है जिसमें मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीर गंगा और स्वर्ण गौरी शामिल हैं. मंदिर के पीछे विशाल भीम शिला स्थित है, जिसने 2013 की भयंकर आपदा में मंदिर की रक्षा की.
भगवान शिव का है सदैव वास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण बदरी वन में पार्थिव शिवलिंग का पूजन करते थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए. नर-नारायण ने उनसे प्रार्थना की कि भगवान शिव यहां सदैव वास करें. भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि यह क्षेत्र केदार के नाम से जाना जाएगा. स्कंद पुराण के केदार खंड के अनुसार केदार वह स्थान है, जहां भगवान शिव अपने उलझे बालों से पवित्र गंगा को मुक्त करते हैं. द्वापर युग में कौरवों और अन्य बांधवों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए हिमालय आए. मान्यता है कि शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे. पांडव उनकी भक्ति में केदार तक पहुंचे. तब शिव ने पशु का रूप धारण कर लिया. भीम को उनके दर्शन की युक्ति सूझी और विशाल रूप धारण करके अपनी दोनों टांगें केदार पर्वत के दोनों ओर फैला दीं. अन्य पशु इनके नीचे से निकल गए. लेकिन भैंसे का रूप धारण किए भगवान शिव जब निकल रहे थे तो भीम ने अंतर्दृष्टि से उन्हें पहचान लिया. भीम ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया तो वे धरती में समाने लगे. शिव ने उनका पृष्ठ भाग पकड़ा. तभी से भगवान शिव यहां भैंसे की पीठ की आकृति में पूजे जाते हैं. मान्यता है कि भैंसे का मुख नेपाल में निकला, जहां भगवान पशुपतिनाथ की पूजा की जाती है. आदि शंकराचार्य को प्राचीन मंदिर के पुनरुद्धार का यश प्राप्त है. मंदिर के पीछे उनकी समाधि स्थित है. विश्वास किया जाता है कि वे स्वतः धरती में समाधिस्थ हुए.
आस्था के केंद्र पर विरोध प्रदर्शन!
लेकिन इन दिनों केदार धाम तीर्थ यात्रियों की अगाध आस्था और दर्शन-पूजन के साथ विरोध प्रदर्शन के लिए चर्चा में है. इस विरोध में साधु -संत, पुजारियों-भक्तों के साथ ही तमाम स्थानीय आबादी शामिल है. वजह इसकी अनुकृति है, जिसका दिल्ली में निर्माण प्रस्तावित है. मुख्यमंत्री धामी द्वारा इस मंदिर के भूमिपूजन से माना गया कि योजना को सरकार का संरक्षण है. केदार नाथ ट्रस्ट दिल्ली के अध्यक्ष सुरिंदर रौतेला के कथित बयान कि जो वृद्ध-अशक्त केदार धाम तक नहीं जा पाते थे, उनके लिए दिल्ली में ही केदार बाबा के दर्शन सुगम हो जाएंगे. केदार धाम आस्था का तो प्राचीन केंद्र है ही, इसी के साथ प्रतिवर्ष वहां पहुंचने वाले लाखों तीर्थ यात्री स्थानीय आबादी के बड़े हिस्से की आजीविका में सहायक होते हैं. मंदिर के साथ ही चार धाम यात्रा के लिए राज्य सरकार द्वारा रामनगर से वैकल्पिक मार्ग निर्माण के सर्वेक्षण के लिए परंपरागत यात्रा मार्गों के किनारे बसने वाली आबादी को उद्वेलित किया. धारणा बनी कि नए मार्ग के निर्माण से यात्री उससे गुजरेंगे और पुराने मार्ग उपेक्षित रह जायेंगे. इसका भी सीधा असर इन इलाकों की स्थानीय आबादी की रोजी रोटी पर आयेगा.
