ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर सुर्खियों में हैं. अधिकारों के दुरुपयोग के साथ ही दिव्यांगता सर्टिफिकेट को लेकर भी वो सवालों के घेरे में हैं. एम्स के पूर्व निदेशक डॉ एम सी मिश्रा ने टीवी9 भारतवर्ष से खास बातचीत में बताया है कि दिव्यांगता सर्टिफिकेट के क्या प्रावधान हैं. अगर कोई व्यक्ति दिव्यांगता की किसी भी श्रेणी में आता है तो इसके लिए उसे मेडिकल बोर्ड से गुजरना पड़ता है.
एम्स के पूर्व निदेशक डॉक्टर एम सी मिश्रा ने कहा कि डॉक्टर को यह बताना पड़ता है कि क्यों किसी व्यक्ति को दिव्यांगता का सर्टिफिकेट दिया जाए. साथ ही अगर व्यक्ति ने दिव्यांगता सर्टिफिकेट के लिए अस्पताल से गुजारिश की है और अस्पताल को ऐसा लगता है वह दिव्यांगता की श्रेणी में नहीं आता है तो यह भी लिखित रूप से अस्पताल को देना पड़ता है.
एम्स से क्यों हुआ रिजेक्ट
आईएएस पूजा को एम्स से क्यों नहीं मिला सर्टिफिकेट? इसके जवाब में डॉ. एम सी मिश्रा ने कहा कि कई बार अदालत अथवा किसी बोर्ड के अनुरोध पर मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होना होता है. ऐसे में जरुरी है कि समय रहते व्यक्ति मेडिकल बोर्ड के सामने पेश हों. अगर, आप ऐसे किसी बोर्ड के सामने नहीं पेश होते हैं तो आपका अनुरोध रिजेक्ट हो जाता है.
कुछ दिव्यांगता बाहर से नहीं दिखती
डॉ एम सी मिश्रा ने बताया कि कई बार ऐसा होता है कि बाहर से किसी व्यक्ति में कोई दिव्यांगता नहीं दिखती है. उसके लिए खास तरह के टेस्ट की जरूरत होती है. जैसे आंखों की दिव्यांगता बाहर से नहीं पता चलती है. उसके लिए आई टेस्ट की जरूरत होती है. इसी तरह के हड्डी से भी संबंधित कुछ दिव्यांगता होती है, जिसमें बाहर से तो कुछ नहीं दिखता लेकिन कुछ जांच से यह पता चल पता है.
एम्स में दिव्यांगता सर्टिफिकेट
कोई भी व्यक्ति कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो सकता है. बावजूद इसके दिव्यांगता का सर्टिफिकेट जिन श्रेणियों में दिया जाता है उनमें लोकोमोटर दिव्यांगता, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, कुष्ठ रोग ठीक हुआ, बौनापन, सेरेब्रल पाल्सी, एसिड अटैक पीड़ित, कम दृष्टि, अंधापन, बधिर, सुनने में कठिनाई, वाणी और भाषा दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, विशिष्ट सीखने की दिव्यांगता, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, मानसिक बीमारी, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियां, मल्टीपल स्केलेरोसिस, पार्किंसंस रोग, हीमोफीलिया, थैलेसीमिया, और सिकल सेल रोग शामिल हैं.
पहले क्या था नियम
दिल्ली में केंद्र सरकार के दो अस्पताल जिसमें एम्स और सफदरजंग शामिल हैं. केवल इन्हीं दोनों अस्पतालों में दिव्यांगता सर्टिफिकेट बनाने की सुविधा थी. इन अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड बनता था, तब कहीं जाकर किसी का नंबर आता था दिव्यांगता सर्टिफिकेट का.. देरी की वजह से कई तरह के सरकारी सुविधाओं से लोग वंचित रह जाते थे. इसे लेकर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अदालत का रुख किया. फिर अदालत ने दिव्यांगता सर्टिफिकेट के लिए जिले के जिलाधिकारी को भी अधिकार प्रदान किया.
सिंगल विंडो सिस्टम से बन रहा सर्टिफिकेट
एम्स से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस तरह के सर्टिफिकेट के लिए यदि अदालत से कोई ऑर्डर आता है अथवा किसी आयोग से तब एम्स में यह बनता है. पहले एम्स में इसके लिए मेडिकल बोर्ड तैयार किया जाता था. साल 2023 में एक ऑर्डर निकालकर दिव्यांगता सर्टिफिकेट के लिए सिंगल विडों सिस्टम शुरू कर दिया गया है.