विपक्ष और शंकराचार्य के सरकार से सवाल
दिल्ली के केदार मंदिर को लेकर राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी मैदान में आ गई है. विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता यशपाल आर्य ने कहा है कि दिल्ली में केदार नाथ मंदिर का निर्माण सनातन परंपराओं के विरुद्ध है. केदार नाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक है और दिव्यधाम का प्रतीकात्मक निर्माण स्वीकार्य नहीं है. आर्य ने केदारनाथ से शिला ले जाकर दिल्ली के मंदिर में स्थापित करने और मुख्यमंत्री धामी द्वारा उसके पूजन को केदार नाथ की पवित्र परम्परा का अपमान बताया है. आर्य के अनुसार केदार नाथ धाम करोड़ों की आस्था का केंद्र है, न कि पर्यटन और प्रदर्शनी का. आर्य ने दिल्ली के मंदिर से सरकार को जोड़ते हुए सवाल किया कि सरकार और ट्रस्ट को दिल्ली में मंदिर की स्थापना की क्यों जरूरत पड़ी? ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने प्रश्न किया है कि शिव पुराण में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में केदार धाम का पता हिमालय है. फिर वह दिल्ली में कैसे स्थापित हो सकता है? उन्होंने इसके पीछे राजनीतिक एजेंडा बताया. शंकराचार्य ने कटाक्ष करते हुए कहा कि केदार नाथ मंदिर का 228 किलो सोना गायब हो गया. सरकार उसकी जांच की जगह दिल्ली में केदार धाम बना रही है.
दोहरे दबाव में धामी सरकार
फिलहाल धामी सरकार दोहरे दबाव में है. लोकसभा चुनाव की उसकी शानदार सफलता को विधानसभा की दो सीटों के उपचुनाव की शिकस्त ने बदमजा कर दिया है. बद्रीनाथ में उसके प्रत्याशी राजेंद्र सिंह भंडारी को कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने 5,224 मतों के अंतर से पराजित किया. हरिद्वार की मंगलौर सीट पर कांग्रेस के निजामुद्दीन से कड़े मुकाबले में भाजपा के करतार सिंह भड़ाना 422 वोटों से हारे. बेशक 2022 में भी भाजपा इन सीटों पर हारी थी लेकिन लोकसभा चुनाव में बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र में उसे आठ हजार से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली थी. राज्य की लोकसभा की पांचों सीटों पर जीत के कारण भी सरकार का हौसला बुलंद था. लेकिन नतीजों ने उसे निराश किया. अयोध्या के बाद दूसरे तीर्थस्थल बद्रीनाथ में हार ने विपक्षियों को हिन्दू मतों पर भाजपा की दावेदारी पर सवाल खड़े करने का मौका दिया है. क्या उत्तराखंड के उपचुनावों की हार में केदार नाथ के दिल्ली मंदिर और चारों धाम यात्रा के लिए वैकल्पिक मार्ग निर्माण के एंगल की भी कोई भूमिका रही है? नतीजों के बाद जिस तेजी से मुख्यमंत्री धामी ने दिल्ली के प्रस्तावित मंदिर से पल्ला झाड़ते हुए साफ किया है कि दूसरा कोई केदार धाम हो ही नहीं सकता है, उसने संदेश दिया है कि सरकार आस्था के इस संवेदनशील सवाल पर बहुत सचेत है. चारों धाम यात्रा मार्ग को लेकर नैनीताल की जिलाधिकारी वंदना सिंह के जरिए सरकार की सफाई कि परम्परागत मार्गों से यात्रा जारी रहेगी , से साफ है कि सरकार इनके किनारे बसी आबादी को कतई नाराज नहीं करना चाहिए. अतिरिक्त मार्ग की जरूरत का कारण परम्परागतगत मार्गों पर ट्रैफिक का बढ़ता दबाव बताया गया है. दिल्ली के केदार नाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सुरिंदर रौतेला ने भी इस मंदिर से उत्तराखंड सरकार का कोई लेना-देना न होने का बयान देकर इस मसले पर फैली नाराजगी को कम करने का प्रयत्न किया है.